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नतीजों में नहीं मायनों में बड़े उपचुनाव: एमपी और कर्नाटक के रिजल्ट से बदलेगा आंतरिक समीकरण

बिहार विधानसभा चुनाव के साथ ही मध्य प्रदेश और कर्नाटक में हो रहे उपचुनाव में जीत हार का राजनीतिक महत्व भले कम हो लेकिन इसके नतीजे राज्य में बड़े रोचक सवाल खड़े कर सकते हैं और भविष्य की दिशा भी तय हो सकती है।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Tue, 27 Oct 2020 07:12 PM (IST)Updated: Tue, 27 Oct 2020 07:12 PM (IST)
नतीजों में नहीं मायनों में बड़े उपचुनाव: एमपी और कर्नाटक के रिजल्ट से बदलेगा आंतरिक समीकरण
मध्य प्रदेश और कर्नाटक में हो रहे उपचुनाव में जीत हार का राजनीतिक कम है।

आशुतोष झा, नई दिल्ली। बिहार विधानसभा चुनाव के साथ ही मध्य प्रदेश और कर्नाटक में हो रहे उपचुनाव में जीत हार का राजनीतिक महत्व भले कम हो क्योंकि सीधे तौर पर राज्य सरकारों पर असर नहीं देखा जा रहा है, लेकिन इसके नतीजे राज्य में बड़े रोचक सवाल खड़े कर सकते हैं और भविष्य की दिशा भी तय हो सकती है। मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ-साथ शिवराज चौहान की क्षमता और पकड़ की कड़ी परीक्षा होगी। वहीं कर्नाटक में यह तय होगा कि प्रदेश भाजपा के अब तक के सबसे ताकतवर नेता और मुख्यमंत्री बीएस येद्दयुरप्पा अपने बेटे को किस हद स्थापित कर पाएंगे। वहीं कांग्रेस में प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार और पूर्व मुख्यमंत्री सिद्दारमैया की अंदरूनी खींचतान का भी जवाब मिलेगा।

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मप्र उपचुनाव में सिंधिया की अग्नि परीक्षा, बहुमत हासिल करने के लिए 28 में सिर्फ 8 सीट की जरूरत 

मध्य प्रदेश में चौहान सरकार को बहुमत हासिल करने के लिए 28 में सिर्फ 8 सीटें चाहिए। यह कठिन भी नहीं माना जा रहा है, लेकिन कुछ महीने पहले जिस तरह कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने समर्थक विधायकों को भाजपा में लाकर दम दिखाया था उसकी अग्नि परीक्षा होगी। यानी शिवराज से ज्यादा ज्योतिरादित्य को बड़ी जीत की जरूरत है। अगर इसमें सेंध लगी तो प्रदेश के साथ-साथ केंद्र में भी उनके रुतबे पर खरोंच तय है। वहीं प्रदेश भाजपा के पुराने धुरंधरों के लिए पार्टी विधायकों की हार परोक्ष रूप से जीत होगी। दरअसल पिछले दिनों में ज्योतिरादित्य का प्रभाव और दबाव प्रदेश सरकार पर हावी दिख रहा था।

कर्नाटक में दो सीटों पर उपचुनाव: कांग्रेस, भाजपा और जदएस तीनों के लिए नाक की लड़ाई 

वहीं कर्नाटक में सिर्फ दो सीटों पर उपचुनाव है। एक कांग्रेस की सीट है और दूसरी जदएस की। सरकार की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है। लेकिन कांग्रेस, भाजपा और जदएस तीनों के लिए नाक की लड़ाई बन गई है। खास तौर से जदएस और कांग्रेस के गढ़ ओल्ड मैसूर क्षेत्र की सीट सीरा केंद्र बिंदु बन गई है। उससे भी रोचक यह है कि कांग्रेस और भाजपा के अंदर इस सीट की जीत हार से भविष्य के समीकरण तय हो सकते हैं। दो साल पहले इसी क्षेत्र में केआर पेट विधानसभा सीट जिताने वाले मुख्यमंत्री येद्दयुरप्पा के युवा पुत्र विजयेंद्र को ही सीरा में लगाया गया है। केआर पेट की तरह ही यह भी वोकालिग्गा प्रभाव वाली सीट है जबकि येद्दयुरप्पा लिंगायत हैं। जाहिर है कि अगर विजयेंद्र इस सीट को जिताने में सफल होते हैं तो भाजपा के अंदर वह एक सफल रणनीतिकार के रूप मे स्थापित होंगे। हालांकि पार्टी के दूसरे नेता यह नहीं चाहेंगे, लेकिन विजयेंद्र को नजरअंदाज करना संभव नहीं होगा।

कर्नाटक में विजयेंद्र और शिवकुमार की अग्नि परीक्षा

ध्यान रहे कि कुछ महीने पहले बने प्रदेश संगठन में विजयेंद्र को महासचिव की बजाय उपाध्यक्ष बनाकर परोक्ष रूप से किनारे लगाने की कोशिश हुई थी। दूसरी तरफ कांग्रेस के नए प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार के भविष्य के लिए यह जरूरी है। यह जीत ही उन्हें कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धरमैया से आगे खड़ा करने में सफल होगी। अगर सूत्रों की मानी जाए तो भाजपा और कांग्रेस दोनों के अंदर कई नेताओं की यही ख्वाहिश होगी कि विजयेंद्र और शिवकुमार सफल न हो पाएं।


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