एक-दूसरे की आस्था का सम्मान करके देश को बढ़ाएं आगे, धर्म-जाति से ऊपर उठकर सोचने की जरूरत
राम किस तरह हमारी दिनचर्या में समाए हुए हैं और कितना जरूरी है एक-दूसरे की आस्था का सम्मान करते हुए मिल-जुल कर देश को आगे बढ़ाना।
नई दिल्ली [अरुण श्रीवास्तव]। भगवान श्रीराम सिर्फ हमारी आस्था से ही नहीं जुड़े हैं, बल्कि उनका नाम पूजन-भजन से कहीं आगे हम सभी के जीवन में है, हमारे रोम रोम में है। इस बात को सुप्रीम कोर्ट के पांच विद्वान न्यायाधीशों ने भी अच्छी तरह से सोचा-समझा, तभी तो अयोध्या में राम के जन्म को निर्विवाद मानते हुए तर्कों के साथ वहां उनका मंदिर बनाने की इजाजत देकर करोड़ों भारतवासियों का दिल जीत लिया। हालांकि उन्होंने एकदूसरे की आस्था का सम्मान करने की नसीहत भी दी, ताकि गंगा-जमुनी तहजीब वाले देश का हर नागरिक जाति-धर्म से ऊपर उठकर देश को विकास की राह पर गति दे सके। तभी तो हमारे प्रधानमंत्री ने भी अब राम-रहीम भक्ति से ऊपर उठकर ‘भारतभक्ति’ की भावना को सशक्त करने का आह्वान किया। राम किस तरह हमारी दिनचर्या में समाए हुए हैं और कितना जरूरी है एक-दूसरे की आस्था का सम्मान करते हुए मिल-जुल कर देश को आगे बढ़ाना, यहां जानें...
गत शुक्रवार को जब सुप्रीम कोर्ट की तरफ से अगले दिन सुबह साढ़े दस बजे राम जन्मभूमि मुद्दे पर निर्णायक फैसला सुनाने की सूचना दी गई, तो अयोध्या से लेकर देश में हर तरफ अनिश्चितता और संशय का माहौल महसूस किया जाने लगा था। किसी भी तरह की अनहोनी से बचने के लिए जिस तरह शाम से ही अयोध्या में हजारों पुलिसकर्मियों और आरएएफ के जवानों की तैनाती की गई, उससे एकबारगी अयोध्यावासी भी संशय में थे। यही कारण है कि वहां देर रात तक लोग जरूरी चीजों की खरीददारी करते दिखे।
दूसरे शहरों में भी तमाम लोगों ने अगले दिन की जाने वाली अपनी यात्राओं को स्थगित कर दिया। हालांकि यह भी सच है कि राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद के बावजूद अयोध्या के लोग सदियों से मिल-जुल कर रहते रहे हैं। सारी आशंकाएं तब निर्मूल साबित हो गईं, जब अगले दिन सुबह यानी शनिवार को सुप्रीम कोर्ट के पांच न्यायाधीशों ने सर्वसम्मति से फैसला दिया, जिसका समूचे देश में स्वागत किया गया। शाम होते-होते अयोध्या की सड़कों पर चहल-पहल फिर पहले जैसी हो गई और सरयू के तट पर भव्य आरती के साथ हर्षोल्लास का इजहार किया गया। एक तरह से शनिवार का दिन अयोध्यावासियों के लिए फिर किसी दीवाली से कम नहीं था।
आशा का संचार करता है नाम
राम-नाम हमारे जीवन में किस तरह रचा बसा है, इसकी मिसाल आज भी गांवों-कस्बों से लेकर शहरों तक हर जगह देखने को मिल जाएगी। गली-मोहल्लों में अभिवादन के रूप में लोग एकदूसरे से ‘राम राम’ कहते मिल जाएंगे। बेशक कुछ विद्वान लोग इसे पोंगापंथी कहें, लेकिन शायद वे भारत के जनमानस को समझ ही नहीं पाए, जो हमेशा बौद्धिकता के चश्मे से इसे देखते रहे। आज भी सिर्फ गांवों में ही नहीं, कस्बों-शहरों और यहां तक कि महानगरों की सोसायटियों तक के घरों में रामचरित मानस का सस्वर पाठ होते साल के बारहों महीने सुना जा सकता है। इसे ‘रामायण’ बिठाने/कराने के रूप में बहुलता से देखा जा सकता है।
आदर्श हैं पुरुषोत्तम राम
राम को पुरुषों में सबसे उत्तम कहा जाता है, तो सिर्फ इसीलिए कि उन्होंने हर किसी का ख्याल रखा। उन्होंने छोटे-बड़े, गरीब-अमीर यहां तक कि पशुओं-पक्षियों के साथ भी उतनी ही आत्मीयता का व्यवहार किया। कैसे उन्होंने हर रिश्ते को प्रेम और भरपूर आदर के साथ निभाया, यह देशवासियों के लिए हमेशा मिसाल रहा है। माता कैकेयी द्वारा पिता से मांगे गए वचन की लाज रखने के लिए चौदह साल के वनवास पर जाने का निर्णय लेने में उन्होंने किंचित भी देरी नहीं की। वनवास के दौरान रावण द्वारा पत्नी सीता का अपहरण कर लेने के बाद संसाधनहीन राम ने प्रेम-आत्मीयता से ही जंगल में रहने वाले वानरों, रीछों-भालुओं आदि को अपना बनाकर उन्हीं से अपनी सेना बना ली और फिर अंतत: रावण जैसे महाशक्तिशाली को हरा दिया। इतना ही नहीं, रावण को पराजित कर देने के बाद लंका पर खुद कब्जा करने की बजाय उन्होंने रावण के भाई विभीषण को सिंहासनारूढ करा दिया। क्या इतिहास में ऐसी कोई और मिसाल मिलती है?
