देश में धड़ल्ले से चल रहे अवैध बूचड़खानों पर NGT के तेवर सख्त, प्रशासन को कार्रवाई के निर्देश
एनजीटी ने कहा कि प्रशासन को इन बूचड़खानों के अवैध संचालन पर नजर रखनी चाहिए क्योंकि सरकारी मुआयने में ये बुचड़खाने ज्यादातर मिलते हैं।
नई दिल्ली, प्रेट्र। नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल (एनजीटी) ने भूगर्भ जल का धड़ल्ले से अवैध इस्तेमाल करने वाले बूचड़खानों के खिलाफ प्रशासन को कार्रवाई करने का निर्देश दिया है। जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि भूगर्भ जल का इस्तेमाल केंद्रीय भू जल प्राधिकरण (जीसीडब्ल्यूए) की अनुमति के बिना नहीं किया जा सकता।
ट्रिब्युनल ने कहा कि बूचड़खानों में प्रदूषण नियंत्रण के समुचित उपाय न होने से उनसे निकलने वाले गंदे जल से यमुना में बड़े पैमाने पर प्रदूषण होता है। यह साफ है कि इन बूचड़खानों में जीसीडब्ल्यूए की अनुमति के बिना भूगर्भ जल का धड़ल्ले से इस्तेमाल होता है। एनजीटी ने कहा कि प्रशासन को इन बूचड़खानों के अवैध संचालन पर नजर रखनी चाहिए क्योंकि सरकारी मुआयने में ये बुचड़खाने ज्यादातर मिलते हैं। इन बूचड़खानों को संचालित करने की इजाजत तभी दी जाए जब ये प्रदूषण संबंधी नियमों का पालन करते नजर आएं। ट्रिब्युनल ने यह निर्देश बुलंदशहर के खुर्जा में एक बूचड़खाने के खिलाफ शैलेश सिंह की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए।
अदालतों की निगरानी के बावजूद गंगा में गंदगी बहाना जारी- एनजीटी
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने उत्तरी राज्यों उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और बंगाल के मुख्य सचिवों को गंगा पुनरुद्धार की निश्चित समय अंतराल पर निगरानी करने के निर्देश दिए हैं। ट्रिब्यूनल ने कहा, यह अफसोसनाक है कि विभिन्न अदालतों द्वारा लगातार निगरानी के बावजूद इस पवित्र नदी में गंदगी को बहाया जाना जारी है। इस तरह उपेक्षा करने के बजाय राज्यों को इस मामले को ज्यादा गंभीरता से लेना चाहिए।
एनजीटी के चेयरमैन जस्टिस एके गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, 'यह अफसोसनाक है कि 34 साल (1985 से 2014) तक सुप्रीम कोर्ट की लगातार निगरानी, छह साल से इस ट्रिब्यूनल द्वारा निगरानी और जल अधिनियम बनने के 46 साल बाद भी सबसे पवित्र नदी में गंदगी को बहाया जाना जारी है।'