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संवैधानिक बेंच में समलैंगिकता पर सुनवाई, रोहतगी ने शिखंडी व अर्धनारीश्वर का दिया उदाहरण

बेंच में इकलौती जज इंदु मल्होत्रा ने कहा कि समलैंगिकता केवल पुरुषों में ही नहीं जानवरों में भी देखने को मिलती है।

By Ramesh MishraEdited By: Published: Tue, 10 Jul 2018 09:10 AM (IST)Updated: Tue, 10 Jul 2018 04:17 PM (IST)
संवैधानिक बेंच में समलैंगिकता पर सुनवाई, रोहतगी ने शिखंडी व अर्धनारीश्वर का दिया उदाहरण
संवैधानिक बेंच में समलैंगिकता पर सुनवाई, रोहतगी ने शिखंडी व अर्धनारीश्वर का दिया उदाहरण

नई दिल्ली [ जेएनएन ]। सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिकता को अपराध के तहत लाने वाली धारा 377 पर सुनवाई शुरू हो चुकी है। पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने बहस की शुरुआत की। केंद्र सरकार की ओर से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए। सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने सोमवार को इस मामले की सुनवाई में देरी से इनकार कर दिया था। केंद्र सरकार चाहती थी कि इस मामले की सुनवाई कम से कम चार हफ्तों बाद हो। आइए जानते हैं आखिर आज किस निष्‍कर्ष तक पहुंची बहस।
 
जानिए इस सुनवाई के अपडेट-

बेंच में इकलौती जज इंदु मल्होत्रा ने कहा कि समलैंगिकता केवल पुरुषों में ही नहीं जानवरों में भी देखने को मिलती है। वह समलैंगिकता को सामान्य और अहिंसक बताने पर टिप्पणी कर रही थीं। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने टिप्पणी की कि यह मामला केवल धारा 377 की वैधता से जुड़ा हुआ है। इसका शादी या दूसरे नागरिक अधिकारों से लेना-देना नहीं है। वह बहस दूसरी है।

तुषार मेहता ने कहा कि यह केस धारा 377 तक सीमित रहना चाहिए।  इसका उत्तराधिकार, शादी और संभोग के मामलों पर कोई असर नहीं पड़ना चाहिए। मेहता केंद्र सरकार का पक्ष रख रहे हैं। उन्होंने कहा कि सरकार इस पर आज अपना पक्ष रखेगी। इस पर रोहतगी ने कहा- हां, ब्रिटिश उपनिवेशवादियों के 1860 के नैतिक मूल्यों से प्राकृतिक सेक्स को परिभाषित नहीं किया जा सकता है। प्राचीन भारत की नैतिकता विक्टोरियन नैतिकता से अलग थी।

जस्टिस नरीमन ने रोहतगी से पूछा कि क्या यह उनका तर्क है कि समलैंगिकता प्राकृतिक होती है ? रोहतगी ने महाभारत के शिखंडी और अर्धनारीश्वर का भी उदाहरण दिया कि कैसे धारा 377 यौन नैतिकता की गलत तरह से व्याख्या करती है। रोहतगी बोले- धारा 377 मानवाधिकारों का हनन करती है। समाज के बदलने के साथ ही नैतिकताएं बदल जाती हैं। हम कह सकते हैं कि 160 साल पुराने नैतिक मूल्य आज के नैतिक मूल्य नहीं होंगे।

रोहतगी बोले- धारा 377 'प्राकृतिक' यौन संबंध के बारे में बात करती है। समलैंगिकता भी प्राकृतिक है, यह अप्राकृतिक नहीं है। रोहतगी ने कहा- पश्चिमी दुनिया में इस विषय पर शोध हुए हैं। इस तरह की यौन प्रवृत्ति के वंशानुगत कारण होते हैं।

रोहतगी ने कहा- इस केस में जेंडर से कोई लेना-देना नहीं है। यौन प्रवृत्ति का मामला पसंद से भी अलग है। यह प्राकृतिक होती है। यह पैदा होने के साथ ही इंसान में आती है। मुकुल रोहतगी बोले- यौन रुझान और लिंग (जेंडर) अलग-अलग चीजें हैं। यह केस यौन प्रवृत्ति से संबंधित है।