रामराज्य की परिकल्पना
वनवास और लंका विजय के बाद अयोध्या वापस लौटकर जब राम ने सिंहासन संभाला, तो हर किसी का ध्यान रखा। कहा जाता है कि उनके समय में कोई दुखी नहीं था। चाहे कोई कैसा भी क्यों न हो, सबकी सुनी जाती थी। उनके राज में कहीं कोई ईष्र्या-द्वेष नहीं था। तभी तो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी तक ने भारत में फिर से रामराज्य की परिकल्पना की यानी उन्होंने फिर एक ऐसे भारत के बारे में सोचा था, जहां सब मिल-जुल कर अमन-चैन से रहें और देश को तरक्की की राह पर आगे बढ़ाएं।
आस्था के साथ, आगे की परवाह
रामजन्म भूमि पर फैसला आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ट्वीट में यह स्पष्ट किया कि इसे किसी की हार या जीत के रूप में कतई नहीं देखा जाना चाहिए। इस मौके पर उन्होंने सभी देशवासियों से अपील करके यह भी बता दिया कि एक-दूसरे की आस्था का सम्मान करते हुए हम सभी को अब मिल-जुल कर देश को आगे बढ़ाने का पुरजोर प्रयास करना चाहिए।
युवा सोचें-संकल्प लें तरक्की का
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के साथ एक बार फिर यह स्पष्ट हो गया कि भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में हर किसी को अपनी आस्था के साथ रहने का अधिकार है। साथ ही एक आस्था के नागरिकों को दूसरी आस्था के नागरिकों के क्रियाकलापों में दखल नहीं देना चाहिए और न ही एक दूसरे पर दबदबा कायम करने की कोई कोशिश करनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद प्रधानमंत्री ने नागरिकों, खासकर युवाओं से देश की तरक्की में अपना योगदान देने का आह्वान करके एक तरह से यह खास संदेश दिया है कि हम सभी को अब जाति-धर्म से ऊपर उठकर सोचने की जरूरत है। देश के लोग भी यह समझ रहे हैं कि जाति-धर्म के नाम पर कथित नेताओं के बहकावे में आने से कुछ हासिल नहीं होने वाला है, उल्टे अमन-चैन का माहौल बिगड़ने से उनका खुद का ही नुकसान होगा। जाहिर है इससे देश का भी नुकसान होगा। क्या देश का कोई भी नागरिक ऐसा चाहेगा? बिल्कुल नहीं।
खुलेगा पर्यटन-रोजगार का द्वार
इस ऐतिहासिक फैसले के बाद यह माना जा रहा है कि केंद्र और राज्य सरकार अयोध्या को पर्यटन के विश्व मानचित्र पर लाने के लिए हरसंभव त्वरित प्रयास करेगी। हालांकि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ ने आगे बढ़कर पिछले तीन साल से लगातार अयोध्या में भव्य दीपावली का आयोजन करके, जिले का नाम अयोध्या करके और विकास कार्यों को बढ़ावा देकर इसकी शुरुआत कर दी है। राम मंदिर के निर्माण के साथ अयोध्या की रौनक निश्चित रूप से और बढ़ेगी और देश-दुनिया के लोग वहां हिंदू-मुस्लिम सौहार्द की अनूठी मिसाल देख सकेंगे।