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कम उम्र में ही कर लें ये काम, ताकि बड़ी उम्र में पिता बनने में न हो कोई समस्या

नए अध्‍ययन के मुताबिक 45 साल या उसके बाद की शादी संतानों के जीवन के लिए खतरनाक हो सकती है। यही नहीं पत्‍नी के स्वास्थ्य पर भी इसका बेहद बुरा असर पड़ता है। पढ़ें पूरी रिपोर्ट....

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Tue, 14 May 2019 08:56 AM (IST)Updated: Tue, 14 May 2019 10:51 AM (IST)
कम उम्र में ही कर लें ये काम, ताकि बड़ी उम्र में पिता बनने में न हो कोई समस्या
कम उम्र में ही कर लें ये काम, ताकि बड़ी उम्र में पिता बनने में न हो कोई समस्या

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। Biological Clock अधिकांश युवा मनमाफिक कॅरियर पाने के बाद ही शादी करना पसंद करते हैं। इस महत्वाकांक्षा को पूरा करने की चाह में उनकी उम्र 40 से 45 के पार जा पहुंचती है। लेकिन, शोधकर्ताओं की मानें तो ज्‍यादा उम्र में शादी करने से एक स्वस्थ्य परिवार बसाने में मुश्किलें पेश आती हैं। नए अध्‍ययन के मुताबिक, 45 साल या उसके बाद की शादी संतानों के जीवन के लिए खतरनाक हो सकती है। यही नहीं पत्‍नी के स्वास्थ्य पर भी इसका बेहद बुरा असर पड़ता है। बायोलॉजिकल क्लॉक और पैरेंटल एज (दांपत्य उम्र) के बीच संबंध को लेकर फर्टिलिटी, प्रिगनेंसी और बच्चों के स्वास्थ्य पर केंद्रित 40 वर्षों तक किए गए अध्ययन के बाद शोधकर्ताओं ने यह निष्कर्ष निकाला है।

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देर से दांपत्‍य जीवन की शुरुआत के जोखिम ज्‍यादा
अमूमन यह माना जाता है कि महिलाओं में 35 साल के बाद प्रिगनेंसी आदि से जुड़ी समस्याएं आने लगती हैं। हालांकि, अधिकांश युवा यह नहीं मानते कि महिलाओं की तरह उनमें भी प्रजनन से जुड़ी तमाम समस्याएं इसी उम्र के बाद शुरू हो जाती हैं। लेकिन, मेडिकल साइंस में उम्र की इस अवधि (35 से 45) को लेकर स्पष्ट स्वीकार्यता या एक राय नहीं है। अब जाकर, 'माटयूरिटस' जर्नल में प्रकाशित नए अध्ययन में कहा गया है कि जो युवा 45 या इससे ज्यादा उम्र में दांपत्य जीवन की शुरुआत करते हैं, उनमें स्‍पर्म काउंट, इंफर्टिलिटी और उनके पार्टनर में प्रिगनेंसी से जुड़ी गंभीर समस्याएं जैसे- गर्भावधि डायबटीज, अविकसित बच्चे के जन्म और प्रीलेम्पसिया आदि बीमारियों का जोखिम होता है। यही नहीं महिलाओं में गर्भपात, गर्भधारण में परेशानी, प्रसव में कठिनाई और आम तौर पर ऑपरेशन के द्वारा शिशु के पैदा होने की आशंकाएं भी बढ़ जाती हैं।

पुरुषों में भी महिलाओं के जैसे ही काम करती है बायोलॉजिकल क्लॉक
अध्‍ययन के मुताबिक, 45 साल या इससे ज्यादा उम्र में शादी के बाद पैदा हुई संतानों में जन्मजात हृदय रोग का खतरा ज्यादा होता है। ऐसे दंपत्तियों के बच्चे जैसे-जैसे बड़े होते हैं, उनमें कैंसर, मनोरोग और संज्ञानात्मक विकारों की समस्याएं भी सामने आती हैं। अध्ययन की लेखक ग्लोरिया बैचमेन कहती हैं कि पुरुषों में भी ठीक वैसी ही बायोलॉजिकल क्लॉक काम करती है जैसी महिलाओं में... यानी यह कहा जा सकता है कि पुरुषों और महिलाओं में उम्र जुड़ी समस्याएं लगभग समान ही होती हैं। हालांकि, पुरुषों में इस बात को लेकर भ्रांतियां हैं कि महिलाओं में उम्र से जुड़ी तकलीफें उनसे जुदा होती हैं। अब इस शोध ने तमाम गलतफहमियों से पर्दा हटाने का काम किया है। अमेरिकी की रटगर्स यूनिवर्सिटी की बैचमेन के मुताबिक, भले ही पार्टनर की उम्र 25 से कम क्यों न हो उम्रदराज पुरुष को प्रजनन से जुड़ी तकलीफों से दो-चार होना पड़ता है।

