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बहुत मुश्किल है सरल से दिखाई देने वाले सवाल का जवाब योग्‍य बेटी के लिए योग्‍य वर

हर बेटी के माता-पिता के लिए सबसे बड़ी चुनौती पुत्री के लिए योग्‍य वर की तलाश करना होती है। इसमें हर किसी को काफी मशक्‍कत करनी पड़ती है। इस सवाल का जवाब और इससे जुड़ी परेशानी हर किसी के लिए समझना काफी मुश्किल होता है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Sun, 27 Sep 2020 03:46 PM (IST)Updated: Sun, 27 Sep 2020 03:46 PM (IST)
बहुत मुश्किल है सरल से दिखाई देने वाले सवाल का जवाब योग्‍य बेटी के लिए योग्‍य वर
योग्‍य वर की तलाश में मैट्रीमोनियल साइट्स पर हो रही खोजबीन

सीमा झा। तेजी से आगे बढ़ने वाला भारतीय समाज बिटिया की शादी की बात पर ठहरा हुआ जान पड़ता है। उच्च शिक्षा हासिल कर ऊंचे ओहदों पर पहुंचने वाली बिटिया के लिए भी जीवनसाथी की तलाश रूढ़ परंपराओं में फंसकर राह भटक जाती है। योग्य बेटी को एक अच्छा वर मिल जाए जैसा सामान्य सा नजर आने वाला सवाल वास्तव में कितना जटिल है, इसे विशेषज्ञों से बातचीत के आधार पर समझने की कोशिश की ...

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ड मैच यानी अच्छी जोड़ी, जिसके साथ आगे का जीवन खुशहाल रहे। इस ख्वाब में बुरा क्या है? पूछती हैं, मुंबई की इवेंट प्लानर रुचि। लंदन से मैनेजमेंट का कोर्स करने के बाद भारत में शादी कर सेटल होने का मन बनाया, लेकिन बिरादरी में बात नहीं बनी, क्योंकि कभी यह होता कि लड़की की हाइट सही नहीं तो कभी लड़की इवेंट प्लानर का काम छोड़कर कुछ और कर ले आदि-आदि। रुचि की मां कहती हैं, मैं अपने पति और बेटी को इन जिल्लतों को सहते नहीं देख सकती। रुचि समझदार है तो अपने काम में व्यस्त हो जाती है, पर पति इस चिंता में रात-रात भर ठीक से सो नहीं पाते। वह दिल के मरीज हैं। इसलिए घर के लोग इस बात से परेशान हैं कि लगातार तनाव में रहने के कारण कुछ अनहोनी न हो जाए। मेरी बेटी योग्य है। इसलिए हम लोग समझौता नहीं करेंगे। हालांकि अब यह परिवार मैट्रीमोनियल साइट्स और मैचमेकर की मदद ले रहा है।

दिल्ली के कारोबारी राहुल अग्रवाल ने बेटी शिल्पी को किसी भी समारोह में ले जाना बंद कर दिया है। कारण एक ही है, बेटी की शादी कब होगी या अब तक नहीं हुई जैसी बातें वह नहीं सुनना चाहते। वह बाहर वालों की बातें अनसुनी कर देते हैं, पर घरवालों और रिश्तेदारों की बातें एक अलग तरह का तनाव देती हैं। शिल्पी जितनी सुंदर हैं, उतना ही बढ़िया है कॅरियर। बंगलुरु से कंप्यूटर इंजीनियरिंग का कोर्स करने के बाद दिल्ली में एक मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब कर रही हैं। उनकी मां कहती हैं, जब बेटी को पढ़ा रही थी तब घर में बहुत से लोग टेढ़ी नजर से देखते थे। मेरी सासूमां भी कहती थीं बेटी को पढ़ाओ न पढ़ाओ, उसकी शादी अच्छी जगह हो जाए यह बड़ी बात है, पर मैं ऐसा नहीं मानती। मुझे उम्मीद है कि मेरी बेटी के लिए अच्छा लड़का जरूर मिलेगा।

