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तेजी से बढ़ रही दिल्ली की आबादी, आधारभूत ढांचा वही, प्लानिंग विभाग नहीं तो प्लान कहां होगा

संयुक्त राष्ट्र की हालिया रिपोर्ट से दिल्लीवासियों के माथे पर बल आना स्वभाविक है।आबादी बढ़ने पर सबसे बुरी तरह हमारा परिवहन व्यवस्था प्रभावित होगा।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 24 May 2018 01:58 PM (IST)Updated: Thu, 24 May 2018 08:17 PM (IST)
तेजी से बढ़ रही दिल्ली की आबादी, आधारभूत ढांचा वही, प्लानिंग विभाग नहीं तो प्लान कहां होगा
तेजी से बढ़ रही दिल्ली की आबादी, आधारभूत ढांचा वही, प्लानिंग विभाग नहीं तो प्लान कहां होगा

[जागरण स्पेशल]। संयुक्त राष्ट्र की हालिया रिपोर्ट से दिल्लीवासियों के माथे पर बल आना स्वभाविक है। आखिर दस साल बाद आबादी बढ़ने पर संसाधनों की कमी की वजह से समस्याएं जो आ खड़ी होंगी। आबादी बढ़ने पर सबसे बुरी तरह हमारा परिवहन व्यवस्था प्रभावित होगा। इसलिए यह जरूरी है कि अभी से ट्रैफिक और परिवहन की व्यवस्था को दुरुस्त किया जाए। सरकार को बहुविकल्पीय परिवहन प्रणाली की तरफ ध्यान देना होगा। मसलन, मोनोरेल बड़े बाजारों में एक बेहतरीन विकल्प साबित हो सकती है। नेहरू प्लेस, द्वारका, रोहिणी जैसे इलाकों में मोनोरेल चलाई जा सकती है। कोई भी व्यक्ति मेट्रो स्टेशन से उतर इसका उपयोग करे।

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इसी तरह नदियों को भी बतौर परिवहन प्रयोग किया जाना चाहिए। दिल्ली में बड़ी दूरी के लिए तो उपयोग फिलहाल मुमकिन नहीं लेकिन पांच किलोमीटर के दायरे में उपयोग किया जा सकता है। इससे सड़कों पर वाहनों का दबाव कम करने में काफी सुविधा होगी। सार्वजनिक परिवहन प्रणाली को भविष्य के मद्देनजर और सशक्त बनाना होगा। इसी तरह इंफ्रास्ट्रक्चर पर भी विशेष ध्यान देना होगा। इसमें बिजली, पानी, सीवेज, आवास आदि शामिल हैं। इन बिंदुओं पर सरकार को विशेष ध्यान देना होगा क्योंकि ये सभी मनुष्य की बुनियादी सुविधाओं से जुड़ी है।

काश कूड़ा पैदा ही न होने दिया जाए

साथ ही साथ कूड़ा प्रबंधन पर भी ध्यान देना होगा नहीं तो शहर में सारी सुविधाएं बेमानी लगेंगी। इसके लिए वेस्ट टू एनर्जी प्लांट लगाने पर जोर देना होगा। लोगों को जागरूक करना भी बहुत जरूरी है। आप देखिए कि यूरोप में 80 फीसद कूड़ा पैदा ही नहीं होने दिया जाता है। यूरोप की तर्ज पर दिल्ली में लोगों को कूड़ा निस्तारण के प्रति जागरूक करना होगा। नगर निगम, दिल्ली सरकार को लोगों का दरवाजा खटखटाना होगा। सोशल इंफ्रास्ट्रक्चर जिसमें पार्क, स्वास्थ्य, सुरक्षा, पुलिस, अग्निशमन समेत अन्य विभाग आते हैं।

इन्हें आबादी बढ़ने पर अपनी जिम्मेदारियां निभाने में आने वाली चुनौतियों को लेकर अभी से तैयार होना होगा। दिल्ली में 60 फीसद इलाका अभी भी अनियोजित है। यह प्लान दिल्ली सरकार को बनाना होता है। लेकिन सरकार के पास खुद का टाउन प्लानिंग विभाग ही नहीं है। सरकार को आउटसोर्स करना चाहिए। दिल्ली सरकार को इस दिशा में जल्द ही गंभीर होना पड़ेगा।

निगम एक टाउन प्लानर तो नियुक्त करे

नगर निगम को भी चाहिए कि एक इंजीनियर भले ही कम नियुक्त करे लेकिन एक टाउन प्लानर जरूर नियुक्त करे ताकि शहर की शक्ल सूरत ना बिगड़े। मास्टर प्लान 2021 में लोकल एरिया प्लानिंग की बात कही गई है लेकिन यह लोकल एरिया प्लानिंग पर काम नहीं हो रहा है। क्योंकि लोकल एरिया प्लानिंग में सीवर, पानी, बिजली समेत अन्य समस्याएं आती हैं इसलिए इस पर विशेष जोर देना होगा।

