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अत्यधिक दोहन वाले क्षेत्रों में भूजल निकासी पर एनजीटी ने केंद्र को लगाई फटकार

एनजीटी ने सोमवार को इस दलील पर केंद्र सरकार को फटकार लगाई कि अत्यधिक दोहन वाले संकटग्रस्त इलाकों में भूजल निकासी पर प्रतिबंध से कुछ राज्यों की जीडीपी पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है।

By Vinay TiwariEdited By: Published: Mon, 20 Jul 2020 06:13 PM (IST)Updated: Mon, 20 Jul 2020 06:13 PM (IST)
अत्यधिक दोहन वाले क्षेत्रों में भूजल निकासी पर एनजीटी ने केंद्र को लगाई फटकार
अत्यधिक दोहन वाले क्षेत्रों में भूजल निकासी पर एनजीटी ने केंद्र को लगाई फटकार

नई दिल्ली, प्रेट्र। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने सोमवार को इस दलील पर केंद्र सरकार को फटकार लगाई कि अत्यधिक दोहन वाले, संकटग्रस्त और अर्ध-संकटग्रस्त (ओसीएस) इलाकों में भूजल निकासी पर प्रतिबंध से औद्योगिक उत्पादन, रोजगार के अवसरों और कुछ राज्यों की जीडीपी पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है।

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ओसीएस इलाकों में उद्योगों को अनापत्ति प्रमाणपत्र प्रदान नहीं करने के आदेश पर पुनर्विचार करने से इन्कार करते हुए एनजीटी अध्यक्ष जस्टिस एके गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि पेयजल को छोड़कर बुनियादी ढांचा परियोजनाओं, सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्योगों या अन्य उद्योगों अथवा वाणिज्यिक उद्देश्य से छूट प्रदान करना सतत विकास और जनविश्वास के सिद्धांत के खिलाफ होगा।

ट्रिब्यूनल ने जल शक्ति मंत्रालय और केंद्रीय भूजल प्राधिकरण (सीजीडब्लूए) को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि पर्यावरण के प्रभाव का आकलन किए बिना भूजल निकासी की कोई भी सामान्य अनुमति खासकर किसी वाणिज्यिक कंपनी को, नहीं प्रदान की जाए।

पुरानी गाइडलाइंस के मुताबिक उद्योगों को अनुमति देने की दलील पर मंत्रालय की खिंचाई करते हुए एजीटी ने कहा कि कानून का मकसद सतत विकास है और सिर्फ आर्थिक दृष्टिकोण नीति बनाने के लिए पर्याप्त नहीं है खासकर अगर इसका परिणाम पर्यावरण को नुकसान के रूप में होता है।

पीठ ने कहा कि सीजीडब्लूए ने ऐसा कोई दावा नहीं किया है कि नियमन के पिछले 24 वर्षो में भूजल स्तर में कोई सुधार हुआ है और भविष्य में भी सुधार की कोई संभावना नहीं जताई गई है। सीजीडब्लूए ने खुद एक सर्वे कराया है और 6,585 आकलन इकाइयों में से 1,868 की ओसीएस के रूप में पहचान की है।

तमाम राज्यों में जहां प्राकृतिक तरीके से पानी जमा होता था और उसके जरिए भूजल के स्तर में बढ़ोतरी होती थी जोकि अब पूरी तरह से खत्म हो गई है। यदि वो प्राकृतिक स्त्रोत अभी भी मौजूद होते तो भूजल का स्तर इतना अधिक नीचे नहीं होता।

इसके अलावा जिन जगहों पर ऐसे प्राकृतिक स्त्रोत बचे हुए थे वहां पर लोगों ने कब्जा करके उसे और छोटा कर दिया। किसी भी प्रदेश में ऐसे नेचुरल स्त्रोत विकसित नहीं किए गए बल्कि उनको खत्म करने की दिशा में काम किया गया। इसी वजह से दिनोंदिन भूजल का स्तर गिरता ही जा रहा है।


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