Move to Jagran APP

मल्टी लेयर फार्मिंग, ड्रोन और उन्नत उपकरणों से आएगी नई क्रांति; जलवायु परिवर्तन का करेंंगे सामना

जलवायु परिवर्तन पर अपनी प्रतिबद्धताएं पूरी करने वाला भारत इकलौता देश है। वह दुनिया में कुल कार्बन उत्सर्जन का केवल छह से सात फीसद उत्सर्जन करता है। देश जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार नहीं है। वह अक्षय ऊर्जा उत्पादन को बढ़ाने की दिशा में है।

By Shashank PandeyEdited By: Published: Sat, 09 Jan 2021 01:53 PM (IST)Updated: Sat, 09 Jan 2021 01:53 PM (IST)
मल्टी लेयर फार्मिंग, ड्रोन और उन्नत उपकरणों से आएगी नई क्रांति; जलवायु परिवर्तन का करेंंगे सामना
अपने खेत में मल्टी लेयर फार्मिग करते मप्र के युवा किसान आकाश चौरासिया।(फोटो: दैनिक जागरण)

नई दिल्ली, जेएनएन। जलवायु परिवर्तन की सबसे बड़ी चुनौती कृषि क्षेत्र के सामने है। इससे निपटने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र के विज्ञानी अलग-अलग तरह के शोध कर रहे हैं। कम बारिश हो या सूखा, अधिक बारिश हो या ठंड, ऐसे विपरीत मौसम में भी पैदावार की क्षमता बनाए रखते हुए किसानों की आमदनी में इजाफा मुख्य उद्देश्य है। इसमें मल्टी लेयर फाìमग एक प्रमुख प्रयोग है। आखिरी कड़ी में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के विज्ञानी बता रहे हैं उपाय...

loksabha election banner

केस एक : यूरोपीय आयोग संयुक्त अनुसंधान केंद्र की रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन की वजह से प्रदूषण, भू-क्षरण और सूखा पड़ने से पृथ्वी की तीन-चौथाई भूमि क्षेत्र की गुणवत्ता कम हो गई है। इससे वर्ष 2050 तक वैश्विक अनाज उत्पादन में काफी कमी आ सकती है।

केस दो : दुनिया की आबादी वर्ष 2050 में लगभग नौ अरब हो जाएगी और इसके लिये मौजूदा खाद्यान्न उत्पादन से दोगुने की जरूरत पड़ेगी। भारत जैसे कृषि प्रधान देशों को इसके लिए अभी से नए उपाय करने होंगे।

इन दोनों रिपोर्ट से स्पष्ट है कि जलवायु परिवर्तन का सामना करते हुए भारत को अपनी आबादी के साथ-साथ विश्व की खाद्यान्न मांग को पूरा करना है। साथ ही बाजार पर भी वर्चस्व बनाए रखना है। खाद्य और कृषि संगठन का अनुमान है कि खाद्य आपूíत और मांग के बीच अंतर को कम करने के लिये वैश्विक कृषि उत्पादन वर्ष 2050 तक दोगुना करने की आवश्यकता होगी। ऐसे में किसानों को यह पता होना चाहिये कि वे किस तरह की खेती करें।

भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र के प्रधान विज्ञानी डॉ. जेएस दब्बास कहते हैं, जलवायु परिवर्तन का जीवन के क्षेत्रों पर असर पड़ेगा लेकिन कृषि पर इसके प्रभाव को सबसे ज्यादा आंका जा रहा है। इसे कम करने के लिए नए तकनीकों पर शोध और प्रयोग दोनों चल रहा है। हमारा उद्देश्य सिर्फ फसलों का उत्पादन ही नहीं बल्कि उत्पादन लागत कम कर किसानों की आमदनी बढ़ाना भी है। 

चार फसल एक साथ, एक एकड़ में सात आठ लाख रुपये आमदनी

जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए कृषि के नए तरीकों में अधिकांश तकनीक आधारित हैं, लेकिन मल्टी लेयर फार्मिंग सभी के लिए आसान है। खास तौर पर छोटे किसान, जिनके पास जमीन की कमी है, वे भी इससे बेहतर आमदनी कर सकते हैं। इन दिनों इसका प्रत्यक्ष उदाहरण पेश कर रहे हैं मध्यप्रदेश के 31 वर्षीय किसान आकाश चौरासिया। इन्होंने अपने स्तर पर फोर लेयर फाìमग (चार फसलें एक साथ) की फायदेमंद तकनीक विकसित की है। उनका दावा है कि एक एकड़ जमीन से लगभग सात-आठ लाख रुपये मुनाफा कमाया जा सकता है। बशर्ते थोड़ा सा कौशल इस्तेमाल किया जाए। वर्ष 2011 से इस पर लगातार काम कर रहे आकाश को इस प्रयोग के लिए भारतीय अनुसंधान कृषि केंद्र पूसा, दिल्ली ने वर्ष 2019 में सम्मानित भी किया। वे अब तक देश-दुनिया के 70 हजार किसानों को प्रशिक्षित कर चुके हैं।

ड्रोन से दवा का छिड़काव

फसलों पर कीटों के प्रकोप को दूर करने के लिए पूरे खेत में छिड़काव किया जाता है। आने वाले दिनों में उस इलाके को चिन्हित कर ड्रोन से छिड़काव किया जाएगा।

खेती के उन्नत तरीके

भारत में जहां जिस तरह की जमीन उपलब्ध है उसके आधार पर खेती के उन्नात तरीके अपनाने होंगे। उसमें मल्टी लेयर फाìमग मुख्य भूमिका निभाएगा। इस पर शोध तो चल ही रहा है। कई इलाकों में किसान नवाचार भी कर रहे हैं।


न्यूमेटिक सीड डिल

डॉ. दब्बास कहते हैं कि न्यूमेटिक सीड ड्रिल से उचित गरहाई और दूरी पर बुआई हो सकती है। अभी यह सामान्य मशीन या पारंपरिक तरीके से होती है। इससे जहां चार किलो बीज लगता है उसकी जगह एक किलो बीज ही लगेगा। मगर इसमें उच्च गुणवत्ता वाले बीजों की जरूरत होगी।

एक-साथ इस तरह ले सकते हैं फसलें :

जमीन के नीचे : अदरक, गाजर, चुकंदर, हल्दी, आलू, प्याज आदि।


सतह पर : पालक, मेथी, गोभी आदि।


बेल : करेला, लौकी, गिलकी, सेम आदि।


पपीता : सबसे ऊपर पपीता या इस तरह की कोई फसल।

खर्च : सामान्य खेती में लगने वाले खर्चे से चार-पांच गुना कम।


आय: एक एकड़ में चार-पांच लाख आमदनी।


फायदा : फसलों को कीट और रोग से बचा सकता है। खरपतवार लगने का खतरा कम। खाद की बचत होती है, क्योंकि एक फसल में जितनी खाद पड़ती है, उतनी खाद से चार से पांच फसलों के लिए पर्याप्त होती है।


पानी की बचत : इस तकनीक में पानी की 70 प्रतिशत तक बचत होती है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.