कंपनी बनाकर जड़ी-बूटियों का चूर्ण बेच रहीं आदिवासी महिलाएं, सालाना टर्नओवर हुआ एक करोड़ से अधिक
मध्य प्रदेश के ग्वालियर अंचल स्थित श्योपुर जिले की कुछ आदिवासी महिलाओं ने आत्मनिर्भरता की नई कहानी लिखी है। वे अब अपनी कंपनी का संचालन कर रही हैं। स्वाभिमान के साथ जड़ी-बूटियों का चूर्ण बनाती हैं और आयुर्वेदिक उत्पाद बनाने वाली कंपनियों को आपूर्ति करती हैं।
मनोज श्रीवास्तव, ग्वालियर। मध्य प्रदेश के ग्वालियर अंचल स्थित श्योपुर जिले की कुछ आदिवासी महिलाओं ने आत्मनिर्भरता की नई कहानी लिखी है। वे अब अपनी कंपनी का संचालन कर रही हैं। स्वाभिमान के साथ जड़ी-बूटियों का चूर्ण बनाती हैं और आयुर्वेदिक उत्पाद बनाने वाली कंपनियों को आपूर्ति करती हैं। इनकी कंपनी का टर्नओवर सालाना एक करोड़ रुपये पहुंच गया है। अब उनका मुनाफा करीब दोगुना हो गया है। इन महिलाओं की कंपनी का नाम है सहरिया महिला लघु वनोपज संग्रहण प्रोड्यूसर लिमिटेड। इस कंपनी से छह हजार महिलाएं जुड़ी हैं, जो अपने परिवार की आर्थिक दिक्कतें दूर कर रही हैं।
सरकारी योजना से मिली मदद
कहानी श्योपुर जिले के कराहल-विजयपुर के जंगलों से शुरू होती है। जमुना आदिवासी व कुछ अन्य आदिवासी महिलाएं इन जंगलों से जड़ी-बूटी लाकर, उसका चूर्ण बनाकर स्थानीय व्यापारियों को बहुत कम दाम में फुटकर में बेचती थीं। यह बात मप्र आजीविका मिशन के जिला परियोजना अधिकारी डा. एसके मुद्गल को पता चली। डा. मुद्गल के मुताबिक, वर्ष 2016 से भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय ने आदिवासी महिलाओं की स्थिति को सुधारने के लिए विशेष कार्यक्रम शुरू किया था। इसके तहत दिल्ली की एक्सेस डेवलपमेंट सर्विस नामक संस्था ने इन सहरिया आदिवासी महिलाओं को तीन महीने तक भोपाल, जबलपुर, सवाई माधोपुर (राजस्थान) आदि जगह जड़ी-बूटी की पहचान व इनकी खासियत की जानकारी के लिए तीन महीने तक प्रशिक्षण दिलवाया। इसके बाद महिलाओं ने सहरिया महिला लघु वनोपज संग्रहण प्रोड्यूसर लिमिटेड कंपनी बनाई।
लाभ की हिस्सेदारी बराबर-बराबर
जमुना आदिवासी कंपनी की डायरेक्टर बनीं व छह महिलाओं को सदस्य बनाया। फिर कंपनी में 100-100 रुपये लेकर छह हजार महिलाओं को शेयर होल्डर बनाया गया। इन सबने मिलकर जड़ी-बूटी खोजने, उसका चूर्ण बनाने और बड़ी कंपनियों को बेचने के अनुबंध किए। परिणाम यह रहा कि अब कंपनी का सालाना टर्नओवर एक से सवा करोड़ रुपये है। इसमें से लाभ की राशि सभी छह हजार शेयर होल्डर महिलाओं में बांट दी जाती है।
फुटकर व्यापार में मिलते थे कम पैसे
श्योपुर जिले में जड़ी-बूटी खरीदने के लिए 48 कलेक्शन सेंटर बनाए गए हैं। यहां कमीशन के आधार पर महिलाएं ही जड़ी-बूटी खरीदती हैं और उनकी छंटाई कर गोदाम भेजती हैं, जहां फिर से छंटनी कर श्रेष्ठतम जड़ी-बूटी का चूर्ण बनाकर पैक किया जाता है। कंपनी की डायरेक्टर जमुना आदिवासी कहती हैं, पहले स्थानीय व्यापारी चूर्ण 50 से 70 रुपये प्रतिकिलो में लेते थे, अब बड़ी कंपनियां प्रति किलो 100 से 150 रुपये देती हैं।
कोरोना काल में बेचा 12 लाख रुपये का काढ़ा
ये महिलाएं जंगल से आंवला, बेल, बेल गूदा, बहेड़ा, धावड़ा गोंद, सलई गोंद, शतावर, वन तुलसी, भृंगराज, शंखपुष्पी, ढेंचा, गुडमार की पत्तियां, चीर गोंद, गिलोय, अश्वगंधा, महुआ व अन्य कई प्रकार की वनस्पतियों व जड़ी-बूटी का संग्रहण करती हैं। कोरोना काल में चूर्ण कंपनियों तक नहीं पहुंचा पाने के कारण जब कामकाज बंद हुआ तो इन महिलाओं ने सूझबूझ दिखाते हुए जड़ी-बूटियों का इम्यूनिटी बढ़ाने वाला काढ़ा तैयार किया और दो महीने में 12 लाख रुपये से अधिक का काढ़ा बनाकर बेचा।
पहले हम स्थानीय व्यापारियों को चूर्ण बेचते थे तो कम लाभ मिलता था, अब बड़ी कंपनियों को बेचते हैं तो दोगुना दाम मिलता है। इससे करीब आठ हजार महिलाओं को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से लाभ मिल रहा है। यह हम आदिवासी महिलाओं के सपने सच होने जैसा है।
- जमुना आदिवासी, निदेशक, सहरिया महिला लघु वनोपज संग्रहण प्रोड्यूसर लिमिटेड कंपनी, श्योपुर, मप्र
सहरिया महिलाओं की इस कंपनी के चूर्ण की वैश्विक ब्रांडिंग के लिए आनलाइन वेबसाइट बनवा कर प्लेटफार्म तैयार करवाएंगे, ताकि वे अपने उत्पाद आनलाइन भी बेच सकें। इससे उनके परिश्रम को और सम्मान तथा उन्हें और अधिक लाभ मिलेगा।
- शिवम वर्मा, कलेक्टर, श्योपुर, मप्र