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आत्महत्या कम करने में कई देश रहे हैं सफल, जानें-क्या हैं इसके कारण

दुनियाभर में आठ लाख लोग प्रतिवर्ष आत्महत्या करते हैं। वैश्विक स्तर पर 2017 में होने वाली मौतों में से 1.4 प्रतिशत मौत की वजह आत्महत्या होती है। कुछ देश ऐसे हैं जहां पर आत्महत्या से होने वाली मौत का आंकड़ा काफी अधिक है तो कुछ में यह कम।

By Vineet SharanEdited By: Published: Tue, 05 Jan 2021 10:42 AM (IST)Updated: Tue, 05 Jan 2021 11:25 AM (IST)
आत्महत्या कम करने में कई देश रहे हैं सफल, जानें-क्या हैं इसके कारण
बीते करीब दो दशकों में (1990-2017) में आत्महत्या की स्थिति में दुनिया के कुछ देशों में सुधार हुआ है।

नई दिल्ली, जेएनएन। ‘कभी हार मत मानो’-विंस्टन चर्चिल ने अपने देश ब्रिटेन में आत्महत्या के बढ़ते मामलों को देखते हुए यह बात कही थी। वक्त बदला, दौर बदला, दुनिया बदली और वजह भी बदल गई। आज यह समस्या पूरी दुनिया में पसर चुकी है। कभी कर्ज से परेशानी, कभी बेरोजगारी, कभी प्यार में नाकामी, तो कभी यूं ही किसी छोटी बात पर मौत को गले लगा लेना। हालांकि, सभी का मानना है कि आत्महत्याएं रोकी जा सकती हैं। लेकिन इसके लिए जरूरी है इस समस्या को समझना-

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दक्षिण कोरिया में हालात सबसे बदतर

दुनियाभर में आठ लाख लोग प्रतिवर्ष आत्महत्या करते हैं। यानी 40 सेकेंड में एक व्यक्ति खुदकुशी करता है। वैश्विक स्तर पर 2017 में होने वाली मौतों में से 1.4 प्रतिशत मौत की वजह आत्महत्या होती है। कुछ देश ऐसे हैं, जहां पर आत्महत्या से होने वाली मौत का आंकड़ा काफी अधिक है, तो कुछ में यह कम। दक्षिण कोरिया में 2017 में पांच फीसदी मौत की वजह खुदकुशी थी। कतर में 3.9 फीसदी मौत का कारण और श्रीलंका में 3.6 प्रतिशत मौत की वजह आत्महत्या है। ग्रीस और इंडोनेशिया की स्थिति इस मामले में बेहतर है। वहां कुल मौतों में क्रमश: 0.4 प्रतिशत और 0.5 प्रतिशत मृत्यु का कारण आत्महत्या है।

दुनिया में आत्महत्या की दर

वैश्विक स्तर पर 2017 में एक लाख में से 10 लोग आत्महत्या करते थे। आत्महत्या की दर की बात करें तो पूर्वी यूरोप, दक्षिण कोरिया, जिम्बाब्बे, गुयाना और सूरीनाम में एक लाख में से 20, उत्तरी अफ्रीका, मध्य एशिया, इंडोनेशिया, पेरू और कुछ भूमध्यसागरीय देश में आत्महत्या की दर एक लाख में पांच है।

हर उम्र के लोगों में बढ़ी आत्महत्या

आजकल हर उम्र के लोगों में आत्महत्या की प्रवृत्ति देखी जा रही है। कम उम्र के किशोरों से लेकर महिलाएं, युवा और बुजुर्ग भी आत्हमहत्या जैसा कदम उठा रहे हैं। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के मुताबिक, दुनियाभर में 79 फीसदी आत्महत्या निम्न और मध्य आय वर्ग वाले देशों के लोग करते हैं। इसके पीछे बेरोजगारी और आर्थिक परेशानी मुख्य वजह हैं।

महिलाओं से अधिक पुरुष करते हैं खुदकुशी

दुनियाभर में महिलाओं से अधिक पुरुष आत्महत्या करते हैं। भारत में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट भी कहती है कि भारत में पुरुष, महिलाओं की तुलना में ज्यादा खुदकुशी करते हैं। वैश्विक स्तर पर महिलाओं की तुलना में पुरुषों की आत्महत्या करने की दर दोगुनी है। एक तरफ जहां एक लाख महिलाओं में 6.3 महिलाओं की आत्महत्या दर है, वहीं पुरुषों में यह दर 13.9 है। सबसे अधिक पुरुषों की आत्महत्या दर पूर्वी यूरोप में है। यहां पुरुषों की आत्महत्या दर 69.75 है, तो महिलाओं की 11.57। बेलारूस में पुरुषों की आत्महत्या दर 65.16 है, तो महिलाओं की 10.02। जिम्बाब्बे में पुरुषों की आत्महत्या दर 43.57 है, तो महिलाओं की 13.30। वहीं अफ्रीका में पुरुषों की आत्महत्या दर 16.27 है, तो महिलाओं की 7.27।

दो दशकों में इन देशों में हुआ सुधार

बीते करीब दो दशकों में (1990-2017) में आत्महत्या की स्थिति में दुनिया के कुछ देशों में सुधार हुआ है। साउथ-ईस्ट एशिया, ईस्ट-एशिया और ओशियाना में 1990 में जहां आत्महत्या की दर 17.96 थी, वहीं 2017 में यह 7.30 हो गई। एस्टोनिया में 1990 में जहां आत्महत्या की दर 26.81 थी, तो 2017 में 12.74 हो गई। ऑस्ट्रिया में 1990 में आत्महत्या की दर 19.84 थी, जो 2017 में 11.20 हो गई। चेक रिपब्लिक में 1990 में आत्महत्या की दर 18.94 थी, जो 2017 में घटकर 10.77 हो गई। डेनमार्क में 1990 में खुदकुशी की दर 23.86 थी, जो 2017 में 8.80 हो गई। क्रोशिया में जहां 1990 में आत्महत्या दर 20.38 थी, जो 2017 में 11.06 हो गई। ईस्ट-एशिया में 1990 में 20.59 थी।

श्रीलंका में किया गया सर्वे प्रभावी

आत्महत्या पर श्रीलंका में किया गया सर्वे सबसे अधिक प्रभावी माना गया। जहां प्रतिबंधों की लंबी लिस्ट के कारण आत्महत्याओं में 70% गिरावट आई और 1995 से 2015 के बीच अनुमानित 93 000 लोगों की जान इसके चलते बच गई। कोरिया गणराज्य ने भी इस दिशा में सफलता हासिल की है, जहां 2000 के दशक में बड़ी संख्या में पैराक्वाट कीटनाशक से आत्महत्याएं हुईं, लेकिन 2011-2012 में पैराक्वाट पर प्रतिबंध के बाद 2011 और 2013 के बीच कीटनाशक से होने वाली मौत में कमी आई थी। आइए, ऐसी और कोशिशें करते हैं, ताकि किसी मां को ये न लगे कि उनके आंचल, लोरी, ममता में कमी तो नहीं रह गई और पिता को यह न लगे कि मैंने उसे उस दिन क्यों डांटा था।  


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