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प्रदूषण के खिलाफ सबसे बड़ी जंग, दिल्ली में 21 नंवबर को होगी कृत्रिम बारिश

भारत सहित तमाम देशों में कृत्रिम बारिश को आजमाया जाता रहा है, लेकिन प्रदूषण से निपटने के लिए इसके उदाहरण कम हैं। चीन में इसका इस्तेमाल काफी होता है।

By JP YadavEdited By: Published: Mon, 19 Nov 2018 10:42 AM (IST)Updated: Mon, 19 Nov 2018 11:41 AM (IST)
प्रदूषण के खिलाफ सबसे बड़ी जंग, दिल्ली में 21 नंवबर को होगी कृत्रिम बारिश
प्रदूषण के खिलाफ सबसे बड़ी जंग, दिल्ली में 21 नंवबर को होगी कृत्रिम बारिश

नई दिल्ली [अरविंद पांडेय]। आखिरकार इंतजार खत्म हुआ। जहरीली हवाओं से लोगों को बचाने के लिए सरकार अब कृत्रिम बारिश कराएगी। इसकी शुरुआत दिल्ली से होगी और सब कुछ ठीक रहा तो इसे लखनऊ जैसे शहरों में भी आजमाया जा सकता है। मौसम विभाग का अनुमान ठीक रहा, तो 21 नवंबर को यह बारिश होगी। फिलहाल इसे लेकर केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने सभी सुरक्षा मंजूरी हासिल कर ली हैं। सिर्फ डीजीसीए (डायरेक्टर जनरल ऑफ सिविल एविएशन) की मंजूरी मिलनी बाकी है। हालांकि, उसने भी सैद्धांतिक सहमति दे दी है। पर्यावरण मंत्रालय का मानना है कि यह मंजूरी भी सोमवार को उसे मिल जाएगी।

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भारत सहित तमाम देशों में कृत्रिम बारिश को आजमाया जाता रहा है, लेकिन प्रदूषण से निपटने के लिए इसके उदाहरण कम हैं। चीन में इसका इस्तेमाल काफी होता है। पर्यावरण मंत्रालय की इस योजना में आइआइटी कानपुर, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) व वायुसेना जैसी सरकारी एजेंसियां शामिल हैं।

पर्यावरण मंत्रलय के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक प्रदूषण के बढ़े स्तर को कम करने के लिए कृत्रिम बारिश कराने की योजना पर वर्षो से काम चल रहा था। अब पहली बार इसका इस्तेमाल 21 नवंबर को होने जा रहा है, क्योंकि मौसम विभाग ने इसी दिन दिल्ली के ऊपर बादलों के जमघट होने का अनुमान जताया है।

20 लाख में होगी बारिश

कृत्रिम बारिश पर 20 लाख रुपये खर्च होंगे। इसके लिए विशेष विमान से लेकर मशीनरी व बादलों के बीच रिएक्शन कराने के लिए केमिकल का इस्तेमाल किया जाता है। पर्यावरण मंत्रालय एयर फोर्स की मदद ले रहा है, जो विमान मुफ्त देगा। उपकरण आइआइटी कानपुर देगा। पर्यावरण मंत्रालय को सिर्फ केमिकल उपलब्ध कराना होगा, जो बादलों के बीच रासायनिक क्रिया कर उन्हें बारिश के बूंदों में बदल देता है।

यूं होती है कृत्रिम बारिश

कृत्रिम बारिश के लिए सिल्वर आयोडाइड और शुष्क बर्फ (ड्राई आइस) जैसे तत्व इस्तेमाल किए जाते हैं। डॉप्लर रडार की मदद से 20 किमी के दायरे में बारिश वाले बादलों को खोजा जाता है। इसके बाद बादलों पर सिल्वर आयोडाइड का फव्वारा मारा जाता है जो बादलों से रासायनिक क्रिया करता है। इससे पानी की बूंदें गतिशील हो जाती हैं और बारिश होती है।


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