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आपसी भाईचारे ने बुझाई खेतों में लगी आग, जानिए कैसे बच गई 300 बीघे में खड़ी फसल

अपनी जान जोखिम में डालकर ट्रैक्टर के जरिए आग बुझाने में मदद करने वाले ग्राम रसल्ली के 22 वर्षीय किसान राहुल केवट का कहना था कि आग बुझाते समय किसी के दिमाग में यह नहीं था कि वे किसी मुस्लिम किसान की फसल बचा रहे हैं।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Sat, 03 Apr 2021 08:26 PM (IST)Updated: Sat, 03 Apr 2021 08:26 PM (IST)
आपसी भाईचारे ने बुझाई खेतों में लगी आग, जानिए कैसे बच गई 300 बीघे में खड़ी फसल
यहां जब मुस्लिम किसान मस्जिद में नमाज पढ़ रहे थे, तभी उनके खेतों में आग लग गई।

 विदिशा, राज्‍य ब्‍यूरो। जिले के शेरपुर गांव में सांप्रदायिक सद्भाव का अनूठा उदाहरण देखने को मिला। यहां जब मुस्लिम किसान मस्जिद में नमाज पढ़ रहे थे, तभी उनके खेतों में आग लग गई। हिंदू किसानों ने बिना कुछ सोचे- समझे आपसी सद्भाव की ताकत से आग को आगे बढ़ने से रोक दिया, जिसके चलते आसपास के लगभग 300 बीघा खेतों में खड़ी गेहूं की फसल जलने से बच गई। मुस्लिम किसानों का कहना था कि यदि हिंदू भाई खेतों की आग बुझाने आगे नहीं आते तो उनकी सालभर की मेहनत बर्बाद हो जाती।

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विदिशा जिले के शेरपुर में मुस्लिम मस्जिद में पढ़ रहे थे नमाज

आपसी प्रेम और सद्भाव की मिसाल कायम करने वाली यह घटना एक दिन पहले शुक्रवार की है। 90 फीसद मुस्लिम आबादी वाले शेरपुर गांव के अधिकांश किसान शुक्रवार की दोपहर को नमाज के लिए स्थानीय मस्जिद में गए हुए थे। इसी दौरान नफीस खान के 10 बीघा खेत में गेहूं की खड़ी फसल में आग लग गई। आसपास के खेतों में फसल की कटाई चल रही थी। इस खेत में आग देखते ही पड़ोसी किसान एकजुट हो गए। उन्होंने शेरपुर के अलावा तीन किलोमीटर दूर स्थित गांव सतपाड़ा सराय और रसल्ली के ग्रामीणों को भी आग लगने की सूचना दे दी। आग देखते ही देखते विकराल रूप लेने लगी। 

तीन गांवों के हिंदुओं ने बुझाई उनके खेतों की आग

इस बीच तीनों गांवों के ग्रामीण इस खेत में पहुंच गए और आग बुझाने में जुट गए। तेज हवा के बीच आग की लपटें लोगों को झुलसा रही थीं। इसके बावजूद लोग पेड़ों की टहनियों और ट्रैक्टर की मदद से आग बुझाने में जुटे रहे। आग लगने की सूचना मस्जिद तक पहुंचते ही मुस्लिम भी खेत में पहुंचे, लेकिन तब तक आग पर काबू पा लिया गया था। नफीस के अलावा उसके भाई कदिर खान की भी 15 बीघा गेहूं की फसल जलकर राख हो गई। अच्छी बात यह रही कि 200 से अधिक ग्रामीणों की मदद से आग पर जल्दी काबू पा लिया गया, नहीं तो आसपास के 300 बीघा से अधिक खेतों में खड़ी गेहूं की फसल भी जलकर राख हो जाती।

मेहनत की फसल की कोई जाति नहीं होती

अपनी जान जोखिम में डालकर ट्रैक्टर के जरिए आग बुझाने में मदद करने वाले ग्राम रसल्ली के 22 वर्षीय किसान राहुल केवट का कहना था कि आग बुझाते समय किसी के दिमाग में यह नहीं था कि वे किसी मुस्लिम किसान की फसल बचा रहे हैं। उनका कहना था कि मेहनत की फसल की कोई जाति नहीं होती है। पड़ोसी गांव सतपाड़ा सराय के सरपंच प्रतिनिधि रईस अहमद कहते हैं कि उनके गांव में कभी हिंदू--मुस्लिम को लेकर तनाव ही नहीं हुआ। करारिया थाना प्रभारी अरुणा सिंह भी ग्रामीणों की बात को स्वीकारती हैं। उनका कहना है कि इन गांवों में कभी सांप्रदायिक तनाव की स्थिति नहीं बनी।


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