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मन में आती नेगेटिविटी को दूर करने और खुद को मजबूत रखने के लिए क्या करें

पुलेला गोपीचंद संजय गुप्ता मदन लाल और गुरमीत सिंह ने बताया कैसे कठिन समय में दिमाग को स्थिर और पॉजिटिव रखा जाता है।

By Prateek KumarEdited By: Published: Thu, 21 May 2020 04:43 PM (IST)Updated: Thu, 21 May 2020 04:43 PM (IST)
मन में आती नेगेटिविटी को दूर करने और खुद को मजबूत रखने के लिए क्या करें
मन में आती नेगेटिविटी को दूर करने और खुद को मजबूत रखने के लिए क्या करें

नई दिल्‍ली। जैसे सागर में उठा हो तूफान, मन की हालत भी कुछ ऐसी ही है इन दिनों। भंवर में उलझा मन कैसे जाए सागर के उस पार और पाए आराम। पर जरा खुद पर नजर डालें। आपदा के आने से अब तक की यात्रा में तमाम नकारात्मक संवादों के बीच समायोजन की हमारी क्षमता बढ़ी है। बदलाव कठिन है लेकिन वक्त ने अपने साथ ढलना सिखा दिया है। यही क्षमता मानसिक सबलता है। यह वह कौशल है जो सबके पास होता है पर कुछ लोग इसका बखूबी उपयोग कर मिसाल बनते हैं। कुछ ऐसी ही मशहूर शख्सियतों व मनोचिकित्सकों से बात करके सीमा झा ने जानने का प्रयास किया कि आखिर मानसिक सबलता का कौशल कैसे बढ़ाया जाए...

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आओ, टटोलें अपना मन व्यर्थ देह के संग मन की भी निर्धनता का बोझ क्यों ढोएं ‘

प्रकृति के सुकुमार कवि’ कहे जाने वाले कवि सुमित्रानंदन पंत की ये पंक्तियां प्रेरणा देती हैं कि मन को कभी निर्बल नहीं होने देना। मन सबल रहे यह सब चाहते हैं, पर संकट काल में सब एक-सा नहीं रह पाते। वहीं, कुछ लोग समान स्थिति मे रहकर भी चौंका देते हैं। जैसे कोई एथलीट टूटने-बिखरने के बाद भी रेस को बीच राह में नहीं छोड़ता। ‘स्टे स्ट्रॉन्ग’ हैशटेग के साथ इंटरनेशनल ओलंपिक काउंसिल ने दुनियाभर के एथलीटों के जरिए यही संदेश दिया है कि इसी ‘एथलीट स्पिरिट’ यानी उत्साह को बनाए रखना है। यह न सोचें कि एथलीट और सामान्य इंसान में फर्क है। इंस्टीटयूट ऑफ मेडिकल साइंसेज, बीएचयू के मनोचिकित्सा विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. (डॉ.) संजय गुप्ता कहते हैं, ‘यह सामान्य सोच है पर असाधारण वही है जिसने खुद को वक्त के साथ ढाल लिया, खुद को चुनौती दे सके।

बूंद-बूंद प्रयास से बढ़ेगा मनोबल 

राष्ट्रीय बैडमिंटन कोच पुलेला गोपीचंद ने कहा कि आज मैं कुछ गड़बड़ नहीं होने दूंगा, अब से टफ रहूंगा, किसी दिन सुबह उठकर खुद से यह कहें और मानसिक सबलता आ जाएगी, ऐसा नहीं है। पर यह जरूर है कि आप खुद को उस शिखर पर अपनी छोटी-छोटी कोशिशों से बैठा सकते हैं, जिसकी कल्पना खुद नहीं की। दरअसल, मानसिक सबलता भरी हुई बाल्टी की तरह होती है। जैसा आप हर दिन निर्णय लेते हैं वह एक बूंद के रूप में बाल्टी में गिरता है या उससे निकल जाता है।

आप सुबह उठने का निश्चय करते हैं और ऐसा कर दिखाते हैं तो उसमें एक बूंद गिरता है। एक दिन पंखा नहीं चलता। आप परेशान हैं पर खुद को कहते हैं कि गर्मी झेलनी है तो आप बाल्टी में एक बूंद और गिरा देते हैं। रात में यूट्यूब पर आप कोई फन वीडियो देखना चाहते हैं पर देर हो रही है लेकिन उस वक्त नींद लेना या सो जाना भी आपकी सेहत के प्रति जिम्मेदारी का संकेत है। यही मानसिक सबलता है, अभ्यास से यह बढ़ती जाती है। इसलिए मैं सभी को कोई न कोई खेल अपनाने की सलाह देता हूं ताकि वे कोई लक्ष्य रखें और बेहतरी के लिए खुद का संकल्प मजबूत करना सीख जाएं। आप कुछ दिन निरंतर ऐसा कर पाने में सक्षम होते हैं तो कड़ी मेहनत, अनुशासन और धैर्य की अहमियत समझ में आने लगती है। जीवन के प्रति स्वीकार्यता आ जाती है। तब लंबे लॉकडाउन में भी बोरियत हो तो परेशान नहीं होते। हां, खुद के प्रति सख्ती जरूरी है। पर यह सख्ती कभी खुद को परेशान करने से नहीं जुड़ी है। छोटी-छोटी चीजों में खुशी तलाशना और बिना किसी ग्लानि या आशंका के साथ कदम बढ़ाना है।  

