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जानें- अंतरिक्ष में बाजी मारने वाला रूस मंगल की राह में अमेरिका के हाथों कैसे पिछड़ गया

रूस ने जब पहली बार मंगल की तरफ अपना यान भेजने की योजना बनाई थी तो उसके पीछे एक बड़ी वजह कहीं न कहीं उसको अंतरिक्ष में मिली कामयाबी ही थी। लेकिन उसको मंगल की राह में लगातार नाकामी मिली।

By Kamal VermaEdited By: Published: Mon, 08 Feb 2021 07:32 AM (IST)Updated: Mon, 08 Feb 2021 07:32 AM (IST)
जानें- अंतरिक्ष में बाजी मारने वाला रूस मंगल की राह में अमेरिका के हाथों कैसे पिछड़ गया
मंगल पर भेजे गए मिशन में अमेरिका का सक्‍सेस रेट अधिक है।

नई दिल्‍ली (ऑनलाइन डेस्‍क)। चीन के यान तिआनवेन-1 ने दो दिन पहले मंगल ग्रह की पहली ब्‍लैक एंड व्‍हाइट तस्‍वीर भेजी थी। ये तस्‍वीर निश्चित तौर पर इस बात का भी सुबूत थी कि ये यान सफलतापूर्वक अपनी राह पर आगे बढ़ रहा है। जुलाई में छोड़ा गया ये यान इस माह मंगल के ऑर्बिट में प्रवेश करेगा। इसके लिए वैज्ञानिक इसकी गति को धीमा करेंगे जिससे इसके आगे की राह आसान हो सके। आपको बता दें कि चीन के इस यान के पीछे यूएई का होप भी है। इसके भी इस माह तक मंगल के ऑर्बिट में पहुंचने की उम्‍मीद है। ये मिशन इसलिए बेहद खास है क्‍योंकि किसी भी अरब देश का ये पहला मंगल मिशन है। आपको बता दें कि मंगल ग्रह के लिए अब तक कुल 49 मिशन हुए हैं। इनमें से आधे या शायद उससे भी ज्‍यादा नाकाम हुए हैं। क्‍या आपको ये पता है कि जिस मंगल ग्रह को जानने के लिए इतने यान भेजे जा चुके हैं उसकी शुरुआत कब और किसने की थी। यदि नहीं तो हम आपको इसका जवाब आज देंगे।

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इससे पहले आपको बता दें कि मंगल ग्रह के मिशन ने भारत ने पहली ही बार में सफलता हासिल कर ली थी, जो एक बड़ी बात है। भारत के मंगलयान ने ही पहली बार मंगल ग्रह पर पानी की मौजूदगी के बारे में दुनिया को बताया था। चीन के इस मिशन की बात करें इसमें ऑर्बिटर और लैंडर दोनों ही हैं। इस लिहाज से यदि चीन का ये यान सफलतापूर्वक मंगल की सतह पर उतरने में कामयाब हो जाता है तो ऐसा करने वाला चीन पहला देश बन जाएगा। ये जानना काफी दिलचस्‍प है कि मंगल ग्रह पर जाने और इसको जानने का कौतुहल कुछ वर्षों का नहीं बल्कि छह दशक पुराना है। मंगल ग्रह पर भेजे गए अधिक मिशन को नाकामी हाथ लगी है।

अंतरिक्ष में धाक जमाने वाले सोवियत रूस ने सबसे पहले इसकी शुरुआत 10 अक्‍टूबर 1960 में मार्स-1 (मार्सनिक-1) से की थी। लेकिन इस लॉन्चिंग के दौरान ही ये नष्‍ट हो गया था। इस यान को मंगल ग्रह के पास से गुजरना था। आपको यहां पर ये भी बता दें कि 1960 से 1962 तक सोवियत रूस ने पांच बार मंगल ग्रह पर यान भेजने और वहां की जानकारी हासिल करने की कोशिश की थी। लेकिन हर बार उन्‍हें विफलता ही मिली। इसके बाद 1964, 1969 और 1971 में भी उसको नाकामी ही हाथ लगी।

मई 1971 में रूस को पहली बार इस मिशन में सफलता हासिल हुई और उसका मार्स-2 यान 27 नवंबर 1971 को मंगल के ऑर्बिट में प्रवेश कर गया। हालांकि यान इसका दूसरा चरण सफलतापूर्वक पूरा नहीं कर सका और उसका लैंडर मंगल की सतह पर उतरने में नाकाम रहा था। इन नाकामियों के बावजूद रूस ने हार नहीं मानी। वो लगातार मंगल पर अपने यान भेजता रहा।

28 मई 1971 को लॉ‍न्‍च किए गए रूस के मार्स-3 उस वक्‍त बड़ी कामयाबी हासिल हुई जब 2 दिसंबर 1971 को उसके लैंडर ने मंगल पर बेहद सटीक लैंडिंग की। इसने इसकी तस्‍वीर भी भेजी थी। लेकिन कुछ ही सैकेंड के बाद इससे संपर्क टूट गया। इसके बाद 1973 तक छोड़े गए उसके चार और मिशन फेल ही साबित हुए। 1988 में रूस से दो बार फिर कोशिश की लेकिन कामयाबी नहीं मिली। नवंबर 2011 में भी यही हाल रहा। वर्ष 2016 में रूस की रॉसकासमॉस एजेंसी ने यूरोपियन स्‍पेस एजेंसी के साथ मिलकर मिशन लॉन्‍च किया जो कामयाब रहा।

अंतरिक्ष में रूस के सबसे बड़े प्रतिद्वंदी रहे अमेरिका को इसमें पहली बार नाकामी हाथ लगी थी जबकि दूसरी बार उसके मेरिनर-4 यान के जरिए नासा ने पहली बार सफलता का स्‍वाद चखा था। 15 जुलाई 1965 को उसका ये यान मंगल के पास से गुजरा था और वहां की जानकारी वैज्ञानिकों को दी थी। 1964 लॉन्‍च किए गए अमेरिका के तीन में से एक ही मिशन को ये सफलता हासिल हुई थी। 1969 में जहां रूस को मंगल मिशन में नाकामी हाथ लग रही थी वहीं नासा के यान मेरिनर-6 और मेरिनर-7 सफलतापूर्वक अपना मिशन पूरा कर रहा था।

इसके बाद 1971 में नासा का मेरिनर-8 मंगल के ऑर्बिट में पहुंचने में नाकाम रहा था। लेकिन इसी वर्ष लॉन्‍च किए गए मेरिनर-9 ने वो कर दिखाया जो इससे पहले कोई नहीं कर सका था। 14 नवंबर 1971 को इसने मंगल के ऑर्बिट में प्रवेश किया और 516 दिनों तक लगातार काम करता रहा। इसके बाद 1975 में लॉन्‍च किए गए चारों मिशन में नासा को सफलता हाथ लगी थी। यही क्रम 1996, 1998, 1999, 20012001, 2003, 2007,2011, 2013 और 2018 में भी जारी रहा।


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