रोज सुबह शहीद की मां बेटे की प्रतिमा पर बरसाती है ममता, कुछ इस तरह करती है याद
बस्तर में नक्सलियों ने सुरक्षा बल पर घात लगाकर हमला किया था। हमले में कांस्टेबल बसील टोप्पो शहीद हो गए थे। इकलौते बेटे की याद में मां ने घर के आंगन में ही बेटे का स्मारक बनाया है।
बिलासपुर, रवींद्र थवाईत। नक्सलियों से लोहा लेते हुए बस्तर में शहीद हुए अपने इकलौते बेटे की शहादत से व्यथित एक मां ने अपने बेटे की स्मृति को जीवित रखने के लिए उसकी प्रतिमा स्थापित करने की ठान ली। बेटे के प्रति मां के इस दर्द को देखकर पिता ने घर के आंगन में ही मंडप तैयार कर बेटे की आदमकद प्रतिमा स्थापित कर दी। इस प्रतिमा पर शहीद की मां उसी तरह ममता लुटाती है, जैसे वह बचपन अपने बेटे पर लुटाया करती थी। ममत्व के इस मार्मिक दृश्य को देखने वालों की आंखें आज भी बरबस छलक पड़ती है।
बचपन से ही देश की सेवा करने की थी इच्छा
19 अगस्त 2011 को बस्तर में नक्सलियों ने सुरक्षा बल पर घात लगाकर हमला किया। अचानक हुए हमले में कांस्टेबल बसील टोप्पो शहीद हो गए। जिला पुलिस बल के शहीद कांस्टेबल बसील टोप्पो के पिता निर्मल टोप्पो ने दैनिक जागरण के सहयोगी अखबार नईदुनिया को बताया कि छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले की पुरसाबहार तहसील के एक छोटे से गांव पेरूवांआरा में जन्मे बसील बचपन से ही सेना और पुलिस में भर्ती होकर देश की सेवा करना चाहते थे। हायर सेकंडरी की पढ़ाई पूरी करने के बाद जिला पुलिस में भर्ती हो गए। पहली पोस्टिंग घोर नक्सल प्रभावित क्षेत्र बस्तर के बीजापुर में मिली थी।
नक्सलियों ने बनाया था निशाना
साल 2011 में बसील की पोस्टिंग बीजापुर के भद्रकाली थाने में की गई। अगस्त 2011 में वह 15 दिन की छुट्टी लेकर अपने घर पेरूवांआरा आए। लेकिन एक सप्ताह घर में रहने के बाद अचानक छुट्टी खत्म होने की सूचना मिली और हेडक्वार्टर जाने के लिए कहा गया। वह तुरंत तैयार होकर बीजापुर निकल गए। 19 अगस्त 2011 को अपने 11 साथियों के साथ भोपालपट्टनम से भद्रकाली कैंप को जा रहे थे। जंगल में नक्सलियों ने घात लगाकर उनके वाहन को निशाना बनाया। अधाधुंध फायरिंग की। इसमें बसील और उनके तीन साथी शहीद हुए।
बेटे की याद में बनवाया स्मारक
पिता ने बताया, बसील की शहादत की खबर हमें विचलित कर गई। उसकी मां सुपियामो टोप्पो यह मानने को तैयार नहीं थी कि उसका बेटा शहीद हो गया है। अंतत: उसने इच्छा जताई कि आंगन में ही बेटे की याद में एक स्मारक बनवा दें। उसकी इस इच्छा को पूरा करने के लिए और बेटे की शहादत को अमर कर देने की इच्छा से मैं मूर्तिकार की तलाश में ओडिशा तक गया। आदमकद मूर्ति तैयार कराई और मंडप बनाकर स्मारक के रूप में स्थापित किया। अब बसील की मां इस स्मारक की और बेटे की प्रतिमा की उसी तरह देखभाल करने में जुटी रहती है, मानो अपने बेटे पर ममता उड़ेल रही हो। यह देख हमारी आंखें भर आती हैं।
गांव की बहनें बांधती हैं राखी
स्थानीय ग्रामीणों का भी अपने गांव के शहीद बसील से लगाव देखते ही बनता है। यहां हर साल राखी के दिन बहनें सबसे पहले इस शहीद जवान की प्रतिमा की कलाई में राखी बांधती हैं। इसके बाद अपने भाइयों के हाथ पर रक्षा सूत्र सजाती हैं। शहीद जवान की वीरता को जीवंत रखने गांव में बसील के नाम पर खेल प्रतियोगिता का आयोजन भी किया जाता है।
अब खबरों के साथ पायें जॉब अलर्ट, जोक्स, शायरी, रेडियो और अन्य सर्विस, डाउनलोड करें जागरण एप