2012 Delhi Nirbhaya Case: केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में कहा- सभी दोषियों को एक साथ फांसी जरूरी नहीं
2012 Delhi Nirbhaya Case सभी दोषियों को एक साथ फांसी दी जानी चाहिए। गुनहगारों को फांसी आनंद के लिए नहीं दी जाती है। कानून के तहत सजा पर अमल जरूरी है।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। 2012 Delhi Nirbhaya Case : सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सामूहिक दुष्कर्म कांड के दोषियों की फांसी पर रोक लगाने और सभी को साथ फांसी देने के दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली केंद्र सरकार की याचिका पर चारों दोषियों को नोटिस जारी किया है। केंद्र और दिल्ली सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत में कहा कि यह किसी कानून में नहीं है कि सभी दोषियों को एक साथ ही फांसी दी जाएगी। दिल्ली हाई कोर्ट का यह कहना गलत है कि सभी दोषियों को एक साथ फांसी दी जानी चाहिए। गुनहगारों को फांसी आनंद के लिए नहीं दी जाती है। कानून के तहत सजा पर अमल जरूरी है।
मंगलवार को न्यायमूर्ति आर भानुमति, अशोक भूषण और एएस बोपन्ना की पीठ ने तुषार मेहता की दलीलें सुनने के बाद दोषियों को नोटिस जारी किया। कोर्ट ने कहा कि दोषियों को आज ही यह नोटिस जेल सुपरिंटेंडेंट के जरिये दिया जाएगा। मामले पर 13 फरवरी को फिर सुनवाई होगी। याचिका में केंद्र और दिल्ली सरकार ने हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए कहा है कि हाई कोर्ट का यह कहना कि सभी दोषियों को एक साथ फांसी दी जाएगी, गलत है। जिन दोषियों के सारे कानूनी विकल्प समाप्त हो चुके हैं, उन्हें फांसी देने की इजाजत दी जाए।
याचिका पर बहस करते हुए मेहता ने कहा कि दोषियों को कानूनी विकल्प अपनाने के लिए एक सप्ताह की अवधि मंगलवार को समाप्त हो रही है। लेकिन दोषियों ने कोई कदम नहीं उठाया है। चार दोषियों में तीन मुकेश, विनय और अक्षय के सभी कानूनी विकल्प समाप्त हो चुके हैं। चौथे दोषी पवन ने अभी तक क्यूरेटिव और दया याचिका दाखिल नहीं की है। मेहता ने कहा कि किसी को कानूनी विकल्प अपनाने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
व्यवस्था से विश्वास उठने लगा है
तुषार मेहता ने कहा कि जिनके विकल्प समाप्त हो चुके हैं उनकी फांसी की सजा पर अमल की इजाजत मिलनी चाहिए। एक दोषी का कुछ न करना अन्य के लिए मददगार नहीं होना चाहिए। दया याचिका हर दोषी के व्यक्तिगत कारणों और आधारों पर निपटाई जाती है। उसका सभी दोषियों से या मुख्य मामले से कोई लेना-देना नहीं होता। इस मामले में चारों दोषियों को सुप्रीम कोर्ट तक से 2017 में फांसी की सजा हो चुकी है। लेकिन दोषी लगातार कानूनी पेचों का फायदा उठाकर सजा में देरी कर रहे हैं। मेहता ने दुष्कर्म के आरोपितों के हैदराबाद में पुलिस मुठभेड़ में मारे जाने का उदाहरण देते हुए कहा कि वह उस घटना को सही नहीं ठहरा रहे। लेकिन, उस घटना पर लोगों ने खुशी मनाई थी। यह दर्शाता है कि लोगों का व्यवस्था से विश्वास उठने लगा है।
नया डेथ वारंट जारी कराने के लिए ट्रायल कोर्ट जाने की छूट
सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों को कानूनी विकल्प अपनाने के लिए हाई कोर्ट द्वारा तय की गई एक सप्ताह की समयसीमा समाप्त होने पर केंद्र सरकार को फांसी की नई तारीख तय कराने के लिए ट्रायल कोर्ट जाने की छूट दे दी है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि यहां याचिका लंबित रहने का ट्रायल कोर्ट के विचार करने पर असर नहीं पड़ेगा। ट्रायल कोर्ट मेरिट के आधार पर फैसला लेगा।