Move to Jagran APP

स्‍मृति शेष: नामवर सिंह दिल्‍ली या कहीं भी रहे, दिल से बनारसी ही रहे

नामवर सिंह ने वाराणसी के उदय प्रताप कॉलेज में सातवीं से हाई स्कूल-इंटर और बीएचयू से बीए-एमए किया तो इन दोनों संस्थाओं के प्रति सदा ऋणी भाव भी रहा।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Wed, 20 Feb 2019 09:43 PM (IST)Updated: Wed, 20 Feb 2019 09:43 PM (IST)
स्‍मृति शेष:  नामवर सिंह दिल्‍ली या कहीं भी रहे, दिल से बनारसी ही रहे
स्‍मृति शेष: नामवर सिंह दिल्‍ली या कहीं भी रहे, दिल से बनारसी ही रहे

प्रमोद यादव, वाराणसी। प्रख्यात समालोचक डा. नामवर सिंह दिल्ली में रहे या और कहीं सदा दिल से बनारसी रहे। कभी बनारस का हिस्सा रहे चंदौली के जीयनपुर में 1926 में जन्मा यह ख्यात साहित्यकार संघर्षों की आग में तप कर सोना बना। उनकी सदा कृतज्ञता के भाव ने भी उन्हें ऊंचाइयां दीं। उन्होंने उदय प्रताप कॉलेज में सातवीं से हाई स्कूल-इंटर और बीएचयू से बीए-एमए किया तो इन दोनों संस्थाओं के प्रति सदा ऋणी भाव भी रहा।

loksabha election banner

25 नवंबर 2009 को जब यूपी कॉलेज के शताब्दी समारोह में आए तो बेबाकी से कहा कि 'यह कॉलेज न होता तो वे शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाते। यहां से उन्हें साहित्यिक संस्कार मिला। कविता, आलोचना व भाषण देने की कला भी यहीं से सीखी। मैं आज जो कुछ भी हूं, वह यूपी कॉलेज की ही देन है।

दूसरी पाठशाला बीएचयू रही जहां वर्ष 1949 से 1951 तक स्नातक व परास्नातक की पढ़ाई पूरी की।' उन्होंने यूपी कॉलेज से जुड़े कई संस्मरण सुनाए और कहा कि 'कभी यहां उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद, अज्ञेय व डॉ. राधाकृष्णन सरीखे विद्वान अपना लेक्चर देने के लिए आते थे। इनसे मैने बहुत कुछ सीखा व पाया है।'

सितंबर 2010 में शब्द शिखर सम्मान के दौरान बीएचयू में उन्होंने कहा कि 'मैं इसी जमीन का हूं और इसी जमीन से जुड़ा रहना चाहता हूं। यदि उदय प्रताप कालेज नहीं होता तो मैं प्राइमरी का अध्यापक होता। यदि बीएचयू नहीं होता तो मैं एमए नहीं कर पाता। मेरे लिए बीएचयू सब कुछ है क्योंकि यही से मैंने जीवन यात्रा शुरू की थी।' बतौर अध्यापक बीएचयू से जाने के बाद भी यहां के प्रति श्रद्धा भाव उनमें कम न हुआ। बाद में जोधपुर विश्वविद्यालय होते उन्होंने जेएनयू में सेवाएं दीं।

उनमें साहित्य धर्मिता बचपन से ही थी। पांचवीं कक्षा से ही ब्रज भाषा में कविताएं लिखते और गांव में ही कवि के रूप में पहचाने जाने लगे थे। हाई स्कूल की पढ़ाई करने बनारस आए तो यहां त्रिलोचन, शम्भूनाथ सिंह समेत तमाम लब्ध साहित्यकारों का सानिध्य मिला। उदय प्रताप कालेज में पढ़ते हुए खड़ी बोली में छंद और सवैया में कविताएं लिखने लगे। बाद में बनारस में भी काव्य पाठ के हीरो के रूप में उनकी छवि रही।

कालेज के प्राचीन छात्रों में डा. शम्भूनाथ सिंह के गीतों ने उन पर गहरा प्रभाव छोड़ा। इसमें एक गीत खूब प्रसिद्ध हुआ - तान के सोता रहा जल चादर....। त्रिलोचन ने उन्हें वर्ष 1943 में तार सप्तक पढऩे को दिया और उनके सानिध्य में उन्होंने कविता के मर्म व उसकी बारीकियों को समझा। इन्ही के कहने पर बंगला भाषा सीखी और अनुवाद भी किए।

साहित्य के प्रति नामवर सिंह का प्रेम इससे ही समझ सकते हैं कि छात्र जीवन में ही वे अज्ञेय व निराला को कालेज में ले आए। उनका मानना था कि उदय प्रताप कालेज में उन्हें सौभाग्य से बहुत अच्छे अध्यापक मिले। इनमें एक पं. विजय शंकर मिश्र थे जिन्होंने संस्कृत पढ़ाया।

हालांकि नामवर सिंह हिंदी का प्रथम गुरु मार्कंडेय सिंह को मानते हैं। गद्य के प्रति आकर्षण नामवर सिंह में इन्ही गुरु के कारण पैदा हुई। इसे उन्होंने लिखा भी कि 'मैं स्वीकार करना चाहूंगा कि आगे चलकर जो गद्यकार व आलोचक का जो व्यक्तित्व बना, उसकी नींव मार्कंडेय सिंह जी की डाली हुई है।' हालांकि आलोचना की भाषा में उनके आदर्श रामचंद्र शुक्ल थे।

वह कहते थे कि गद्य गठा हुआ होना चाहिए, जिसमें चर्बी न हो बल्कि हड्डी दिखाई दे तो भी हर्ज नहीं है। उनका मानना था कि विशेषण अच्छे गद्य के दुश्मन हैं। विशेषण से भाषा लद्दढ़ बनती है। एक से अधिक विशेषण, एक साथ कभी भी इस्तेमाल नहीं करने चाहिए। वे लंबे वाक्यों के घोर शत्रु थे।

कहते थे कि संश्लिष्ट और संकर वाक्य नहीं लिखने चाहिए। सरल शब्द ही भाषा के प्राण हैं। इसे उन्होंने नए लेखकों को समझाया ही नहीं, खुद अपना कर भी दिखाया। बनारस में जब तक रहे, अस्सी की अड़िया भी उनकी पसंदीदा जगह रहीं।

...भूत नहीं बोलते
साहित्य जगत में अलग तेवर के लिए पहचाने जाने वाले डा. नामवर जब 19 दिसंबर 2009 को चंदौली के शहीदगांव स्थित अमर शहीद विद्या मंदिर इंटर कॉलेज में अभिनंदन के लिए बुलाया गया तो जुबान अटकी और पलकों की कोरें गीली थीं। अपनों का हालचाल लिया और एक साथी को बीमार देखा तो भाव विह्वल हो गए।

दो शब्द बोलने को कहा गया तो स्वर फूटे 'नामवर फूलों की राशि के नीचे लेटा है। यहां जो बैठा है वह मेरा भूत है और भूत कभी नहीं बोलते। पता नहीं मेरे अंतिम समय में भी इतना भव्य कार्यक्रम होगा या नहीं। वैसे यह खबरनवीसों के लिये एक खबर हो सकती है कि नामवर अपने गृह जनपद में स्वयं के अभिनंदन समारोह में कुछ नहीं बोले। चाहे जो भी हो, मुझे कुछ नहीं बोलना।' 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.