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शिक्षा की इस लौ से कई बने नौकरशाह और कई सेना में दे रहे सेवाएं

लाखों कश्मीरी पंडितों के जीवन में विस्थापन ने घना अंधकार भर दिया। न आगे बढऩे की राह दिख रही थी और न उम्मीद की कोई किरण।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 19 Jan 2019 08:52 AM (IST)Updated: Sat, 19 Jan 2019 08:52 AM (IST)
शिक्षा की इस लौ से कई बने नौकरशाह और कई सेना में दे रहे सेवाएं
शिक्षा की इस लौ से कई बने नौकरशाह और कई सेना में दे रहे सेवाएं

जम्मू, अवधेश चौहान। लाखों कश्मीरी पंडितों के जीवन में विस्थापन ने घना अंधकार भर दिया। न आगे बढऩे की राह दिख रही थी और न उम्मीद की कोई किरण। ऐसे में कुछ युवाओं ने किताबों व शिक्षा के महत्व को समझा। दोस्तों व अन्य लोगों से पुरानी किताबें इकट्ठी करनी शुरू कर दी और विस्थापितों के लिए बने टेंट के भीतर ही लाइब्रेरी खोल दी। अब इस लाइब्रेरी का अपना भवन है और उस लाइब्रेरी से पढ़कर कई युवा नौकरशाह बन चुके हैं और सेना में सेवाएं दे रहे हैं।

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अपना दर्द बताते हुए एमके भट्ट बताते हैं कि कश्मीर घाटी से पलायन के बाद ऐसा लग रहा था कि शायद ही अपनी पढ़ाई जारी रख सकूं। जिंदगी टेंट में सिमटकर रह गई थी। पढ़ाई के लिए काफी कम समय मिलता था। जम्मू के सांइस कालेज में दाखिला लिया तो लगा ङ्क्षजदगी संवर गई लेकिन किताबों के लिए भटकना पड़ता था। जम्मू के विस्थापित कैंप जगटी में कालेज के कुछ साथी मिले। एक किताब से कई साथी पढ़ते तो किताबों की अहमियत समझ आई।

वह बताते हैं कि फिर सोचा कि बहुत से उन जैसे युवाओं को ऐसी ही परेशानी आ रही होगी। किताबें सहजने का ऐसा जुनून जागा कि उन्होंने छोटे से टेंट में ही लाइब्रेरी खोल ली। पढ़ाई के बाद कालेज में पढऩे वाले छात्रों से साइंस, इंग्लिश, बायो, केमिस्ट्री और फिजिक्स की किताबें इकट्ठी करनी शुरू कर दी। कुछ अच्छे घरों से आने वाले छात्रों ने भी पुरानी किताबें दे दीं।

भट्ट बताते हैं कि अभियान में साथी राकेश भट्ट (फिलहाल भद्रवाह कालेज में प्रोफेसर) और कर्नल रवी रैना (फिलहाल श्रीनगर में तैनात) भी उनके साथ थे। मुहिम आगे बढ़ी तो अन्य दोस्त भी साथ आना शुरू हो गए। लाइब्रेरी में किताबों की संख्या बढऩे लगी। धीर-धीरे टेंट में बनी लाइब्रेरी में छात्र भी पढऩे आना शुरू हो गए।

संख्या बढ़ी तो फिर लोगों की मदद से एक कमरे में लाइब्रेरी खोल ली। धीरे-धीरे लाइब्रेरी में सांइस के अलावा इंजीनियङ्क्षरग और मेडिकल विषय के अलावा छोटे बच्चों की पुस्तकें भी उपलब्ध होने लगी। अब यह लाइब्रेरी एक बड़ा रूप ले चुकी है, इसके लिए सरकार ने भी बिङ्क्षल्डग उपलब्ध करवाई है। इसके लिए उन नौकरशाहों ने मदद की जो इस लाइब्रेरी की किताबों से पढ़े थे। उन्हें लाइब्रेरी की अहमियत का अहसास था।

अब हमारी कोशिश है कि इस लाइब्रेरी को डिजिटल लाइब्रेरी बनाया जाए। मौजूदा शिक्षा सत्र में आठ हजार पुस्तकें छात्रों को पूरे वर्ष के लिए पढऩे को दी गई हैं। लाइब्रेरी अब दो कमरे की हो गई है, जहां कश्मीरी विस्थापितों के अलावा नगरोटा के साथ लगते गांव पंजग्रा, डुम्मी, ङ्क्षशग, जगटी और कारली गांव के छात्र भी पढऩे आते हैं। यहां उन्हें करियर कांउसङ्क्षलग भी समय समय पर करवाई जाती है।

-- एमके भट्ट, लाइब्रेरी संचालक


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