...तो स्‍पर्म बैंकिंग पर करें विचार
अध्‍ययन में पाया गया है कि 50 साल या इससे अधिक उम्र के पिताओं के नवजातों के 47 ममलों में से एक में सिजोफ्रेनियां एवं ऑटिज्‍म की आशंका होती है, जबकि 25 साल से कम उम्र के पिताओं के नवजातों में इस बीमारी की संभावना 141 ममलों में से एक में होती है। ग्लोरिया बैचमेन के मुताबिक, अधिकांश पुरुष फर्टिलिटी संबंधी समस्‍याओं को लेकर चिकित्‍सकों से राय नहीं लेते जबकि महिलाएं अपने रिप्रोडक्टिव हेल्‍थ (प्रजनन स्वास्थ्य) को लेकर ज्‍यादा सतर्क होती हैं। अध्‍ययन में सुझाव दिया गया है कि यदि युवा देर से पिता बनने की सोच रहे हैं तो उन्‍हें 35 साल से पहले स्‍पर्म बैंकिंग पर विचार करना चाहिए। इससे भविष्‍य में होने वाली संतान उत्‍पति से जुड़ी समस्‍याओं से निजात पाने में आसानी होगी।

क्‍या है बायोलॉजिकल क्लॉक
वैज्ञानिक अध्‍ययनों के मुताबिक, पृथ्‍वी के घूमने के साथ साथ अंगों की कार्यप्रणाली भी बदलती रहती है। ऐसा होता है बायोलॉजिकल क्लॉक के कारण... यह समय-सारिणी के अनुरूप ही शरीर के भीतर विभिन्न क्रियाकलापों का संचालन करती है। वैज्ञानिकों ने पाया है कि यह अदृश्‍य क्‍लॉक दुनिया के सभी प्राणियों में अदृश्‍य रूप से मौजूद है। पृथ्‍वी 24 घंटे अपनी धुरी पर चक्‍कर लगाती रहती है। इससे शरीर के आंतरिक रसायन प्रभावित होते हैं। दिमाग, लिवर, दिल और कोशिकाओं के काम करने का तरीका भी बदलता रहता है। इसी बायोलॉजिकल क्लॉक के कारण समय के साथ हमारी शरीर में बदलाव दिखाई पड़ते हैं।

तीन अमेरिकी वैज्ञानिकों ने सुलझाई थी बायोलॉजिकल क्लॉक की गुत्थी
सबसे पहले तीन अमेरिकी वैज्ञानिकों ने बायोलॉजिकल क्लॉक की गुत्थी सुलझाई थी। इस उपलब्धि के लिए इन्‍हें साल 2017 का चिकित्सा का नोबेल दिया गया था। जेफ्री हॉल, माइकल रॉसबैश और माइकल यंग नाम के इन वैज्ञानिकों ने बायोलॉजिकल क्लॉक को नियंत्रित करने में अहम भूमिका निभाने वाले जीन का पता लगाया था। इसे पीरियड जीन का नाम दिया गया था। वैज्ञानिकों ने अपने अध्‍ययन में बताया था कि यह क्लॉक नींद के अलावा खानपान, हार्मोन और शरीर के तापमान को निर्धारित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। अब नए शोध में समय और उम्र के साथ होने वाले हार्मोन स्राव को लेकर पुरुर्षों और महिलाओं में बायोलॉजिकल क्लॉक की समानता की बात कही गई है। ऐसे में बायोलॉजिकल क्लॉक की थियरी में दांपत्‍य जीवन के संबंध में एक नया आयाम जुड़ गया है।  

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