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Minimum Support Price: घर-बाहर दोनों मोर्चे पर संकट की दस्तक है एमएसपी, आम उपभोक्ताओं को महंगाई का खामियाजा

एमएसपी का लगभग नब्बे फीसद हिस्सा लेने वाले धान और गेहूं अपनी कीमतों के चलते निर्यात बाजार से बाहर हैं। एक और रोचक बात - विदेश में भारत की बासमती की मांग ज्यादा है लेकिन यह एमएसपी से बाहर है।

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Fri, 22 Jan 2021 09:53 PM (IST)Updated: Sat, 23 Jan 2021 10:28 AM (IST)
Minimum Support Price: घर-बाहर दोनों मोर्चे पर संकट की दस्तक है एमएसपी, आम उपभोक्ताओं को महंगाई का खामियाजा
महंगाई बढ़ाने में भी घी का काम करेगा एमएसपी (फाइल फोटो)

सुरेंद्र प्रसाद सिंह, नई दिल्ली। पहली नजर कुछ अहम तथ्यों पर डालते हैं। कृषि प्रधान और खाद्यान्न प्रचुर देश भारत से निर्यात होने वाली कृषि वस्तुओं में फल-फूल, सब्जियां, मसाले, चाय, कॉफी, तंबाकू, नारियल, मेवा प्रमुखता से शामिल हैं। इनमें से किसी के लिए भी न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) नहीं है। जबकि एमएसपी का लगभग नब्बे फीसद हिस्सा लेने वाले धान और गेहूं अपनी कीमतों के चलते निर्यात बाजार से बाहर हैं। एक और रोचक बात - विदेश में भारत की बासमती की मांग ज्यादा है, लेकिन यह एमएसपी से बाहर है। ये आंकड़े बताते हैं कि कृषि उत्पादों की निर्यात मांग बढ़ाने के लिए सेक्टर में कानूनी सुधार देश की जरूरत है।

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ग्लोबल बाजार का समीकरण भी गड़बड़ाने का खतरा

अफसोस यह है कि जिस दौर में इन उपायों की सबसे ज्यादा जरूरत है, उसी दौर में एमएसपी गारंटी की मांग खड़ी होने लगी है। इसने निर्यातकों की चिंता बढ़ा दी हैं। इससे कोरोना की आपदा को अवसर में बदलने से चूक जाने का डर और बढ़ गया है। बड़ी बात यह है कि एमएसपी को लेकर आंतरिक ही नहीं, ग्लोबल बाजार का समीकरण भी गड़बड़ाने का खतरा है।

महंगाई का खामियाजा आम उपभोक्ताओं को भी उठाना पड़ रहा 

देश के दक्षिण व पश्चिम के राज्यों में बड़े उपभोक्ता उत्तरी क्षेत्र के राज्यों से एमएसपी वाला महंगा गेहूं लेने से कतराते हैं। दरअसल उन्हें विदेश से अच्छी क्वालिटी वाला गेहूं तुलनात्मक रूप से सस्ते दाम पर मिल सकता है। चालू फसल वर्ष 2020-21 की बात की जाए तो गेहूं का एमएसपी 1975 रुपये है, जबकि कई देशों के निर्यातक सिर्फ 1,450 रुपये प्रति क्विंटल गेहूं भारतीय बंदरगाह तक पहुंचाने के लिए तैयार हैं। हालांकि सीमा शुल्क के सहारे उनके आयात को रोका गया है। ऐसे में मिलों को भी एमएसपी वाला अनाज खरीदना पड़ता है। इसकी वजह से महंगाई का खामियाजा आम उपभोक्ताओं को भी उठाना पड़ रहा है। यानी एमएसपी एक ऐसा चक्र बन गया है जिसका असर आम उपभोक्ताओं तक पहुंचता है। ऐसे में दो ही खतरे हो सकते हैं। पहला यह कि निर्यात में अवरोध खड़ा हो और आम उपभोक्ता भी पिसे। दूसरा यह कि ऐसी स्थिति बने जिसमें आयातित कृषि उत्पादों से बाजार पट जाए। पहले से ही खाद्यान्न प्रचुर देश के लिए इन दोनों में से कोई भी स्थिति अपेक्षित नहीं है।

