जानिए- 600 से अधिक धमकी मिलने के बाद भी डटकर खड़ी इस भारतीय युवती के बारे में
पुरुषवादी धार्मिक कट्टरपंथ ही एकमात्र चुनौती है। इसी सोच ने महिलाओं को दोयम दर्जा दिया। हम इस सोच पर प्रहार कर रहे हैं तो ये कट्टरपंथी महिलाओं को ही आगे कर हमें रोकना चाहते हैं।
नई दिल्ली [अतुल पटेरिया]। तृप्ति देसाई देश में महिला अधिकारों की बुलंद आवाज बन गई हैं। बुलंद इतनी कि हर चुनौती जिसके आगे नतमस्तक हो जाए। हौसले और विश्वास से भरी हुई तृप्ति देसाई ने सोमवार को दैनिक जागरण से कहा, हमारे संविधान को बने 70 साल होने जा रहे हैं, लेकिन आज भी हमें (महिलाओं को) समानता के मौलिक अधिकार के लिए इस तरह भीषण संघर्ष करना पड़ रहा है। यह लोकतंत्र के लिए चिंतनीय है। हम सभी को इस बारे में अवश्य सोचना चाहिए। शनि शिंगणापुर, त्र्यंबकेश्वर, कपालेश्वर, महालक्ष्मी, सबरीमालामंदिर और हाजी अली दरगाह सहित उपासना के ऐसे बड़े केंद्रों में जहां महिलाओं को प्रवेश और पूजा का ‘बराबरी’ का हक नहीं था, तृप्ति देसाई महिलाओं की आवाज बनीं। जानलेवा हमले हुए, जमकर विरोध हुआ, लेकिन महिलाओं के इस विशेष अधिकार के लिए कारगर लड़ाई लड़ी। ‘भूमाता रणरंगिणी ब्रिगेड’ की अध्यक्षा पुणे निवासी तृप्ति देसाई ने ‘दैनिक जागरण’ को दिए विशेष साक्षात्कार में इस गंभीर मसले पर खुलकर अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि लड़ाई इसी तरह जारी रहेगी, जब तक कि समानता का अधिकार हर स्तर पर हमें नहीं मिल जाता है।
‘मातृ शक्ति’ अपवित्र कैसे
तृप्ति ने कहा, संविधान में उपासना का अधिकार सभी को समान रूप से प्राप्त है। तब धार्मिक कट्टरपंथ को तय करना ही होगा, स्वघोषित यह पुरुषवादी कट्टरता बड़ी है या भारतीय संविधान? यह धार्मिक मसला कतई नहीं है क्योंकि किसी भी धर्म में महिलाओं को दोयम दर्जे का नहीं माना गया है। हिंदू धर्म में तो नारी का स्थान सर्वोच्च है। वह मातृ शक्ति और शक्ति स्वरूपा मानी गई है। उसे अद्र्धांगिनी कहा गया है। यानी बराबरी की हकदार। फिर ये दोयम दर्जा किसने, कब, और क्यों तय कर दिया? हमें यह गंभीरता से सोचना होगा। मुझे हंसी आती है कि जिनका जन्म महिलाओं के गर्भ से होता है, वे पुरुष ही उसे अपवित्र ठहरा रहे हैं। कट्टरपंथी पुरुषों की यह मानसिकता बदलनी चाहिए। हम इसे बदल कर रहेंगे। मुझे जान से मारने की बहुत धमकियां मिल चुकी हैं, लेकिन मैं डरने वाली नहीं हूं। हमारा संघर्ष तब तक जारी रहेगा जब तक समानता का हर अधिकार हमें समाज से प्राप्त नहीं हो जाता है।
अंजाम क्या होगा
तृप्ति ने कहा, हर स्तर पर बराबरी का हक, यही इस लड़ाई का अंजाम होगा। रूढ़िवादी सोच का अंत होना चाहिए। हमने इसी पर प्रहार किया, लिहाजा हमारा विरोध होना लाजिमी था। हम सदियों पुरानी धार्मिक कुरीति को खत्म करने पर आमादा हैं। शनि शिंगणापुर में हमने 400 साल पुरानी परंपरा तोड़ी। आज लाखों महिलाएं इस मंदिर में पूजा कर पा रही हैं। हाजी अली दरगाह में भी यही हुआ। त्र्यंबकेश्वर, कपालेश्वर, महालक्ष्मी और सबरीमाला मंदिर में भी राह बनी। यह हमारे आंदोलन की अब तक की बड़ी सफलता रही है। हमने महिला अधिकारों को हिंदू-मुस्लिम में नहीं बांटा।
चुनौती किस रूप में है
