मेरा गांव, मेरा देश: उत्तर प्रदेश के प्रयागराज का संसारपुर गांव में बसने जा रहा नया संसार
संसारपुर में जिस तरह ये प्रवासी अपना एक नया संसार बसाने की जुगत में जुट गए हैं उसे गौर से समझने पर इस बात की तसल्ली मिल जाती है कि कहीं कोई मायूसी नहीं है।
ज्ञानेन्द्र सिंह, प्रयागराज। प्रयागराज, उप्र का संसारपुर गांव। आठ मजरों और 13 हजार की आबादी वाले इस गांव के डेढ़ हजार लोग शहरों में मेहनत- मजदूरी करते थे। इनमें से अब तक 400 से अधिक लौटे आए हैं और शेष का आना जारी है। संसारपुर में जिस तरह ये प्रवासी अपना एक नया संसार बसाने की जुगत में जुट गए हैं, उसे गौर से समझने पर इस बात की तसल्ली मिल जाती है कि कहीं कोई मायूसी नहीं है। इनका आत्मविश्वास और जिजीविषा देख एक सुखद उम्मीद बंध जाती है। उम्मीद इस बात कि भारत लड़ना और जीतना जानता है।
खेती संग पशु पालन, स्थानीय श्रम और स्वरोजगार की ओर बढ़ते युवा कामगार अपनी राह बना लेने को आश्वस्त हैं। शहरों से अर्जित हुनर और आत्मनिर्भरता के बूते वे नई कहानी लिख देना चाहते हैं। दो तरफ नदियों और दो तरफ वादियों से घिरा है संसारपुर गांव। हरे भरे जंगलों के बीच अलग-अलग बस्तियां में इसकी बसाहट है। बसावट ऐसी कि दूर-दूर बने घर मानो फिजिकल डिस्टेंसिंग का पाठ पढ़ा रहे हों। कोरोना के कारण लौटे अपनों से हर घर गुलजार है। लोगों के लौटने का सिलसिला अनवरत जारी है। लौट रहे प्रवासी तनिक भी विश्राम के पक्षधर नहीं हैं। वे तो गांव की नई तस्वीर गढ़ देना चाहते हैं।
मनरेगा में काम कर सबसे पहले रोटी का इंतजाम और साथ ही साथ खेती-बाड़ी, पशुपालन, किराना, सब्जी की दुकान इत्यादि सुलभ संसाधनों का अमल कर क्रमश: आगे बढ़ने की योजना अपनी-अपनी तरह से बताते, समझाते हैं। उन्हें उम्मीद है कि सब कुछ नए सिरे से जमा लेंगे। कुछ का यह भी कहना है कि यदि संकट समाप्त हो जाता है और काम-धंधें खुल जाते हैं, तो शहर का विकल्प तो है ही। कुल मिलाकर समय नहीं गंवाना चाहते हैं।
खास बात यह है कि संसारपुर से जो डेढ़ हजार से अधिक लोग रोजी-रोटी के लिए शहरों को गए थे, उनमें से अधिकांश युवा हैं। शहरों में रह कर वे किसी न किसी हुनर में तो पारंगत हुए ही, साथ ही आत्मनिर्भरता का बोध उन्हें बखूब है, यही बात इन्हें हौसला देती है। रामदुलार के घर में चार सदस्य सूरत से तो देवतादीन के दोनों बेटे परिवार के साथ मुंबई से आए हैं। हरिकृष्ण के चार बेटे भी मुंबई से लौटे हैं। सौ से अधिक युवक मनरेगा के काम में मेड़बंदी करने में जुट गए हैं। हरिकृष्ण के बेटे पशुपालन कर यहीं जमने का इरादा कर रहे हैं। रामदुलार के पौत्र मोहित ने खरबूजा बेचने का काम शुरू किया है। कुछ ऐसे भी हैं, जो छोटी-मोटी दुकान खोलने का इंतजाम कर रहे हैं।
उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सीमा पर जिला मुख्यालय से 73 किमी दूर बसा है यह गांव। बेटियों को उच्च शिक्षा दिलाने के साथ ही पौधरोपण गांव के लोगों की आदत में है। इसीलिए यहां की बेटियां आसपास के गांवों की तुलना में ज्यादा शिक्षित हैं और नौकरियों में भी हैं। गांव में डिग्री कॉलेज तक है। प्रयागराज के जिलाधिकारी भानुचंद्र गोस्वामी ने दैनिक जागरण से कहा, संसारपुर में सबसे ज्यादा प्रवासी कामगार लौटे हैं। संबंधित तहसील के एसडीएम और बीडीओ को विशेष तौर पर निर्देशित किया गया है कि ज्यादा से ज्यादा हाथ को काम मिले। किसी को दिक्कत न होने पाए।