अमेरिका के सहयोग से डिमेंशिया की जांच के लिए स्वदेशी तकनीक विकसित कर रहा एम्स
शुरुआती स्टेज में इसकी कैसे जांच की जा सकती है इस पर शोध चल रहा है। डिमेंशिया की जांच सवालों के आधार पर की जाती है।
राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। डिमेंशिया (भूलने की बीमारी) की जांच के लिए अभी देश में विदेशी तकनीक अपनाई जा रही है। एम्स के डॉक्टर कहते हैं कि यह ज्यादा कारगर नहीं है। इसलिए अमेरिका के एक संस्थान के साथ मिलकर एम्स स्वदेशी तकनीक विकसित करने के लिए शोध किया जा रहा है। उम्मीद है कि जल्द ही यह तकनीक विकसित कर ली जाएगी।
एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने बताया कि इसमें बुजुर्गो को भूलने की बीमारी हो जाती है, वे परिवार के लोगों को भी नहीं पहचान पाते। शुरुआती स्टेज में इसकी कैसे जांच की जा सकती है, इस पर शोध चल रहा है। डिमेंशिया की जांच सवालों के आधार पर की जाती है। सवालों का यह मॉडल विदेश में विकसित किया गया है, जबकि भारत की संस्कृति अलग है। इस वजह से जांच के लिए अभी तक जो तरीका यहां अपनाया जा रहा है वह यहां ज्यादा कारगर नहीं है।
बहुत आसान नहीं डिमेंशिया का इलाज
एम्स के जेरियाट्रिक विभाग के विशेषज्ञ डॉ. प्रसून चटर्जी ने कहा कि देश में करीब 0.92 फीसद बुजुर्ग डिमेंशिया से पीड़ित हैं। इस बीमारी से व्यावहारिक व भावनात्मक परिवर्तन भी आने लगता है। पीड़ित अपना कुछ काम नहीं कर पाते। इस वजह से दूसरों पर निर्भर होना पड़ता है। इसलिए डिमेंशिया का इलाज और मरीजों की देखभाल बहुत आसान नहीं है। सिर्फ दवा से इसका इलाज संभव नहीं है। इसलिए एम्स में फिजिकल थेरेपी व मल्टीमॉडल थेरेपी इस्तेमाल की जा रही है।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस है मददगार
डॉ. प्रसून चटर्जी ने कहा कि डिमेंशिया के इलाज के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का भी इस्तेमाल किया जा रहा है। इसके तहत कंप्यूटर के माध्यम से मरीजों का ध्यान केंद्रित करने की क्षमता बढ़ाने की कोशिश की जाती है। इसके लिए हर मरीज को तीन माह का प्रशिक्षण दिया जाता है। अब तक 132 मरीजों को प्रशिक्षण दिया जा चुका है। उन मरीजों का फालोअप चल रहा है। उम्मीद है कि यह तकनीक मददगार साबित होगी।