पुरुषवादी धार्मिक कट्टरपंथ ही एकमात्र चुनौती है। इसी सोच ने महिलाओं को दोयम दर्जा दिया। आज जब हम इस सोच पर प्रहार कर रहे हैं तो ये कट्टरपंथी महिलाओं को ही आगे कर हमें रोकना चाहते हैं। उनकी योजना है कि महिलाओं के विरोध में महिलाओं को ही खड़ा कर दिया जाए तो यह आंदोलन अपनी धार खो देगा। लेकिन हम ऐसा होने नहीं देंगे। देश में संविधान सर्वोच्च सत्ता है, जो महिला- पुरुषों को समानता से देखता है। मेरा सवाल है कि 1000 साल पुरानी गलत परंपराएं आज 21वीं सदी में भी क्यों ढोई जा रही हैं। आज जब महिला कंधे से कंधा मिलाकर आर्थिक क्षेत्र में पुरुष की बराबरी कर रही है तो धार्मिक और सामाजिक क्षेत्र में उससे दोयम दर्जे का व्यवहार हमें मान्य नहीं है। यह सोच बदलनी चाहिए।
राजनीतिक महत्वाकांक्षा और पब्लिसिटी के आरोप क्यों
तृप्ति ने स्पष्ट किया, मेरा राजनीति में आने का कोई इरादा फिलहाल नहीं है। जो मुहिम मैंने शुरू की है, उसे अंजाम पर पहुंचाना ही एकमात्र मकसद है। शनि शिंगणापुर और हाजी अली में महाराष्ट्र की भाजपा सरकार ने हमारी बात सुनी, लेकिन सबरीमाला में भाजपा पक्ष में नहीं दिखी पर हमने सबरीमाला के लिए लड़ाई जारी रखी। लिहाजा मुझ पर किसी पार्टी या राजनीतिक विचारधारा का ठप्पा नहीं लगाया जा सकता है। हां, देश की महिलाएं हमारे समर्थन में आ रही हैं, उनके परिवार और समाज का बड़ा हिस्सा हमसे सहमत है। यही अब तक की कामयाबी है। सिलसिला यूं ही चलता रहेगा।
धमकियों पर रिपोर्ट क्यों नहीं
तृप्ति ने कहा, नवंबर से लेकर अब तक मुझे सोशल मीडिया पर खुलेआम जान से मारने की 600 से अधिक धमकियां मिल चुकी हैं। इससे पहले मुझ पर दो बार जानलेवा हमला भी हुआ। लेकिन मैं शिकायत नहीं कराना चाहती क्योंकि मैं इस विरोध को समझती हूं। जो पहले सख्त विरोध में थे, आज ऐसे अनेक पुरुष पत्नी सहित शनि शिंगणापुर में दर्शन करने जा रहे हैं। आज वे मुझसे पूरी तरह सहमत हैं। मुझे धन्यवाद देते हैं, इसलिए मैं शिकायत नहीं करना चाहती बल्कि सोच बदलना चाहती हूं।
बन गईं बुलंद आवाज
तृप्ति देसाई ने सबरीमाला के अलावा मुंबई स्थित हाजी अली दरगाह, महाराष्ट्र के शनि शिंगणापुर, नासिक के त्र्यंबकेश्वर, कोल्हापुर के महालक्ष्मी और कपालेश्वर और मंदिरों के द्वार महिलाओं के लिए खुलवा दिए। 2010 में महिलाओं के हक के लिए पुणे में ‘भूमाता रणरंगिणी ब्रिगेड’ की स्थापना करने वाली तृप्ति ने इसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा। धार्मिक स्थलों पर महिलाओं को बराबरी का दर्जा दिलाने के लिए उन्होंने सक्रिय मुहिम छेड़ दी। हैरतअंगेज साबित होने वाली यह मुहिम अंतत: कारगर साबित होती दिखी। कई जगहों पर महिलाओं के प्रवेश पर लगी रोक हटती गई। आज उनकी इस ब्रिगेड 5000 से ज्यादा महिलाएं जुड़ी हुई हैं। सबरीमाला मंदिर में भी महिलाओं को प्रवेश करने और पूजा करने की अनुमति मिलने के पीछे सबसे अहम योगदान तृप्ति देसाई का रहा।
यह भी जानें
- नवंबर में सबरीमाला मंदिर में प्रवेश करने भी पहुंचीं थीं, हवाईअड्डे पर ही रोक दिया गया
- तब से मिल रहीं जान से मारने की धमकियां
- फेसबुक पर खुलेआम
- मिलीं ऐसी 600 से अधिक धमकियां
- नासिक में हुआ था जानलेवा हमला, बाल-बाल बचीं
- कोल्हापुर में भी झेला हमला
- घातक चोटें आईं, आइसीयू में रहीं भर्ती
- अनेक बार मारपीट का सामना भी किया
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