गेहूं, चावल व चीनी के मामले में भारत सरप्लस देश

सरकार ने वर्ष 2022 तक कृषि निर्यात को बढ़ाकर 60 अरब डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य निर्धारित किया है, जिसे निकट भविष्य में 100 अरब डॉलर तक ले जाने की उम्मीद है। सरकार की मंशा अपनी कृषि निर्यात नीति में भारत को शीर्ष 10 कृषि उत्पाद निर्यात करने वाले देशों की सूची में शामिल करना है। फिलहाल भारत की वैश्विक कृषि निर्यात में हिस्सेदारी मात्र 2.2 फीसद है, जिसे बढ़ाने की अपार संभावनाएं हैं। गेहूं, चावल व चीनी के मामले में भारत खपत से अधिक उत्पादन यानी सरप्लस वाला देश बन चुका है।

एमएसपी के कारण गन्ना किसानों का भुगतान करने में मुश्किलें 

देश में एकमात्र फसल गन्ना है जिसके समर्थन मूल्य की गारंटी दी गई है। नतीजा सबके सामने है। अधिक लागत मूल्य के चलते वैश्विक बाजार में भारतीय चीनी की पूछ नहीं है। इधर उन राज्यों में भी खरीद की गारंटी के चलते गन्ने की खेती होने लगी जहां पानी की बहुत कमी है। सरप्लस चीनी निर्यात के लिए सरकार को पिछले दो तीन सालों से जहां लगातार सब्सिडी देनी पड़ रही है वहीं दूसरी ओर मिलों की आर्थिक हालत खराब होने से गन्ना किसानों का भुगतान करने में मुश्किलें आ रही हैं।

मांग आधारित खेती पर जोर देने की जरूरत

सब्सिडी के सहारे कुछ जिंसों के निर्यात की कोशिश की गई हैं, जिनमें चीनी व गेहूं प्रमुख हैं। हाल ही में 60 लाख टन चीनी निर्यात के लिए निर्यात सब्सिडी का प्रविधान किया गया है। पिछले साल भी चीनी निर्यात के लिए लगभग 800 करोड़ रुपये की निर्यात सब्सिडी जारी करनी पड़ी। समर्थन मूल्य का स्तर लागत मूल्य से अधिक होने की वजह से ही गेहूं निर्यात की संभावनाएं बिल्कुल नहीं बन पा रही हैं। निर्यात सब्सिडी को लेकर विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में कई बार भारत की साख पर बट्टा लग चुका है। विश्व बाजार में अपनी पैठ मजबूत करने के लिए मांग आधारित खेती पर जोर देने की जरूरत है।

निर्यात सब्सिडी को लेकर डब्ल्यूटीओ में शिकायत 

कृषि अर्थशास्त्री डॉ. पीके जोशी का कहना है, 'विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) का सदस्य होने के नाते ग्लोबल बाजार में खरीद-बिक्री के लिए भारत कई नियमों से बंधा हुआ है। इसके बावजूद सरकार कई बार अपने किसानों व उपभोक्ताओं के हितों के मद्देनजर उन नियमों को नजरअंदाज भी करती रही है। दो वर्ष पूर्व गेहूं आयात पर भारत द्वारा शुल्क लगाने के मामले में डब्ल्यूटीओ के सदस्य देशों ने विरोध किया किया था। चीनी निर्यात सब्सिडी को लेकर 11 गन्ना उत्पादक देशों ने डब्ल्यूटीओ में शिकायत दर्ज कराई है।

चीन से सीखने की जरूरत

यह भी ध्यान रहे कि कभी चीनी और चावल उत्पादन का बड़ा निर्यातक रहे चीन ने अब दोनों वस्तुओं का आयात शुरू कर दिया है। इनकी जगह उस जोत में चीन ने उन वस्तुओं का उत्पादन शुरू किया जिनकी वैश्विक मांग ज्यादा है। इससे चीन की कमाई भी बढ़ेगी और चावल तथा गन्ना उत्पादन में होने वाले प्राकृतिक संसाधन का दोहन भी कम होगा। चीन ने मोटा चावल भारत से मंगाना शुरू किया है भारतीय निर्यातक एजेंसी खुले बाजार से खरीदकर उसका निर्यात करती हैं। एमएसपी की गारंटी हुई तो ऐसी एजेंसियों के हाथ-पैर भी बंध जाएंगे।


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