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स्टडी में चौंकाने वाला खुलासा- गर्भ में पल रहे बच्चे तक पहुंच रहा है प्रदूषण, घट रही भ्रण की लंबाई

देशभर में वायु प्रदूषण के कारण अजन्मे बच्चों की लंबाई और वजन भी कम हो रहा है। विशेषकर पीएम 2.5 के महीन प्रदूषक कण भ्रूण के विकास में बाधक बन रहे हैं।

By JP YadavEdited By: Published: Fri, 21 Feb 2020 09:25 AM (IST)Updated: Fri, 21 Feb 2020 09:30 AM (IST)
स्टडी में चौंकाने वाला खुलासा- गर्भ में पल रहे बच्चे तक पहुंच रहा है प्रदूषण, घट रही भ्रण की लंबाई
स्टडी में चौंकाने वाला खुलासा- गर्भ में पल रहे बच्चे तक पहुंच रहा है प्रदूषण, घट रही भ्रण की लंबाई

नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। मां की कोख में पल रहा बच्चा स्वस्थ हो, इसके लिए तमाम उपाय किए जाते हैं, लेकिन हमारे आसपास की जहरीली हवा इन गर्भस्थ शिशु पर बहुत ही बुरा प्रभाव डाल रही है। देशभर में वायु प्रदूषण के कारण अजन्मे बच्चों की लंबाई और वजन भी कम हो रहा है। विशेषकर पीएम 2.5 के महीन प्रदूषक कण भ्रूण के विकास में बाधक बन रहे हैं।

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आइआइटी दिल्ली और भारतीय सांख्यिकीय संस्थान के एक नए अध्ययन ‘अर्ली लाइफ एक्सपोजर टू आउटडोर एयर पॉल्यूशन : इफेक्ट ऑन चाइल्ड हेल्थ इन इंडिया’ में यह चिंताजनक तस्वीर सामने आई है। इसके मुताबिक एयर इंडेक्स के प्रमुख प्रदूषक तत्व पीएम 2.5 के अत्यंत बारीक कण अन्य बीमारियों के कारक बनने के साथ-साथ भ्रूण के विकास में भी बाधा बन रहे हैं। गर्भ के पहले तीन माह भ्रूण की लंबाई 7.9 फीसद, जबकि वजन 6.7 फीसद तक कम हो रहा है।

अध्ययन में पता चला है कि पीएम 2.5 के कण सांस के जरिए शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। गर्भवती महिला के शरीर में ये कण उसकी कोख में पल रहे बच्चे के विकास को भी सीधे तौर पर प्रभावित करते हैं। अगर भ्रूण का विकास ठीक से नहीं हो पाता है तो इसके नतीजे और भी खतरनाक होते हैं। ये बच्चे छोटे कद वाले व अल्पविकसित होते हैं और अनेक समस्याओं से जूझते हैं। भ्रूण के विकास से ही भविष्य में मृत्युदर, बीमारियों का फैलाव, बच्चों का स्वास्थ्य और संभावित उम्र निर्धारित होती है।

इसके अनुसार, भारत में आउटडोर प्रदूषण बहुत से स्थानों पर सुरक्षित मानकों से अधिक है। इसके तहत शहरी, ग्रामीण व जेजे कलस्टर में घरेलू-कामकाजी दोनों महिलाओं व पांच वर्ष तक के बच्चों के स्वास्थ्य के आंकड़े जुटाए गए। 6,01,509 घरेलू महिलाओं और 2,20000 बच्चों पर शोध किया गया व वर्ष 2019 के अंत में तैयार रिपोर्ट में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं।

दिल्ली-एनसीआर की स्थिति पर अध्ययन जारी

दिल्ली-एनसीआर की स्थिति पर अलग से अध्ययन किया जा रहा है। यह अध्ययन आइआइटी दिल्ली के वायुमंडलीय विज्ञान केंद्र के प्रोफेसर कुणाल बाली, डॉ. साग्निक डे और सौरांगशु चौधरी के सहयोग से भारतीय सांख्यिकीय संस्थान (इकोनॉमिक एंड प्लानिंग यूनिट) की प्राची सिंह कर रही हैं।

डॉ. साग्निक डे (प्रोफेसर, वायुमंडलीय विज्ञान केंद्र, आइआइटी दिल्ली) का कहना है कि आइआइटी दिल्ली और भारतीय सांख्यिकीय संस्थान के संयुक्त अध्ययन में सामने आया है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि वायु प्रदूषण मानव स्वास्थ्य पर बहुत ही नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है। बच्चे भी इससे नहीं बच रहे हैं। हालांकि, दो साल से अध्ययन जारी है और अब दिल्ली-एनसीआर के आंकड़े जुटाए जा रहे हैं।

बता दें कि देशभर में हर साल लाखों लोगों की मौत वायु प्रदूषण के चलते हो जाती है, जबकि पूरी दुनिया में यह आकड़ा बड़ी संख्या में तब्दील हो जाता है। दिल्ली में ही हर साल सैकड़ों लोगों की जान वायु प्रदूषण के चलते चली जाती है। 

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