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टीबी की जांच का खोजा गया नया और तेज तरीका, आइआइएससी के शोधकर्ताओं ने इम्यून रिस्पांस को लेकर किया प्रयोग

टीबी के रोगियों में यदि असर फेफड़े के अलावा अन्य अंगों पर हो तो उसकी जांच थोड़ी जटिल हो जाती है। लेकिन संस्थान के माइक्रोबायोलॉजी एंड सेल बायोलॉजी विभाग के एस. विजय के नेतृत्व में शोधकर्ताओं की टीम ने एक नई तरकीब निकाली है।

By Dhyanendra Singh ChauhanEdited By: Published: Tue, 23 Mar 2021 07:52 PM (IST)Updated: Tue, 23 Mar 2021 07:52 PM (IST)
टीबी की जांच का खोजा गया नया और तेज तरीका, आइआइएससी के शोधकर्ताओं ने इम्यून रिस्पांस को लेकर किया प्रयोग
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस के जर्नल में प्रकाशित हुआ शोध

बेंगलुरु, आइएएनएस। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (आइआइएससी) के माइक्रोबायोलॉजी और सेल बायोलॉजी के शोधकर्ताओं ने टुब‌र्क्यलोसिस (टीबी) रोग की जांच का एक नया, त्वरित और प्रभावी तरीका खोजा है। इसके जरिये रोग के कारक टीबी बैसिली से जुड़े कुछ खास प्रकार के प्रोटीन के खिलाफ प्रतिरक्षण प्रतिक्रिया (इम्यून रिस्पांस) से यह पता लगाया जा सकता है कि कोई व्यक्ति टीबी का सक्रिय मरीज है या नहीं।

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यह नया शोध ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, लंदन के एक जर्नल क्लिनिकल इन्फेक्शस डिजीज के नवीनतम अंक में प्रकाशित हुआ है। टीबी की गंभीरता इस बात से समझी जा सकती है कि दुनियाभर में हर साल मलेरिया, एड्स समेत अन्य ट्रापिकल रोगों से होने वाली कुल मौतों की तुलना में टीबी से मरने वालों की संख्या ज्यादा होती है। इसलिए, टीबी को दुनिया का सर्वाधिक मारक रोग माना जाता है।

टीबी के रोगियों में यदि असर फेफड़े के अलावा अन्य अंगों पर हो तो उसकी जांच थोड़ी जटिल हो जाती है। लेकिन संस्थान के माइक्रोबायोलॉजी एंड सेल बायोलॉजी विभाग के एस. विजय के नेतृत्व में शोधकर्ताओं की टीम ने एक नई तरकीब निकाली है।

विभिन्न रूप में पाए जाते हैं शुगर तथा अन्य कंपाउंड

शोधकर्ताओं की इस टीम पाया है कि यदि रक्त में टुमोर नेक्रोटिक फैक्टर (टीएनएफ-ए) के रिलीज होने के समय इम्यून सेल में बायोकेमिकल सीडी 38 तथा सीडी 4 की मौजूदगी और सीडी 27 की गैर मौजूदगी से टीबी का पता लगाया जा सकता है। हमारे रक्त में इम्यून सेल (प्रतिरक्षी कोशिकाओं) के सतह पर प्रोटीन, शुगर तथा अन्य कंपाउंड (यौगिक) विभिन्न रूप में पाए जाते हैं, जो व्यक्ति की इस स्थिति पर निर्भर करते हैं कि वे किसी मौजूदा या पुराने संक्रमण से लड़ रहे हैं या स्वस्थ व्यक्ति में निष्क्रिय रहते हैं। कुछ खास संयोजनों में इन अणुओं (जिन्हें बायोमार्कर कहते हैं) की मौजूदगी या गैरमौजूदगी से शरीर में बीमारी का पता लगाया जाना संभव होता है। हमारे अंग और प्रतिरक्षा तंत्र बायोमार्कर का इस्तेमाल बाहरी तत्वों, एलर्जीकारक और नुकसानदेह सूक्ष्म जीवों से प्रतिक्रियाओं का पता लगाने के लिए करते हैं।

शोधकर्ताओं ने ब्लड सैंपल में टीबी एंटीजन मिलाया 

प्रयोग के दौरान शोधकर्ताओं ने ब्लड सैंपल में टीबी एंटीजन मिलाया ताकि इम्यून रिएक्शन की शुरुआत हो सके। इसके आधार पर ब्लड सैंपल के टी-सेल पर मार्कर प्रोटीन की मौजूदगी या गैरमौजूदगी के विश्लेषण से टीबी की सटीक जांच की जा सकती है। इस तरह से समय पर सटीक जांच और तत्पश्चात उसके इलाज से दुनियाभर में टीबी के खिलाफ निर्णायक लड़ाई लड़ी जा सकती है।

मालूम हो कि विज्ञान की इतनी प्रगति के बावजूद फेफड़ा तथा फेफड़ा के बाहर टीबी की त्वरित और सटीक जांच के अभाव और पुरानी जांच पद्धति पर निर्भरता के कारण बीमारी की गंभीरता बढ़ जाती है।

शोधपत्र में कहा गया है कि माइकोबैक्टेरियम टुब‌र्क्यलोसिस (एमटीबी) तथा साइटोकाइन के स्त्राव से रोग की जांच तथा संक्रमण के सक्रिय और गुप्त होने के बीच आसानी से फर्क किया जा सकता है। भारत जैसे देश में टीबी रोगियों की संख्या काफी है और उनमें इम्यून सेल भी विकसित हो चुके हैं, जिसके कारण रोग और उससे संक्रमण का भेद करना कठिन हो जाता है।


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