पंडित हरिप्रसाद चौरसिया ने कहा, बांसुरी न होती तो शायद मैं भी न होता
इंदौर में ऐसे दृश्य की साक्षी बनी जिसमें सुर स्वर और ताल की त्रिवेणी थी। लाभ मंडपम सभागृह में पंडित चौरसिया ने स्वरों का परवीन सुल्ताना ने सुरों का और हेमा मालिनी ने ताल का प्रतिनिधित्व करते हुए न केवल श्रोताओं का दिल जीता बल्कि सम्मान भी प्राप्त किया।
इंदौर, राज्य ब्यूरो। यह बचपन की बात है.. एक लड़का बांसुरी बजाते जा रहा था। उसका वादन मेरे मन को भा गया। मैं उसके पीछे-पीछे चल पड़ा। जब पानी पीने के लिए उसने बांसुरी रखी तो मैं तुरंत उसे लेकर भाग निकला। अब आप चाहे इसे चोरी कह सकते हैं, पर मेरे लिए चोरी नहीं थी। मुझे उसे बेचकर पैसे थोड़े ही कमाने थे। मैं तो बस उसे बजाना चाहता था। इस बांसुरी ने मुझे बहुत कुछ दिया। अगर यह नहीं होती तो शायद मैं भी नहीं होता। वास्तविकता यह है कि बांसुरी जैसा वाद्य न तो कभी था, न है और न होगा। बांस का एक ऐसा टुकड़ा, जो मुफ्त में मिल जाता है, जिसमें न तो चमड़ा है, न तार और न ही उसे ट्यून करने की आवश्यकता है। बस जरूरत है तो अधरों से लगाकर फूंक मारने की। मैं तो खुद अभी इसकी शुरुआत कर रहा हूं। इस तपस्या में अभी बहुत वक्त लगेगा।
इंदौर में सम्मान समारोह में पं. हरिप्रसाद चौरसिया ने रखी दिल की बात
यह कहना था पंडित हरिप्रसाद चौरसिया का, जिन्होंने बांसुरी वादन का एक घराना ही रच दिया और अमर कर दिया उस साज की परंपरा को, जिसे द्वापर में श्री कृष्ण ने स्वीकारा था। इंदौर में रविवार की रात एक ऐसे दृश्य की साक्षी बनी, जिसमें सुर, स्वर और ताल की त्रिवेणी थी। लाभ मंडपम सभागृह लंबे समय बाद उस परंपरा की आधार भूमि बना, जिसमें पंडित चौरसिया ने स्वरों का, बेगम परवीन सुल्ताना ने सुरों का और हेमा मालिनी ने ताल का प्रतिनिधित्व करते हुए न केवल श्रोताओं का दिल जीता, बल्कि सम्मान भी प्राप्त किया। संस्था स्वरवेणु गुरुकुल व अन्य संस्थाओं द्वारा आयोजित इस सम्मान समारोह में पंडित चौरसिया को स्वरवेणु लाइफ टाइम अचीवमेंट सम्मान, बेगम परवीन सुल्ताना और हेमा मालिनी को स्वर हरि सम्मान से अलंकृत किया गया।
हेमा की ख्वाहिश पर परवीन की पेशकश
सम्मान समारोह के साथ जब हस्तियों को कुछ कहने का मौका मिला तो हेमा मालिनी ने परवीन सुल्ताना से फिल्म कुदरत का गीत सुनाने की इच्छा जता दी। हेमा की फरमाइश को परवीन सुल्ताना ने गीत हमें तुमसे प्यार कितना सुनाकर पूरा किया। परवीन सुल्ताना ने कहा कि जीवन में सम्मान तो बहुत मिले, लेकिन कुछ सम्मान ऐसे होते हैं जो दिल में संजोकर रखे जाते हैं। यह एक ऐसा ही सम्मान है। उद्बोधन के गंभीर होते माहौल को पंडित चौरसिया ने बड़ी ही खूबसूरत ढंग से सहज कर दिया। माइक थामते उन्होंने कहा कि मैं थोड़ा नर्वस हो गया हूं, क्योंकि दो खूबसूरत हस्तियां मेरे आस- पास बैठी हैं, एक हेमा और दूसरी परवीन। आज का यह दृश्य शायद फिर देखने को ना मिले।