मोहनलालगंज कांड : पोस्टमार्टम रिपोर्ट पर खाकी की काली छाया!
राजधानी के मोहनलालगंज कांड में महिला की दोनों किडनी मौजूद होने से पोस्टमार्टम रिपोर्ट संदिग्ध हो गई है। रिपोर्ट से सभी जिम्मेदारों की भूमिका शक में है। चिकित्सकों से लेकर पुलिस की ओर अंगुलियां उठ रही हैं। यह बात कही जा रही है कि अक्सर बड़े मामलों में पुलिस के दबाव में ही डाक्टर पोस्टमार्टम रिपोर्ट बनाते हैं। मोह
लखनऊ। राजधानी के मोहनलालगंज कांड में महिला की दोनों किडनी मौजूद होने से पोस्टमार्टम रिपोर्ट संदिग्ध हो गई है। रिपोर्ट से सभी जिम्मेदारों की भूमिका शक में है। चिकित्सकों से लेकर पुलिस की ओर अंगुलियां उठ रही हैं। यह बात कही जा रही है कि अक्सर बड़े मामलों में पुलिस के दबाव में ही डाक्टर पोस्टमार्टम रिपोर्ट बनाते हैं।
मोहनलालगंज में 16 जुलाई की रात को बेरहमी से मारी गई एक महिला की पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने भूचाल ला दिया है। पुलिस तफ्तीश पर उठ रहे संदेह को इस रिपोर्ट ने और पुख्ता कर दिया। दरअसल, महिला ने पति को बचाने के लिए एक किडनी दान दी थी, लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उसकी दोनों किडनी दिखाई गई हैं।
सर्टिफिकेट के मुताबिक, उसकी उम्र 36 वर्ष है, लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उसे 25 वर्ष का दिखाया गया है। रिपोर्ट में उसके साथ दुष्कर्म की पुष्टि नहीं है। इस वजह से सबसे बड़ा संदेह यह हो रहा है कि कहीं पुलिस ने चिकित्सकों पर दबाव डालकर तो मनचाही रिपोर्ट नहीं बनवा ली। यह संदेह इसलिए भी बहुत पुख्ता है, क्योंकि एडीजी सुतापा सान्याल ने 17 जुलाई की सुबह कहा था कि शव को सुरक्षित रखा जाएगा, लेकिन उसी रात अंत्येष्टि करा दी गई। क्यों ?
स्वीपर के भरोसे पोस्टमार्टम
लखनऊ के पोस्टमार्टम हाउस का स्वीपर लाश की चीर-फाड़ करता है और वह जो बोलता है, डाक्टर उसे ही लिखते हैं। अब तो डाक्टरों का पैनल बन रहा है, फिर भी कोई रुचि नहीं लेता। डाक्टर तो दूर बैठकर सिर्फ लिखने का काम करते हैं। अगर वीडियोग्राफी होती तो कुछ देर के लिए शव के पास खड़े हो जाते हैं। बड़े मामलों में पुलिस खुद ही तय कर देती कि क्या लिखना है।
कुछ बानगी
केस एक
जून 2011 में लखीमपुर खीरी के निघासन थाने में एक नाबालिग लड़की की पेड़ से लटकी लाश मिली। पुलिस ने आत्महत्या बताया। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी लटकने की वजह से गले पर दबाव मौत की वजह बताई गई। हंगामा होने पर दोबारा पोस्टमार्टम हुआ तो पता चला कि गला घोंटकर मारा गया था। निष्कर्ष निकला कि पुलिस के दबाव में तीन डाक्टरों के पैनल ने गलत रिपोर्ट बनाई। तीनों को निलंबित कर दिया गया और एसपी का भी तबादला कर दिया गया।
केस दो:
बदायूं में बीती 28 मई को पेड़ से लटकी दो बहनों का शव मिला। पुलिस के दबाव में पोस्टमार्टम रिपोर्ट में दुष्कर्म की आशंका जताई गई। बाद में यह जांच सीबीआइ को दी गई। सीबीआइ ने रिपोर्ट के झोल को देखते हुए दोबारा जांच के लिए मेडिकल बोर्ड का गठन किया। अभी दोबारा जांच हो नहीं सकी।
केस तीन:
जून 2013-फतेहपुर में एक आठ वर्षीय बच्ची के साथ दुष्कर्म के बाद उसकी हत्या कर दी गई। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में दुष्कर्म की पुष्टि नहीं की गई। पुलिस पर मनचाही रिपोर्ट बनवाने का आरोप लगा। गुलाबी गैंग का पुलिस के खिलाफ ऐतिहासिक प्रदर्शन।
केस चार:
करीब ढाई साल पहले गोरखपुर के युवा व्यवसायी रीतेश जायसवाल को कुछ लोगों ने जहर खिलाया। पहली बार पोस्टमार्टम के तीन घंटे बाद दोबारा पोस्टमार्टम। पहली रिपोर्ट गायब। व्यापारियों का पुलिस और चिकित्सक के खिलाफ प्रदर्शन।
समर्पण की कमी:
पूर्व पुलिस महानिदेशक श्रीराम अरुण का मानना है कि हर स्तर पर कमिटमेंट कम हो गया है। अब कार्रवाई कानून के हिसाब से नहीं, सुविधानुसार होती है। बहुत से अफसर विभाग के प्रति आस्थावान नहीं रहते और उनकी डोर कहीं और बंधी होती है। वह समाज की अपेक्षा पर खरे नहीं उतर रहे। पुलिस की चूक डाक्टर को पकड़नी चाहिए। वह अपने कर्तव्य के प्रति अडिग रहे तो दिक्कत नहीं आएगी।
कई बार पड़ता है दबाव:
अध्यक्ष प्रांतीय चिकित्सा सेवा संघ, डॉ. अशोक यादव ने बताया कि पोस्टमार्टम में कई बार दबाव पड़ता है, लेकिन डाक्टरों का पैनल बनने पर एक पर दबाव बन सकता है, सभी पर नहीं। उम्र के बारे में मोटा अंदाज ही लगा सकते हैं। जिंदा आदमी की उम्र निर्धारित करते तो एक्सरे लेते व पर्याप्त परीक्षण करते हैं।