यह सिर्फ महानगरों में रहने वाली लड़कियों और माता-पिता की दास्तान नहीं है, बल्कि अब छोटे शहरों, कस्बों व गांवों में रहने वाले माता-पिता की भी यही चिंता है। नाजों से पली लाडो, जिसे न केवल अच्छी शिक्षा दी, बल्कि कॅरियर चुनने की भी आजादी है। आखिर उसे शादी के नाम पर आए दिन अपमानित क्यों होना पड़ता है? इस पर मनोचिकित्सक डॉ. सुधीर खंडेलवाल कहते हैं, यह तेजी से बदलते मूल्यों, नई पीढ़ी और पुरानी परंपरागत व्यवस्था का टकराव है, पर समाज अपने आप नहीं बदलता। हमें घुटते रहने की बजाय बदलने की पहल करनी होगी। हालांकि बदलाव तभी होगा जब इन पीड़ाओं से गुजरने वाले माता-पिता बेटियों के हित में निर्णय लेंगे।

वेब सीरीज से झांकता सच

नाडिया अमेरिका के न्यूजर्सी में रहती हैं। वह आत्मनिर्भर हैं, उनका अपना बिजनेस है। वह बेहतरीन डांसर हैैं साथ ही एक नजर में सभी को अपनी तरफ लुभा लेने वाली। वह कॅरियर से संतुष्ट तो हैैं, पर पहले शादी करके सेटल होना चाहती हैं। उनके लिए माता-पिता बहुत से लड़के देख चुके हैं, पर उन्हें कोई पसंद नहीं आया। अंत में मैचमेकर की मदद ली है। एक पसंद आता है। मिलना-जुलना शुरू होता है, उन्हें लगता है कि उस लड़के से बात बन जाएगी और भावी जीवनसाथी की तलाश का यह पीड़ादायक सिलसिला थम जाएगा, लेकिन अचानक एक दिन नाडिया का दिल चुरा लेने वाले एक लड़के ने उन्हें स्पेशल डेट पर मिलने बुलाया, पर बाद में फोन ही नहीं उठाया। यही नहीं तय जगह पर लंबे इंतजार के बाद भी वह उनसे मिलने नहीं आया। वह इसे सहन नहीं कर पातीं और चार-पांच दिन उनकी जिंदगी जैसे थम जाती है। बेबस और लाचार माता-पिता अपनी रोती-सुबकती बेटी को बस देखते रहते हैं। उन्हें अपनी बेटी पर पूरा भरोसा है साथ ही उम्मीद है कि एक दिन उसके सपनों का राजकुमार जरूर मिलेगा और सब उसकी पसंद का ही होगा। यह कहानी नेटफ्लिक्स की र्चिचत वेब सीरीज इंडियन मैचमेकिंग की है। सीमा टपारिया, जो इस रियलिटी वेब सीरीज में मैचमेकर हैं। वह जब अपने क्लाइंट की ऐसी दुश्वारियों को महसूस करती हैं तो उन्हेंं आखिरकार यही कहना पड़ता है कि डेस्टिनी यानी भाग्य में जो लिखा होगा वही होगा। इसी वेब सीरीज में एक और कहानी है अक्षय की। पच्चीस की उम्र तक वह सैकड़ों लड़कियों को अस्वीकार कर चुका है। वह थोड़ा कन्फ्यूज नजर आता है और तय नहीं कर पा रहा कि उसे कैसी जीवनसाथी चाहिए। अक्षय की मां की चिंताएं भी उन माता-पिता से मेल खाती हैं, जो अपने शादी योग्य लड़के की पसंद और नापसंद के बीच झूलते रहते हैं, लेकिन इसमें जो सबसे अधिक प्रभावित होता है, वह है योग्य और सर्वगुण संपन्न लड़की का परिवार, जिसकी ओर कम ही ध्यान दे पाते हैं लोग।

