National Voters Day 2021: जागरूक मतदाता हैं लोकतंत्र का आधार, हर नागरिक ले इसका संकल्प
National Voters Day 2021 अपनी संस्थाओं की उपलब्धियों पर गर्व कर ही हम उन्नत राष्ट्र की नींव रख सकते हैं। देश के उज्जवल भविष्य को ध्यान में रखकर विकास को लेकर दिया गया वोट समय की मांग है। सबको यही संकल्प लेना चाहिए।
नई दिल्ली, प्रणय कुमार। लोकतंत्र महज एक शासन-प्रणाली ही नहीं, जीवन-व्यवहार, दर्शन और संस्कार है। यह दर्शन और संस्कार भारत की चित्ति है, प्रवृत्ति है, प्रकृति है, संस्कृति है। भारतीय संविधान के लागू होने से एक दिन पूर्व यानी 25 जनवरी, 1950 को भारत निर्वाचन आयोग का गठन हुआ था। हमारी निर्वाचन-प्रक्रिया दिन-प्रतिदिन सुगम, सुलभ, मजबूत, पारदर्शी और सर्वसमावेशी हुई है। निर्वाचन आयोग ने इसमें उल्लेखनीय, अविस्मरणीय एवं ऐतिहासिक भूमिका निभाई है।
एक समाज और राष्ट्र के रूप में हमें अपनी संस्थाओं पर गर्व होना चाहिए और उसकी गरिमा को किसी भी सूरत में ठेस पहुंचाने से यथासंभव बचना चाहिए। हम भले ही किसी दल के कार्यकर्ता हों, किसी दल के हार-जीत से हमें खुशी या दुख की अनुभूति होती हो, पर हम सबकी कुछ सामूहिक उपलब्धियां हैं। उन सामूहिक उपलब्धियों के प्रति गौरव-बोध विकसित कर हम राष्ट्र के सामूहिक मनोबल को ऊंचा उठा सकते हैं। सम्यक, संतुलित एवं सामूहिक सौंदर्यबोध, सुरुचिबोध और शक्तिबोध विकसित कर ही हम राष्ट्र के सुनहरे भविष्य की नींव रख सकते हैं। इनके अभाव में स्वावलंबी और स्वाभिमानी भारत की संकल्पना साकार नहीं हो सकती।
प्रत्येक वर्ष 25 जनवरी को राष्ट्रीय मतदाता दिवस भी मनाया जाता है। भारत जैसे विशाल एवं विविधता भरे लोकतांत्रिक देश में यह दिवस विशेष महत्व रखता है। सहभागी लोकतंत्र में यह किसी उत्सव से कम नहीं। जागरूक एवं परिपक्व मतदाता ही योग्य, कुशल एवं जिम्मेदार प्रतिनिधियों का चयन कर सकते हैं। इस दिवस को यदि विद्यालय-महाविद्यालय-विश्वविद्यालय में उत्सव की तरह मनाया जाए, जिलों-प्रखंडों-पंचायतों में जागरूकता अभियान की तरह चलाया जाए तो निश्चय ही यह लोकतंत्र एवं लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूती प्रदान करने में सहायक सिद्ध होगा।
हमें इस दिवस का उपयोग मतदाताओं को उनके अधिकारों एवं कर्तव्यों का समग्र बोध कराने के लिए करना चाहिए। भारत युवा मतदाताओं का देश है। यदि वे अधिक-से-अधिक संख्या में मतदान करें तो कोई कारण नहीं कि देश की तस्वीर और तकदीर नहीं बदले। कोई कारण नहीं कि उनके सपनों का देश न बने। क्या यह अच्छा और सुखद नहीं होगा कि इस दिन प्रत्येक नागरिक चुनाव-प्रक्रिया में अधिक-से-अधिक भागीदारी और हर हाल में मतदान की शपथ लें, क्योंकि चुनाव यदि लोकतंत्र का महोत्सव है तो मतदान हमारी नैतिक एवं नागरिक जिम्मेदारी, बल्कि मतदान ही हर नागरिक का मूल्य निर्धारित करता है। उसके अभाव में क्या हम स्वयं को डंके की चोट पर राष्ट्र का नागरिक, जिम्मेदार नागरिक कह सकते हैं? लिंग-जाति-क्षेत्र-मजहब से परे देश के उज्ज्वल भविष्य एवं सर्वागीण विकास को ध्यान में रखकर किया गया मतदान समय की मांग है। राष्ट्रीय मतदाता दिवस पर हर नागरिक को यह संकल्प दोहराना चाहिए।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)