गोवा में होगी नौसेना के लड़ाकू विमानों की फ्लाइट टेस्टिंग, 'मेक इन इंडिया' को दिया जा रहा है बढ़ावा
लड़ाकू विमान बनाने वाली राफेल व एफ-18 जैसी कंपनियां भारतीय नौसेना की जरूरतों की पूर्ति का प्रयास कर रही हैं। भारतीय नौसेना ने अपने दो विमानवाहक पोतों से परिचालित हो सकने वाले लड़ाकू विमानों के अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू की है।
नई दिल्ली, एजेंसी। भारतीय नौसेना की अधिग्रहण योजना के तहत गोवा में स्थित नौसैन्य केंद्र आइएनएस हंसा की शोर बेस्ड टेस्ट फैसिलिटी (एसबीटीएफ) से लड़ाकू विमानों की फ्लाइट टेस्टिंग की जाएगी। इस दौरान विमानवाहक पोतों से संचालित होने वाले इन विमानों की उड़ान क्षमता का परीक्षण किया जाएगा। अगले हफ्ते प्रारंभ होने वाले परीक्षण के दौरान इन लड़ाकू विमानों का विमानवाहक पोतों से परिचालन सुनिश्चित किया जाएगा।
लड़ाकू विमान बनाने वाली राफेल व एफ-18 जैसी कंपनियां भारतीय नौसेना की जरूरतों की पूर्ति का प्रयास कर रही हैं। भारतीय नौसेना ने अपने दो विमानवाहक पोतों से परिचालित हो सकने वाले लड़ाकू विमानों के अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू की है।
आधिकारिक सूत्र ने बताया, 'पहले विमानवाहक पोतों से संचालित हो सकने वाले उपयुक्त लड़ाकू विमानों का निर्धारण करना होगा। गोवा स्थित एसबीटीएफ से लड़ाकू विमानों का परीक्षण इसी प्रक्रिया का हिस्सा है।'
इन परीक्षणों के बीच, भारतीय नौसेना 'मेक इन इंडिया' को बढ़ावा दे रही है, जिसके तहत रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान (DRDO) दो इंजन वाले लड़ाकू विमान का निर्माण कर रहा है। इसका परिचालन विमानवाहक पोतों से संभव होगा।
बदा दें कि भारत का पहला स्वदेश निर्मित विमानवाहक पोत विक्रांत इस साल अगस्त तक भारतीय नौसेना में शामिल होने वाला है।
नौसेना के लिए निर्मित बड़ा सर्वेक्षण पोत ‘संध्यक’ लांच
वहीं, दूसरी ओर पिछले महीने कोलकाता में स्थित रक्षा मंत्रालय के प्रमुख पीएसयू गार्डनरीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स लिमिटेड (GRSE) ने भारतीय नौसेना के लिए निर्मित पहले बड़े सर्वेक्षण पोत ‘संध्यक’ को लांच किया था। रक्षा राज्य मंत्री अजय भट्ट की उपस्थिति में उनकी पत्नी पुष्पा भट्ट के हाथों हुगली नदी के किनारे स्थित जीआरएसइ यार्ड में 3,400 टन वजन के इस सर्वेक्षण जहाज का जलावतरण किया गया। इस मौके पर मुख्य अतिथि रक्षा राज्य मंत्री भट्ट ने जीआरएसइ के प्रयासों की सराहना की और कहा कि इस सर्वेक्षण पोत के नौसेना में शामिल होने के बाद समुद्री सुरक्षा की निगरानी में काफी मदद मिलेगी।
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