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छत्तीसगढ़ और नक्सल चुनौती: कामयाब हुए सुरक्षा बल, पर अभी बाकी है काम

छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद की चुनौती पर राजनीतिक दलों की राय अलग-अलग हो सकती है, लेकिन पुलिस- सुरक्षा बलों के लिए तो वे आंतरिक सुरक्षा पर सबसे बड़ा खतरा हैं।

By Nancy BajpaiEdited By: Published: Fri, 04 Jan 2019 10:48 AM (IST)Updated: Fri, 04 Jan 2019 10:48 AM (IST)
छत्तीसगढ़ और नक्सल चुनौती: कामयाब हुए सुरक्षा बल, पर अभी बाकी है काम
छत्तीसगढ़ और नक्सल चुनौती: कामयाब हुए सुरक्षा बल, पर अभी बाकी है काम

रायपुर, राज्य ब्यूरो/नईदुनिया। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार के आने के बाद नई नक्सल नीति पर चर्चा शुरू जरूर हुई है, लेकिन सुरक्षा विशेषज्ञ मान रहे हैं कि अभी किसी समग्र नीति की बात करना बेमानी है। नक्सली लगातार घात लगाने की फिराक में रहते हैं और अब भी शांत कहां हैं। सुरक्षा बल भी अपना काम कर रहे हैं। पिछले दो महीने के दौरान पुलिस उन इलाकों तक पहुंची है, जहां से नक्सलियों की मांद पर निगरानी रखी जा सके। जंगल में भीतर तक पहुंची फोर्स ने इतना तो कर दिया है कि अब वे निश्चिंत होकर जंगल में खुलेआम नहीं घूम पा रहे हैं। सुरक्षा बलों ने इस विधानसभा चुनाव के दौरान रणनीति में थोड़ा बदलाव किया। चुनाव के दरम्यान सतर्कता रखी और बड़ी वारदात नहीं होने दी। फोर्स हमलावर भी नहीं रही और बैकफुट पर भी नहीं गई।

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चुनाव के दौरान नक्सलियों ने प्रयास तो बहुत किया, पर वे अपने मंसूबे में कामयाब नहीं हुए। जैसे ही चुनाव खत्म हुआ, फोर्स ने ऑपरेशन प्रहार चलाकर पलटवार किया। फोर्स जब रंग में आई तो एक ही दिन में सुकमा में 11 नक्सली मार गिराए। अब नई सरकार आने के बाद फोर्स लगातार यह देख रही है कि आगे करना क्या है? कांग्रेस ने आते ही सबसे पहले डीजीपी के पद पर बदलाव किया। कमान मिली पिछली सरकार में नक्सल ऑपरेशन के विशेष डीजीपी रहे डीएम अवस्थी को। डीएम अवस्थी एरिया डॉमिनेशन के माहिर माने जाते हैं। उन्होंने पिछले कुछ सालों में अबूझमाड़ के भीतर तक फोर्स के कैंप खुलवा दिए हैं। पुलिस की रणनीति यही है कि उन्हें चारों ओर से घेरे रखा जाए और किसी वारदात की गुंजाइश न छोड़ी जाए। अगर वे हमला करते हैं तो सुरक्षात्मक जवाब दिया जाए।

सुदूर इलाकों में तैनात अर्धसैन्य बलों के कमांडर कहते हैं कि नक्सलियों पर भरोसा करना ठीक नहीं है। वे तो यही देखते रहते हैं कि कहीं कोई चूक हो ताकि उन्हें मौका मिले। फोर्स को हटाने का सवाल ही गलत है। सरकार ने साफ कहा है कि फिलहाल फोर्स नहीं हटाई जाएगी। ऐसा करना आत्मघाती कदम साबित हो सकता है। पुलिस मुख्यालय के अधिकारियों के मुताबिक अभी समग्र नक्सल नीति को आने में वक्त लगेगा। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने यह नहीं कहा है कि नक्सलियों से बात करेंगे। उन्होंने कहा है कि पीड़ित पक्षों से बात करेंगे। इसमें ग्रामीण आदिवासियों से लेकर, वकील, पत्रकार, सामाजिक संगठन और सुरक्षाबलों के जवान सभी शामिल हैं। सभी पक्षों को सुनने के बाद ही तय होगा कि क्या किया जाना है। गत दिवस भी मुख्यमंत्री बघेल ने साफ किया कि नक्सलियों से बातचीत करने का कोई प्रस्ताव नहीं है।

क्या कहते हैं नए डीजीपी :

डीजीपी डीएम अवस्थी ने दैनिक जागरण के सहयोगी अखबार नईदुनिया से कहा कि चुनाव के दौरान हमने जो रणनीति अपनाई थी वह फिलहाल जारी रहेगी। नक्सलियों को घेरा जा रहा है। दो दिन पहले ही नारायणपुर और बीजापुर के सुदूर नक्सल इलाकों में फोर्स ने दो नए कैंप खोले हैं। अब फोर्स की पहुंच उन जगहों तक है जो अब तक नक्सलियों के अभेद्य गढ़ माने जाते थे। अवस्थी ने कहा कि हमारा लक्ष्य है कि सुरक्षा का वातावरण बने। सरकार आगे जो नीति बनाएगी उसके आधार पर चलेंगे। सुरक्षा बलों को हटाने का सवाल काल्पनिक है। हम इस बारे में सोच-विचार करके ही कोई फैसला करेंगे।

इन्हें भी जानें :

  • 40 साल से नक्सली हिंसा से जूझ रहा छत्तीसगढ़, 12 हजार जवान व आम नागरिक हो चुके हैं शिकार
  • 14 जिले नक्सलवाद से प्रभावित। दंतेवाड़ा, सुकमा, बीजापुर और नारायणपुर लाल आतंक से सर्वाधिक प्रभावित
  • वर्ष 2018 में 300 से ज्यादा नक्सली मारे गए, नक्सल मार्चे पर 70 हजार अर्धसैन्य बल तैनात है
  • पांच राज्यों छत्तीसगढ़, आंध्र, ओडिशा, महाराष्ट्र व तेलंगाना में फैले दंडकारण्य के जंगलों में है नक्सलियों का ठिकाना

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