सपने और अपनों का दबाव

चंडीगढ़ की शुभ्रा चार्टर्ड एकाउंटेंट हैं। अपनी कंसल्टेंसी शुरू करने की तैयारी है, पर शादी की चर्चा जब से शुरू हुई है, एक अलग तरह का दबाव हावी है। पिता के मुताबिक, वह तय नहीं कर पा रहे कि बेटी से कैसे कहें कि अच्छा लड़का है, पर उसका परिवार नहीं चाहता कि शुभ्रा नौकरी की मारा-मारी में फंसें, क्योंकि उनके पास पैसों की कोई कमी नहीं। नौकरी छोड़ देने की शर्त अभिभावकों को भी मंजूर नहीं, पर शादी के लिए अच्छा लड़का भी आसानी से नहीं मिल रहा तो कौन सी राह चुनें और दूसरे अच्छे लड़के के इंतजार की पीड़ा को कब तक सहते रहें। इस मुश्किल काम में अक्सर माता-पिता अकेले पड़ जाते हैं। रुचि का एक भाई भी है, जो अब थक चुका है। मामा और बुआ आदि रिश्तेदार जब फोन करते हैं और बेटी की पढ़ाई में खर्चे का अहसास दिलाते हैं तो शुभ्रा दिल पर पत्थर रखकर उनकी बातें सुनती रहती हैं। शुभ्रा अच्छी वाइफ नहीं, बल्कि एक आत्मनिर्भर वाइफ बनना चाहती हैं, जो दोनों घरों यानी ससुराल और मायके दोनों का संबल बने, पर क्या उनकी यह इच्छा पूरी होगी, सवाल यही है। इस संदर्भ में डॉ. सुधीर खंडेलवाल कहते हैं, जब इस तरह के द्वंद्व में फंस जाएं तो अपने दिल की सुनें। लोग कहेंगे ही, क्योंकि वे अपनी सोच के चलते विवश हैं। तनाव लेने से अच्छा है, खुद पर भरोसा रखें कि आप किसी मायने में कम नहीं।

दिल तोड़ देती हैं शर्तें

दिल्ली की जानी-मानी टैरो कार्ड रीडर मोनिका चावला आए दिन अभिभावकों की ऐसी चिंताओं से रूबरू होती हैं, जो अपनी वेल सेटल्ड यानी ऊंचे पद पर पहुंचकर अच्छी खासी कमाने वाली बेटियों के लिए सूटेबल रिश्ते की तलाश में हैं। मोनिका कहती हैं, हमारे यहां ऐसे भी अभिभावक हैं, जो बेटी की शादी में दिक्कत होने का कारण बेटी की अच्छी पढ़ाई और नौकरी को मानते हैं और बेटियों को पढ़ाने को लेकर अफसोस भी जताते हैं। यह बात चौंकाने वाली हो सकती है, पर यह हकीकत है। मोनिका के मुताबिक, पिछले दिनों जाने-माने एक बड़े बैंकर दुखी होकर मेरे पास आए। वह इस बात से दुखी थे कि उनकी बेटी की शादी में केवल इसलिए परेशानी आ रही थी, क्योंकि वह एक तेजतर्रार एयर होस्टेस है। वह विदेश में पढ़ी है। लड़के वालों ने यह जताया था कि विदेश में पढ़ने वाली लड़कियां तेजतर्रार होती हैं साथ ही घर में एडजस्ट न कर सकने वाली। मोनिका कहती हैं कि एक अत्यधिक पढ़ा-लिखा अभिभावक भी यदि बेटी को पढ़ाने को लेकर अफसोस करे तो आप समझ सकते हैं कि यह उन्हेंं किस कदर तनाव दे रहा होगा। हालांकि अन्य खास तबकों, जैसे वकील, पत्रकार, डॉक्टर, एयर होस्टेस आदि को लेकर भी समाज में ऐसी ही धारणाएं हैं। कुछ परिवारों के लिए तो बस नौकरी करने वाली बेटियां ही नापसंद करने के लिए काफी हैं। कुछ चाहते हैं कि वह नौकरी करती रहे, क्योंकि लड़के की मांग है। भले ही लड़की नौकरी न करना चाहे। यहां शर्तों की सूची लंबी है- स्लिम हो, लंबाई अच्छी हो, सुंदर और गोरी हो, चश्मा न पहनती हो आदि-आदि।

