Move to Jagran APP

आम आदमी के साहित्यकार प्रेमचंद की रचनाएं मानवीय संवेदनाओं और सरोकारों से जुड़ी रहीं

उपन्यास सम्राट और कालजयी कथाकार प्रेमचंद ने 13 वर्ष की उम्र में लेखन कार्य आरंभ कर दिया था लेकिन उनके लेखन में परिपक्वता शिवरानी से विवाह के पश्चात ही आई थी। शिवरानी ने ही बाद में उनकी जीवनी भी लिखी।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 31 Jul 2021 10:10 AM (IST)Updated: Sat, 31 Jul 2021 10:10 AM (IST)
आम आदमी के साहित्यकार प्रेमचंद की रचनाएं मानवीय संवेदनाओं और सरोकारों से जुड़ी रहीं
प्रेमचंद की रचनाएं मानवीय संवेदनाओं और सरोकारों से जुड़ी रहीं तो वे आम आदमी को अपने बहुत करीब लगती हैं।

योगेश कुमार गोयल। आज मुंशी प्रेमचंद की 141वीं जन्मतिथि है। उपन्यास सम्राट और कालजयी कथाकार के रूप में प्रतिष्ठित प्रेमचंद को आम आदमी का साहित्यकार भी कहा जाता है। चूंकि उनकी अधिकांश रचनाएं आम जनजीवन और सरोकारों से ही जुड़ी रहीं तो वे आम आदमी को अपने बहुत करीब लगती हैं। उन्होंने गरीब-गुरबों की पीड़ा को न केवल समझा, बल्कि अपनी रचनाओं के जरिये उसका निदान बताने का प्रयास भी किया। उनके सृजन संसार में आम आदमी की भावनाओं, समस्याओं तथा संवेदनाओं का मार्मिक शब्दांकन मिलता है। आज जब हमारे समाज का एक वर्ग खुद को हाशिये पर महसूस कर रहा हो और उसके जीवन में दुश्वारियां बढ़ती जा रही हों तो प्रेमचंद साहित्य और प्रासंगिक हो उठता है।

loksabha election banner

नि:संदेह प्रेमचंद हिंदी साहित्य में एक मील का पत्थर हैं। मौजूदा पीढ़ी के लेखक भी उन्हें ‘भूतो न भविष्यति’ वाली श्रेणी का साहित्यकार मानते हैं। अपनी रचनाओं के माध्यम से उन्होंने समाज को सदैव रूढ़िवादी परंपराओं और कुरीतियों से निकालने का प्रयास किया। प्रेमचंद की लेखनी न सिर्फ दासता के विरुद्ध आवाज बनकर मुखर हुई, बल्कि उन्होंने लेखकों के उत्पीड़न के खिलाफ भी अलख जगाई। वह सही मायनों में ‘कलम के सिपाही’ थे। गद्य साहित्य की शायद ही कोई ऐसी विधा हो, जिन्हें प्रेमचंद की कलम ने झंकृत और चमत्कृत न किया हो। यह भी किसी परीकथा से कम नहीं कि जिन प्रेमचंद की गिनती हिंदी के मूर्धन्य साहित्यकारों में होती है, उनके साहित्यिक सफर की शुरुआत उर्दू के माध्यम से हुई थी।

वर्ष 1909 में कानपुर के ‘जमाना प्रेस’ से उर्दू में ही उनका पहला कथा संग्रह ‘सोज ए वतन’ प्रकाशित हुआ था, जिसकी सभी प्रतियां ब्रिटिश सरकार ने जब्त कर ली थीं। उर्दू में वह ‘नवाब राय’ के नाम से लिखते थे। जमाना के संपादक मुंशी दयानारायण ने उन्हें परामर्श दिया कि भविष्य में अंग्रेज सरकार के कोप से बचने के लिए वह नवाब राय के बजाय प्रेमचंद नाम से लिखना शुरू करें, जबकि उनका वास्तविक नाम धनपत राय था। उनके बारे में सुमित्रनंदन पंत ने कहा था कि प्रेमचंद ने नवीन भारतीयता और नवीन राष्ट्रीयता का समुज्ज्वल आदर्श प्रस्तुत कर महात्मा गांधी के समान ही देश का पथप्रदर्शन किया है।

आदर्शो के पैमाने पर प्रेमचंद की कथनी और करनी में कोई फर्क नहीं था। उन्होंने जिन मूल्यों की पैरवी की, अपने जीवन में उनका पालन भी किया। वह विधवा विवाह के पक्षधर थे। पहली पत्नी के निधन के बाद समाज के विरुद्ध जाकर उन्होंने वर्ष 1905 में शिवरानी नामक बाल विधवा से विवाह किया। वैसे तो उन्होंने 13 वर्ष की उम्र में लेखन कार्य आरंभ कर दिया था, लेकिन उनके लेखन में परिपक्वता शिवरानी से विवाह के पश्चात ही आई थी। शिवरानी ने ही बाद में उनकी जीवनी भी लिखी।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.