रोहतगी का तर्क- धारा 377 के होने से एलजीबीटी समुदाय अपने आप को अघोषित अपराधी महसूस करता है। समाज भी इन्हें अलग नजर से देखता है। इन्हें संवैधानिक प्रावधानों से सुरक्षित महसूस करना चाहिए। रोहतगी धारा 377 के खिलाफ तर्क दे रहे हैं। वह याचिकाकर्ताओं की ओर से धारा 377 को हटाने के लिए बहस कर रहे हैं।

सुधारात्मक याचिका (क्यूरेटिव पिटीशन) पर शुरू हुई बहस

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बता दें कि सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ समलैंगिक यौन संबंधों के मुद्दे सहित चार अहम मामलों पर आज से सुनवाई शुरू हुई है। मुख्‍य न्‍यायाधीश की अगुवाई वाली बेंच ने मामले को संवैधानिक बेंच को रेफर किया था। समलैंगिकता अपराध की श्रेणी में रखा जाए या नहीं, यह बेंच तय करेगी। सुप्रीम कोर्ट इस मामले में रिव्यू पिटिशन पहले खारिज कर चुका है, जिसके बाद सुधारात्मक याचिका (क्यूरेटिव पिटीशन) दाखिल किया गया था जो पहले से बड़े बेंच को भेजा गया था।

इस याचिका में धारा-377 के कानूनी प्रावधान को चुनौती दी गई है। धारा-377 के तहत कानूनी प्रावधान है कि दो बालिग भी अगर सहमति से अप्राकृतिक संबंध बनाते हैं तो वह अपराध माना जाएगा और इस मामले में 10 साल तक कैद या फिर उम्रकैद की सजा का प्रावधान है। याचिका में कहा गया है कि 377 के तहत जो प्रावधान है वह संविधान के खिलाफ हैं। पीठ के पांच जजों में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के अलावा चार और जज हैं, जिनमें आरएफ न। रीमन, एएम खानविलकर, डीवाई चंद्रचूड़ और इंदु मल्होत्रा शामिल हैं।   

बता दें कि शीर्ष अदालत ने 11 दिसंबर 2013 को समलैंगिकों के बीच यौन संबंधों को अपराध घोषित कर दिया था। दिल्ली हाईकोर्ट ने 2009 में अपने एक फैसले में कहा था कि आपसी सहमति से समलैंगिकों के बीच बने यौन संबंध अपराध की श्रेणी में नहीं होंगे। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को खारिज करते हुए समलैंगिक संबंधों को आईपीसी की धारा 377 के तहत अवैध घोषित कर दिया था। शीर्ष अदालत के इस फैसले के बाद पुनर्विचार याचिकाएं दायर की गईं और जब उन्हें भी खारिज कर दिया गया तो प्रभावित पक्षों ने क्यूरेटिव पिटीशन दायर की ताकि मूल फैसले का फिर से परीक्षण हो।

क्या है IPC की धारा 377

आईपीसी की धारा 377 के तहत दो लोग आपसी सहमति या असहमति से अप्राकृतिक संबंध करने पर अगर दोषी करार दिए जाते हैं, तो उन्हें 10 साल से लेकर उम्रकैद की सजा हो सकती है।

समलैंगिक कब-क्‍या हुआ

- वर्ष 2001 में समलैंगिक लोगों के लिए आवाज उठाने वाली संस्था नाज फाउंडेशन की ओर से हाई कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल

- वर्ष 2004 में दिल्‍ली हाई कोर्ट ने अर्जी खारिज की। इसके बाद  याचिकाकर्ताओं ने रिव्यू पिटिशन दाखिल किया। कोर्ट ने इसे भी खारिज कर दिया।

-  हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। तब अदालत ने हाई कोर्ट से इस मामले को दोबारा सुनने को कहा।

- वर्ष 2008 में हाई कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा।

- दिल्ली हाई कोर्ट ने 2009 में अपने एक फैसले में कहा था कि आपसी सहमति से समलैंगिकों के बीच बने यौन संबंध अपराध की श्रेणी में नहीं होंगे

- हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। 15 फरवरी, 2012 से इस मामले में रोजाना सुनवाई। मार्च 2012 को सुप्रीम कोर्ट में फैसला सुरक्षित रखा।

- 11 दिसंबर 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में समलैंगिकता के मामले में उम्रकैद तक की सजा के प्रावधान वाले कानून को बहाल रखा।

- 28 जनवरी 2014 को सुप्रीम कोर्ट होमो सेक्सुअलिटी मामले में दिए गए फैसले को रिव्यू करने की अर्जी खारिज कर दी थी।


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