रास्ता क्या है

बनारस हिंदू यूनिर्विसटी में समाजशास्त्र की प्रोफेसर डॉ. श्वेता प्रसाद कहती हैं, बेटी को अच्छा जीवनसाथी मिले, यह आकांक्षा अपनी जगह है, पर क्या आप अपनी बच्ची को आज भी बच्ची ही तो नहीं मान रहे हैं? कहीं यही तो नहीं है कि समस्या को बढ़ाने वाला कारण मानते हों? श्वेता प्रसाद के मुताबिक, जब लड़कियों को अपनी मर्जी से पढ़ाई की छूट दी है तो उन्हें अपने जीवन के महत्वपूर्ण फैसलों में भी बेटों की तरह थोड़ी छूट तो मिलनी ही चाहिए। हालांकि अभिभावक कई बार इसलिए भी बेटी पर भरोसा नहीं कर पाते, क्योंकि आए दिन शादी टूटने और तलाक आदि की बुरी खबरें आती रहती हैं। यहां जमशेदपुर की सुमेधा का उदाहरण दिया जा सकता है, जो पंजाब टेक्निकल यूनिर्विसटी से बीटेक. करने के बाद चंडीगढ़ में एक प्रतिष्ठित मल्टी नेशनल कंपनी में उच्च पद पर नौकरी कर रही हैं। उन्होंने अपने लिए जीवनसाथी का चुनाव कर लिया था, पर वह सजातीय नहीं था। घर वालों ने जब यह जाना तो जमकर बवाल हुआ, पर छोटी बहन की पहल से धीरे-धीरे चीजें संभलने लगीं। इसके साथ ही लड़के वालों के व्यवहार ने भी सबका दिल जीत लिया। यही नहीं लॉकडाउन में सुमेधा ने पापा का काम छूटने पर अपने परिवार की तीन माह तक लगातार र्आिथक मदद भी की।

ताकि वह सच की पहचान कर सके

मोनिका चावला, टैरो कार्ड रीडर व रिलेशनशिप एक्सपर्ट

बिटिया खूब पढ़े, तरक्की करे, पर उसकी शिक्षा संपूर्णता में हो। ऐसी कि वह शादी जैसा महत्वपूर्ण निर्णय खुद मजबूती से ले सके। वह फिल्मी शादी या पर्दे पर दिखाई जाने वाली किताबी बातों से प्रभावित न हो और व्यावहारिक हकीकत को समझकर ही फैसला ले।

वक्त लगेगा बदलाव में

बद्री नारायण, वरिष्ठ समाजशास्त्री

यह समाज अभी संक्रमण काल में है। बेटी की परेशानी और अभिभावकों की चिंताएं दोनों अपनी जगह सही हैं, पर अपने यहां की सामाजिक संरचना इतनी गहरे परिभाषित है कि उससे टकराना चुनौतीपूर्ण है। हालांकि जैसे-जैसे सामाजिक व्यवस्था व्यक्तिवादी होती जाएगी, इसमें बदलाव दिखेगा और ये समस्याएं भी जाती दिखेंगी।

आशा और विश्वास की छलांग

रितु सारस्वत, समाजशास्त्री

शादी एक जुआं है। आप पहले से लाख कोशिशें कर लें, लेकिन किसी इंसान के बारे में यह तय करना मुश्किल है कि वह कल कैसा होगा। खुशहाल वैवाहिक जीवन के लिए किसी एक लड़के का चयन कर विश्वास और आशा की एक छलांग लगानी ही होगी।

मिल-बैठकर बनेगी बात

डॉ. सुधीर खंडेलवाल, पूर्व अध्यक्ष, मनोचिकित्सा विभाग, एम्स, दिल्ली

अभिभावक इस बात को ध्यान में रखें कि वे जिन बेटियों की शादी करने जा रहे हैं, वे तकनीकी युग में पली-बढ़ी हैं। वे रिश्तों की तेजी से बदलती दुनिया को देख रही है, जो अक्सर अभिभावक नहीं देख पाते। घर में एक खुला माहौल बनाने का प्रयास करें ताकि बेटियां आधुनिक परिवेश के बारे में खुलकर बात कर सकें। दोनों मिलकर ही इस मुश्किल काम को आसान बना सकते हैं।


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