आम्रपाली सीएमडी समेत तीन निदेशक हिरासत में, पढ़ें- सुप्रीम कोर्ट का पूरा आदेश
सुप्रीम कोर्ट पहले ही आम्रपाली समूह के सीएमडी अनिल शर्मा समेत अन्य निदेशकों को जेल भेजने की चेतावनी दे चुका था। 40000 से ज्यादा निवेशक फंसे हैं आम्रपाली की विभिन्न परियोजनाओं में।
नई दिल्ली (जेएनएन)। सुप्रीम कोर्ट ने फॉरेंसिक ऑडिट के लिए दस्तावेज मुहैया कराने के आदेश का पालन न करने पर मंगलवार को आम्रपाली ग्रुप के प्रति कड़ा रुख अपनाते हुए कंपनी के तीन निदेशकों को पुलिस हिरासत में भेज दिया है। कोर्ट ने आम्रपाली के रवैये पर नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि वह कोर्ट से लुका छिपी खेल रहा है और कोर्ट को गुमराह करने की कोशिश कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने तीनों निदेशकों अनिल शर्मा, शिव प्रिया और अजय कुमार को कोर्ट से ही सीधे पुलिस हिरासत मे भेजते हुए कहा कि जब तक वे दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराते तब तक हिरासत में रहेंगे।
न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा व न्यायमूर्ति यूयू ललित की पीठ ने आम्रपाली की अधूरी परियोजनाओं को पूरा करने की होम बायर्स की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए ये निर्देश दिये। इसके साथ ही कोर्ट ने आदेश का पालन न करने पर आम्रपाली समूह की सभी कंपनियों और उनके निदेशकों को अवमानना नोटिस भी जारी किया है।
कोर्ट ने पुलिस को आदेश दिया कि वह तीनों निदेशकों अनिल कुमार शर्मा, शिव प्रिया और अजय कुमार को कोर्ट से सीधे उनके घर, ऑफिस और उन जगहों पर ले जाएं जहां दस्तावेज मिल सकते हों। कोर्ट ने दिल्ली पुलिस के डीसीपी, नोएडा और ग्रेटर नोएडा के एसएसपी से इस संबंध में जरूरी कार्यवाही करने को कहा है।
कोर्ट ने दिल्ली, नोएडा और ग्रेटर नोएडा पुलिस को निर्देश दिया है कि वे सभी जरूरी दस्तावेजों को जब्त कर फॉरेंसिक ऑडिटर को सौंपें। इतना ही नहीं डीआरटी के गत 4 अक्टूबर के आदेश में जिन दस्तावेजों का जिक्र है, वे भी पुलिस को सौंपे जाएं। कोर्ट ने कहा कि अगर दस्तावेज बहुत ज्यादा हों तो उन्हें एक कक्ष में रखा जाए और उसकी चाभी फॉरेंसिक ऑडीटर्स को सौंपें।
सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस से कहा कि वह तीनों निदेशकों को कंपनी के विधायी ऑडिटर्स के पास भी ले जाएं और वहां उनके कब्जे से सारे दस्तावेज लेकर फारेंसिक आडिटर्स को दिये जाएं। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि 2008 से लेकर 2015 और 2015 से लेकर 2018 तक का एक भी पेपर कंपनी के निदेशकों या विधायी ऑडिटर्स के कब्जे में नहीं छूटना चाहिए। फॉरेंसिक ऑडिटर्स को सभी दस्तावेज पुलिस सौंपेगी। कोर्ट ने कहा कि जब तक ये तीनों निदेशक सारे दस्तावेज नहीं सौंप देते तब तक वे पुलिस हिरासत में रहेंगे। कोर्ट मामले पर 24 अक्टूबर को फिर सुनवाई करेगा।
गत 12 सितंबर को कोर्ट ने आम्रपाली समूह की सभी 46 कंपनियों के 2008 से 2015 और 2015 से 2018 तक के ओरिजनल दस्तावेज सौंपे जाएं। कंपनी ने आदेश का पालन नहीं किया। कोर्ट ने 26 सितंबर को फिर दस्तावेज फॉरेंसिक ऑडिटर्स को सौंपने का आदेश दिया। कोर्ट ने पवन कुमार अग्रवाल और रवि भाटिया को फॉरेंसिक ऑडिटर्स नियुक्त किया था।
मंगलवार को कोर्ट मे पेश फॉरेंसिक ऑडिटर्स ने कोर्ट को बताया कि दस्तावेज सौंपने के आदेश पर अब तक अमल नहीं हुआ है। उन्हें सिर्फ दो कंपनियों आम्रपाली जोडियाक और आम्रपाली प्रिंसले एस्टेट के कुछ दस्तावेज दिये गए हैं। आदेश के बावजूद दस्तावेज नहीं सौंपने पर कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा कि ये जान बूझकर कोर्ट के आदेश की खुलेआम अवहेलना करना और दस्तावेजों को नष्ट करने का प्रयास करना है।
कोर्ट ने कहा कि परिस्थितियों के देखते हुए पुलिस को दस्तावेज जब्त करने का आदेश देने के अलावा कोई और विकल्प नहीं बचा है। कोर्ट ने आदेश का पालन न करने पर तीनों निदेशकों को नोटिस जारी करके पूछा है कि क्यों न उनके खिलाफ न्यायालय की अवमानना की कार्यवाही की जाए। इसके साथ ही कोर्ट ने दिल्ली, नोएडा और ग्रेटर नोएडा पुलिस को सभी दस्तावेज जब्त करके फारेंसिक आडिटर्स को सौंपने का आदेश दिया।
कंपनी के निदेशक नहीं छोड़ेंगे देश
इसके अलावा कोर्ट ने प्रत्येक फॉरेंसिक ऑडिटर्स को 20-20 लाख रुपये आम्रपाली हास्पिटलिटी सर्विस के खाते से देने का आदेश दिया है। कोर्ट ने कंपनी के आठ निदेशकों शिव प्रिया, अजय कुमार, सुभाष चंद्र, अमरेश कुमार, सुनील कुमार, सुधीर कुमार चौधरी, अनिल कुमार शर्मा और विनय विशाल तथा तीन पूर्व निदेशक राकेश महाजन, इफ्तिखार अहमद और पल्लवी मिश्रा से कहा है कि कंपनी का कोई भी निदेशक या विधायी ऑडिटर्स देश छोड़ कर नहीं जाएगा। सभी अपने पासपोर्ट दिल्ली के तिलक मार्ग थाने के थानाध्यक्ष को सौंप देंगे। हालांकि कोर्ट ने साफ किया है कि ये आदेश कंपनी के नामित निदेशकों पर नहीं लागू होगा।
दिल्ली आर्थिक अपराध शाखा भी करेगी कार्रवाई
इसके साथ ही कोर्ट ने दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा को मामले में जांच करके चार्जशीट दाखिल करने की छूट दे दी है। कोर्ट ने पूर्व आदेश स्पष्ट करते हुए कहा कि उन्होंने पहले भी इस पर रोक नहीं लगाई थी कोर्ट ने सिर्फ अधूरी परियोजनाओं के बारे में किसी तरह की दंडात्मक कार्यवाही करने से रोका था। कोर्ट ने पुलिस से की गई कार्यवाही पर तीन महीने में रिपोर्ट देने को कहा है।
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