राष्ट्रपति चुनाव को लेकर असमंजस में ममता बनर्जी
ममता ने तो राष्ट्रपति उम्मीदवार के रूप में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से लेकर पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम व पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी तक का नाम उछाल दिया था।
कोलकाता, जयकृष्ण वाजपेयी। राष्ट्रपति चुनाव को लेकर विपक्षी पार्टियां अपने-अपने हिसाब से रणनीति बनाने में जुटी हैं। लेकिन तृणमूल प्रमुख व पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी असमंजस में फंसी हुई हैं। 2012 के राष्ट्रपति चुनाव में सबसे आगे दौड़ रहीं ममता इस बार शिथिल हैं। वह 'वेट एंड वॉच' की नीति पर चल रही हैं। इसकी वजह भी वाजिब है। राष्ट्रीय सियासत की नब्ज टटोले बिना 2012 में ममता ने जो किया था, उससे उनकी फजीहत ही नहीं हुई थी, बल्कि खिल्ली भी खूब उड़ी थी। बाद में हालात ऐसे बने कि अंत में फिर उन्हें कांग्रेस के साथ ही खड़ा होना पड़ा।
एक कहावत भी है- 'दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंककर पीता है'। इन दिनों यह कहावत ममता पर सटीक बैठ रही है। 2012 में संप्रग सरकार की सहयोगी पार्टी होने के बावजूद ममता ने कांग्रेस के राष्ट्रपति उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी का विरोध ही नहीं किया था, बल्कि अपने मनमुताबिक उम्मीदवार तय करने के लिए पूरी ताकत झोंक दी थी। ममता ने तो राष्ट्रपति उम्मीदवार के रूप में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से लेकर पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम व पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी तक का नाम उछाल दिया था। यह जानते हुए भी कि उनके सुझाए नामों में से एक के भी जीतने की कोई गारंटी नहीं थी।
2012 में मुलायम ने कराई थी बड़ी फजीहत
2012 के राष्ट्रपति चुनाव में ममता की उस वक्त बड़ी फजीहत हो गई, जब समाजवादी पार्टी के तत्कालीन मुखिया मुलायम सिंह यादव 'यू टर्न' लेकर कांग्रेस के समर्थन में खड़े हो गए और कलाम ने पत्र लिख कर चुनाव लड़ने से इन्कार कर दिया। उक्त घटना से सबक लेते हुए इस बार ममता ऐसे किसी भी पचड़े में नहीं पड़ना चाहतीं, जिससे एक बार फिर वह मजाक का पात्र बनें। इस बीच खबर यह है कि 15 मई को ममता कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात के लिए दिल्ली जा रही हैं। निश्चित तौर पर दोनों में राष्ट्रपति चुनाव पर चर्चा होगी। इसके बाद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री अपना पत्ता खोल सकती हैं।
आडवाणी, सुषमा व सुमित्रा के नाम पर जता चुकी हैं सहमति
यह भी बताना जरूरी है कि 24 मार्च को ममता ने कहा था कि लालकृष्ण आडवाणी, सुषमा स्वराज या सुमित्रा महाजन को राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाया जाता है तो वह समर्थन कर सकती हैं। हालांकि इसके बाद उनका कोई बयान नहीं आया है। पिछले माह वह ओडिशा भी गईं जहां मुख्यमंत्री नवीन पटनायक से मुलाकात की और क्षेत्रीय दलों को एकजुट होने की बात कही। पर राष्ट्रपति चुनाव की रणनीति को लेकर एक शब्द नहीं बोलीं। ममता दिल्ली पंचायत के विपक्षी दलों व भाजपा गठबंधन खेमे की पूरी स्थिति को परखने व समझने के बाद ही अपना रुख स्पष्ट करना चाहती हैं।
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