दूसरों की मदद करके बढ़ाएं खुशी

बीएचयू, वाराणसी इंस्टीूटयूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के पूर्व अध्यक्ष, मनोचिकित्सा विभाग प्रो. (डॉ.) संजय गुप्ता ने कहा कि इंसान प्रकृति का सबसे उन्नत जीव है जो गर्मी या सर्दी आने पर दुबक कर नहीं बैठ सकता। कोरोना की शुरुआत में सरवाइवल पर बात हो रही थी। अब जीवन कैसा होगा, क्या होना चाहिए, इस पर बात  हो रही है यानी मनलगातार बदल रहा है और मनोबल की तलाश में है। पर आपको अब करना क्या है जिससे मनोबल बढ़ता रहे, बदलाव महसूस हो... 

  • 'अपडेट रहें और खुद को अपग्रेड भी करते रहें। मोबाइल की तरह समय के साथ अपने सॉफ्टवेयर को भी बदलते रहना है।
  • 'प्रकृति के संग रहें, करीब से महसूस करें।’
  • 'बैंक बैलेंस, स्ट्रेस बैलेंस और कार्मिक बैलेंस, ये तीनों सुरक्षा और अच्छा महसूस कराते हैं। सोचकर देखें। इनमें कौन-सा कम या ज्यादा है। वैसे, कार्मिक बैलेंस इन सब पर भारी है। कार्मिक बैलेंस का अभिप्राय मदद से मिलने वाली खुशी से है। जो लोग जरूरतमंदों की मदद कर रहे हैं, दान कर रहे हैं उनका मनोबल औरों से बेहतर है। 

डरना सबसे बड़ी असफलता है 

पूर्व क्रिकेटर मदन लाल ने कहा कि  जीवन का नब्बे प्रतिशत मानसिक सबलता पर और उसके बाद बाकी चीजों पर निर्भर है। जैसी सोच रखते हैं वैसा बन जाते हैं। खुद पर यकीन होता है तो आप सही निर्णय लेकर जीवन की दिशा बदल देते हैं। जब 1983 के वल्र्ड कप के दौरान विवियन रिचड्र्स जमे हुए थे और पूरा माहौल तनावपूर्ण था! पर मुझे खुद पर यकीन था कि विवियन रिचड्र्स को आउट करूंगा, जब ऐसा हुआ तो वह पल क्रिकेट के सुनहरे इतिहास में दर्ज हो गया। मैं बच्चों से हमेशा कहता हूं कि क्रिकेट एक मेंटल गेम है और जिंदगी भी। मानसिक रूप से सबल लोग ही आगे जाएंगे यहां। क्योंकि वे सदा खुद की कमियों पर काम करते रहते हैं। इस क्रम में वे छोटी-छोटी चीजों से घबराने या व्यर्थ की बातों पर फोकस कर अपनी ऊर्जा को बर्बाद नहीं करते। हालांकि यहां सौ में सत्तर प्रतिशत लोग नकारात्मक सोचते हैं। इस रेशियो को कम से कम करते जाना है। मानसिक सबलता एक कुशलता है। यह सीखी जा सकती है। इसका उल्टा है डर। डर जिंदगी की सबसे बड़ी असफलता है। ऐसा इसलिए नहीं कह रहा हूं कि खिलाड़ी हूं बल्कि हर कोई खुद को ऐसे प्रशिक्षित कर सकता है कि उन्हें कोई डर परेशान न करे। बस खुद को समय दें। इसे सर्वोच्च प्राथमिकता समझें।

जितनी चाहें, बढ़ा लें मानसिक सबलता की पूंजी 

इंडियन आर्मी के पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह ने कहा कि  आप जहां भी हैं वह आपकी धारणा, सोच और विचार की वजह से है। मुझे शब्दों के साथ खेलने में मजा आता है। ‘किंग’ और ‘विन’ में मैं ‘आइ एन’ पर फोकस रखता हूं यानी जब तक ‘इन’ यानी अपने भीतर नहीं होंगे, आप किंग या विन तक नहीं पहुंच सकते। 1980 के दशक में जब नगालैंड में मेरी पोस्टिंग थी तो आर्मी हेडक्वार्टर तक का सफर सात घंटे पैदल का था। मुश्किल रास्ता और एक लंबा सफर। उस समय मुझे करीब से समझ में आया कि शरीर तो बहुत बाद है, मन पहले है। यह थक जाए तो शरीर भी ऊर्जाहीन हो जाता है और जीवन भी रुकने लगता है। कश्मीर में कमांडो ट्रेनिंग के दौरान मैं लड़कों से यही कहता था कि खुद के साथ रहें। व्यस्त रहें। कमांडो में जो पैशन होता है वह लगातार प्रशिक्षण के दौरान नई व कठिन चुनौतियां देकर पैदा होती हैं। दरअसल,प्रशिक्षण के दौरान मन की शक्ति का आभास कराया जाता है। इसके बाद ही वे हर कठिनाई को आसान बनाना सीख जाते हैं। अपने करियर के दौरान मुश्किल अभियानों और कठिन इलाकों में बिताए गए अपने अनुभवों के आधार पर मैं कह सकता हूं कि मानसिक सबलता की पूंजी अनंत है। इसे जितनी चाहें, उतनी बढ़ा सकते हैं।  

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