Move to Jagran APP

भौगोलिक दूरी कम करने में जुटे भारत और रूस, मोदी-पुतिन शिखर वार्ता में समुद्री संपर्क वाली दो परियोजनाओं की होगी समीक्षा

भारत और रूस के बीच दशकों पुराने रणनीतिक रिश्ते होने के बावजूद कारोबारी रिश्ते काफी शिथिल हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह भौगोलिक दूरी है। अब दोनों देश इस दूरी को कम करने के लिए दो नए समुद्री संपर्क परियोजनाओं पर काम कर रहे हैं।

By TaniskEdited By: Published: Sat, 04 Dec 2021 09:15 PM (IST)Updated: Sat, 04 Dec 2021 09:15 PM (IST)
भौगोलिक दूरी कम करने में जुटे भारत और रूस, मोदी-पुतिन शिखर वार्ता में समुद्री संपर्क वाली दो परियोजनाओं की होगी समीक्षा
मोदी-पुतिन शिखर वार्ता में समुद्री संपर्क वाली दो परियोजनाओं की होगी समीक्षा।

जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। भारत और रूस के बीच दशकों पुराने रणनीतिक रिश्ते होने के बावजूद कारोबारी रिश्ते काफी शिथिल हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह भौगोलिक दूरी है। अब दोनों देश इस दूरी को कम करने के लिए दो नए समुद्री संपर्क परियोजनाओं पर काम कर रहे हैं। सोमवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की शिखर वार्ता में इन परियोजनाओं की समीक्षा जाएगी। इन परियोजनाओं के तहत दोनों देशों के बीच उत्तरी समुद्री मार्ग (रूस के पूर्वी क्षेत्र को नार्थ पोल से हुए यूरोप के रास्ते भारत से जोड़ना) और सुदूर पूर्वी रूस के ब्लदिवोस्तोक पोर्ट को चेन्नई पोर्ट से जोड़ा जाना है।

loksabha election banner

इस बारे में हो रही वार्ताओं में शामिल भारतीय अधिकारी बताते हैं कि व्लादिस्तोक पोर्ट और चेन्नई पोर्ट के बीच सीधी आवाजाही होने से रूस से भारत लाए जाने वाली गैस और कच्चे तेल की लागत में 30 प्रतिशत तक कमी आ सकती है और समय भी करीब 40 प्रतिशत कम लगेगा। यह समुद्री मार्ग दोनों देशों के ऊर्जा संबंधों को नई उंचाई पर ले जाएगा। सरकारी कंपनी गेल ने रूस की गैजप्राम से 20 वर्षों तक एलएनजी खरीद का समझौता किया है। इसके तहत पहली खेप इस साल अक्टूबर में ही भारत लाई गई है। इस रास्ते का इस्तेमाल करने से यह गैस कम दर पर भारत आ सकती है।

रूस के सुदूर पूर्वी इलाके को विकसित करने का प्रस्ताव

सूत्रों के मुताबिक भारत ने रूस के साथ मिल कर उसके सुदूर पूर्वी इलाकों को विकसित करने का प्रस्ताव भी रखा है। रूस इसको लेकर काफी उत्साहित है क्योंकि उसे अपने प्राकृतिक संपदाओं के लिए भारत का विशाल बाजार मिल जाएगा।

नार्थ पोल का रास्ता बनेगा विकल्प

दोनों देशों के बीच उत्तरी समुद्री मार्ग यानी रूस के पूर्वी क्षेत्र से उत्पादों को नार्थ पोल से ले जा कर यूरोप होते हुए भारतीय बाजार तक लाने के विकल्प पर भी बात हो रही है। कुछ समय पहले तक यह मार्ग हमेशा बर्फ से ढका रहता था लेकिन पर्यावरणीय बदलाव की वजह से कुछ महीने अब यहां से जहाजों को लाया जा सकता है। इसका फायदा यह होगा कि जिन उत्पादों को रूस के पूर्वी क्षेत्र से पूरे प्रशांत व ¨हद महासागर होते हुए भारत या एशिया के दूसरे देशों में भेजा जाता है उसे अब बहुत ही कम समय में यूरोप व फिर स्वेज नहर होते हुए लाया जा सकता है। यही नहीं रूस, ईरान व दूसरे मध्य एशियाई देशों के साथ मिल कर भारत जिस नार्थ साउथ सड़क मार्ग पर काम कर रहा है इसका भी फायदा उत्तरी समुद्री मार्ग को मिल सकता है।

कारोबारी रिश्तों में आएगा बदलाव

ये दोनों परियोजनाएं भारत और रूस के कारोबारी रिश्तों को पूरी तरह से बदलने वाले साबित होंगे। दोनों देशों के बीच वर्ष 2020-21 के दौरान 8.1 अरब डालर का कारोबार हुआ था। वर्ष 2025 तक इसे बढ़ा कर 25 अरब डालर तक ले जाने का लक्ष्य है। इस लक्ष्य का बडा हिस्सा ऊर्जा सेक्टर से ही पूरा होगा। वैसे निवेश के मामले में स्थिति ठीक है। वर्ष 2025 तक द्विपक्षीय निवेश का लक्ष्य भी 30 अरब डालर रखा गया था लेकिन इसे वर्ष 2018 में ही हासिल कर लिया गया है। अब दोनों देश 50 अरब डालर के निवेश के लक्ष्य को लेकर काम कर रहे हैं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.