तेजी से बढ़ रही आबादी, आधारभूत ढांचा वही

आबादी के मामले में ये शहर एनसीआर में पहले पायदान पर है। उत्तर प्रदेश में तीसरा स्थान है। दिल्ली के करीब होने के कारण यहां की आबादी तेजी से बढ़ रही है। एक दशक में 42.27 फीसद की दर से इजाफा हो रहा है। यही वजह है कि जनसंख्या का घनत्व 2800 से बढ़ कर 3971 हो गया है। जिससे साफ है कि रहने वाले ज्यादा और जगह कम होती जा रही है। यह जानते समझते हुए भी यहां के आधारभूत ढांचे को विस्तार देने के बारे में कोई ठोस योजना नहीं बनाई गई। उसका नतीजा यह है कि आबादी बढ़ने के साथ समस्याओं में इजाफा हो रहा है।

500 बेड का एक भी हॉस्पिटल नहीं

केंद्रीय शहरी एवं विकास मंत्रालय ने शहरों में सुविधाओं के मानक अर्बन एंड रीजनल डेवलपमेंट प्लांस फॉर्मूलेशन एंड इंप्लीमेंटेशन (यूडीपीएफआइ) में तय किए हैं। यहां इसके तहत मानक पूरे नहीं हो रहे। इन मानकों की बात करें तो 2.50 लाख की आबादी पर 500 बेड का एक हॉस्पिटल होना चाहिए, लेकिन यहां ऐसा एक भी अस्पताल नहीं है। 300 से 350 बेड के दो समूहों के अस्पताल हैं, जो नाकाफी हैं। एक लाख की आबादी पर 100 बेड के मानक को भी ये शहर पूरा नहीं कर पा रहा। शिक्षा क्षेत्र में उच्च शिक्षण संस्थानों की कमी है। 1.25 लाख की आबादी पर एक कॉलेज होना आवश्यक है। इस लिहाज से शहर में 30 कॉलेज होने चाहिए। शहर में सिर्फ 13 कॉलेज हैं। दो लाख आबादी पर एक फायर स्टेशन भी नहीं है। 10 लाख जनसंख्या पर एक फायर स्टेशन बना है।

ग्लोबल विलेज की फीकी चकाचौंध

ग्लोबल विलेज गुरुग्राम शहर की चमक और चकाचौंध में सब यहां चले तो आते हैं। 20 साल में यहां करीब 30 लाख लोग आकर बसे हैं। अगर सुविधाओं पर गौर करें तो हुडा, नगर निगम और टाउन एंड कंट्री  विभाग मूलभूत सुविधाएं भी मुहैया नहीं करवा पाए हैं। हाल ही में शहर में मास्टर पेयजल, सीवर, रोड व बड़े प्रोजेक्ट की जिम्मेदारी गुरुग्राम मेट्रोपॉलिटन डेवलपमेंट अथॉरिटी को मिली है, लेकिन घरों तक सुविधाएं पहुंचाने का जिम्मा निगम के पास है।

सड़क : निगम में ज्यादातर विकसित हो चुके सेक्टर शामिल हो चुके हैं। इन सेक्टरों व पूरे शहर के लिए 102 करोड़ रुपये खर्च किए गए। लेकिन फिर भी गड्ढे नहीं भरे।

सीवर : नगर निगम के जोन-1,2 में पुराना शहर शामिल है। यहां 30 साल पहले बिछी लाइनें जर्जर हो चुकी हैं।

पेयजल : जीएमडीए ने मास्टर वाटर सप्लाई को टेकओवर कर लिया है। लेकिन निगम एरिया में अब भी समस्या बनी हुई है।

अवैध कॉलोनियां : 2013 में 44 और 2018 में वैध की गई 15 कॉलोनियों से डेवलपमेंट चार्ज निगम नहीं वसूल सका है। नतीजन 59 कॉलोनियों में मूलभूत सुविधाएं नहीं मिल पाई हैं।

ज्यों-ज्यों किसी शहर की आबादी बढ़ती है, उसी अनुसार सरकार विकास की योजनाएं भी बनती हैं। पिछले दिनों सरकार ने मास्टर प्लान-2021 को इसी के तहत मंजूर किया है। अब आगे जो भी योजनाएं बनेंगी वो इसी प्लान के अनुसार और आने वाले सालों में संभावित आबादी को देखते हुए तैयार होंगी। इसमें सड़कें, औद्योगिक इकाईयों के लिए जगह भी होगी और अन्य बुनियादी सुविधाओं की योजनाएं भी।

भूपेंद्र सिंह ढिल्लो, वरिष्ठ नगर योजनाकार,

नगर निगम फरीदाबाद

[जागरण संवाददाता/संजीव कुमार मिश्र से बातचीत के साथ आशीष गुप्ता की रिपोर्ट] 


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