यहां छप्पर फाड़ बरस रहीं लक्ष्मी, वहां कंगाली का बसेरा, जानें किधर जा रही दुनिया
एक ओर आम आदमी दो जून की रोटी के लिए रात दिन जद्दोजहद में जुटा है तो वहीं धनकुबेर दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रहे हैं। पढ़ें अरबपतियों की बढ़ती संख्या पर दिलचस्प रिपोर्ट...
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। आसपास नजर दौड़ाएं। समृद्धि आपको अनायास दिखेगी। यह भौतिक समृद्धि गगनचुंबी इमारतों के रूप में, सड़कों पर भागते वाहनों के रूप में, विशालकाय निर्माण संरचनाओं के रूप में दिखेगी। इस भौतिक समृद्धि को हासिल करने में हमने न जाने अपने चरित्र के कितने आयामों को कुर्बान किया है। जल, जंगल और जमीन की चिंता नहीं की। अमीरी और गरीबी के बीच बढ़ते फासले से भी बेपरवाह रहे। यही वजह है कि एक ओर आम आदमी दो जून की रोटी के लिए रात दिन जद्दोजहद में जुटा है तो वहीं दूसरी ओर धनकुबेर दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रहे हैं।
बढ़ते धनकुबेर
इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि बीते हुए समय की तुलना में आज आम लोग ज्यादा आराम में हैं। समृद्धि नीचे से लेकर ऊपर तक बढ़ी है। लेकिन यह केवल मौद्रिक समृद्धि ही साबित हो रही है। मौजूदा वक्त में आज आम आदमी महंगाई से जूझ रहा है हमारे धनकुबेर दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रहे हैं। फोर्ब्स की 2019 की सूची में दुनिया के 2,153 अरबपतियों के नाम हैं। इस साल के अरबपतियों की कुल संपत्ति 8,700 अरब डॉलर रही है। जबकि 2018 में इनकी कुल संपत्ति 9100 अरब डॉलर थी। 25 साल पहले जब फोर्ब्स ने अपनी पहली सूची जारी की थी तो दुनिया भर में महज 140 अरबपति थे।
अरबपतियों के मामले में चौथे स्थान पर भारत
साल 2019 में फोर्ब्स द्वारा जारी सालाना सूची में 106 लोगों के साथ भारत अरबपतियों के मामले में दुनिया में चौथे स्थान पर है। 19वीं सदी के आठवें दशक में देश में कुल गिने चुने दो अरबपति थे। इनकी कुल संपत्ति देश के सकल घरेलू उत्पाद का एक फीसद थी। 2008 के दौरान शेयर बाजार द्वारा लगाई गई छलांग के समय इनकी संपत्ति सकल घरेलू उत्पाद का 22 फीसद तक पहुंच गई थी।
प्रकृति पर प्रहार
पालन पोषण से लेकर हमारे कल्याण में प्रकृति का महती योगदान रहा है, लेकिन हम सब प्रकृति को परे रखकर समृद्धि हासिल करने के फेर में उसका नाश करते जा रहे हैं। प्रकृति और इंसान के इसी रिश्ते का आकलन करने के लिए 2006 से न्यू इकोनॉमिक्स फाउंडेशन नामक संस्था हैप्पी प्लेनेट इंडेक्स (एचपीआइ) तैयार कर रही है। इसे लोगों के कल्याण और पर्यावरण के बीच के असर के आधार पर तैयार किया जाता है। हम प्रकृति पर इतना प्रहार कर चुके हैं कि इस सूचकांक में बहुत निचले पायदान पर स्थान मिला है।
भ्रष्टाचार का वार
तथाकथित समृद्धि हासिल करते हुए हम साल दर साल भ्रष्टाचार के गर्त में समाते जा रहे हैं। हमारी चाल, चरित्र और चेहरे का नक्श बिगड़ता जा रहा है। नैतिकता की परवाह करने वाले चंद लोग ढूंढने पर मिलेंगे। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा हर साल जारी किए जाने वाले भ्रष्टाचार सूचकांक में हम निचले पायदान पर जगह बनाते रहे हैं। इस सूचकांक में हम सर्वाधिक भ्रष्ट देशों में शुमार हैं। साल दर साल स्थिति सुधरने की बजाय और बिगड़ रही है।
लोकतंत्र की पीड़ा
लोकतंत्र देखने, सुनने, समझने और महसूस करने में जितना आदर्श और प्रेरक लगता है, उतना है नहीं। लोकतंत्र में शीर्ष सत्ता पर बैठे लोगों की शुचिता, नैतिकता, चरित्र, निष्ठा और जवाबदेही में आए क्षरण का असर सबसे निचले स्तर तक देखा जा सकता है। हम लोकतंत्र में रह जरूर रहे हैं, लेकिन जी नहीं पा रहे हैं। इकोनॉमिस्ट डेमोक्रेसी सूचकांक के मुताबिक, हमें ऐसे देशों के साथ शामिल किया गया है, जहां पूर्ण लोकतंत्र नहीं है।
सियासत में सबसे खराब प्रदर्शन
साल 2018 के लोकतंत्र सूचकांक में हमारे देश को 41वें पायदान पर जगह मिली है। पूर्ण लोकतंत्र के तहत 25 देश ही शामिल हैं, जबकि हम कुल 7.23 फीसद के साथ दोषपूर्ण लोकतंत्र वाली श्रेणी में शामिल हैं। इकोनॉमिस्ट डेमोक्रेसी सूचकांक देशों को पांच मापदंडों पर रखता है - चुनावी प्रक्रिया और बहुलवाद, सरकार का कामकाज, राजनीतिक भागीदारी, राजनीतिक संस्कृति और नागरिक स्वतंत्रता। इन सभी मापदंडों के बीच भारत ने राजनीतिक संस्कृति में सबसे खराब प्रदर्शन किया है।