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मच्छरों से हारते सरकारी तंत्र की पोल खोल रहा है दुर्ग

जिले को मलेरिया मुक्त बता मच्छरों की रोकथाम के सभी उपाय सरकार ने बंद कर दिए। जुलाई, 2018 से अब तक दुर्ग में डेंगू से 41 मौतें हो चुकी हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 11 Sep 2018 12:59 PM (IST)Updated: Tue, 11 Sep 2018 12:59 PM (IST)
मच्छरों से हारते सरकारी तंत्र की पोल खोल रहा है दुर्ग
मच्छरों से हारते सरकारी तंत्र की पोल खोल रहा है दुर्ग

देवी लाल साहू [दुर्ग]। साल 2012 तक छत्तीसगढ़ का दुर्ग जिला मलेरिया प्रभावित जिलों की सूची में ‘अति संवेदनशील’ के रूप में दर्ज था। वहीं 2014 में देशभर में दर्ज मलेरिया के कुल मामलों का 13 फीसद केवल छत्तीसगढ़ के नाम था। लेकिन साल 2015 में दुर्ग से सारे मच्छर अचानक गायब हो गए। जिस जिले को मलेरिया मुक्त बता मच्छरों की रोकथाम के सभी उपाय सरकार ने बंद कर दिए। जुलाई, 2018 से अब तक दुर्ग में डेंगू से 41 मौतें हो चुकी हैं।

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कहां से आ गए मच्छर

दरअसल, 2012 में हुए दुर्ग जिले के विभाजन को मलेरिया मुक्ति का आधार मान 2015 से मच्छरों की रोकथाम के सभी उपाय बंद कर दिए गए। तर्क दिया गया कि मच्छरों की बहुलता वाले अधिकांश इलाके टूटकर बने दो नए जिलों बालोद और बेमेतरा के हिस्से में चले गए। यह अदूरदर्शिता जानलेवा बन गई।

क्यों हुए हालात बदतर

मई, 2016 में स्थानीय स्वयंसेवी संस्था और जिला स्तरीय स्वास्थ्य समिति की सदस्य जनसुनवाई फाउंडेशन के राज्य समन्वयक संजय कुमार मिश्रा द्वारा मांगी गई सूचना पर जिला मलेरिया विभाग, दुर्ग ने जो जानकारी प्रदान की थी, वह इस पूरी लापरवाही को उजागर करने के लिए पर्याप्त है।

विभाग ने जानकारी दी थी- दुर्ग जिले में वर्ष 2006 से मच्छरदानी का वितरण नहीं किया गया है। लार्वारोधी रसायन का छिड़काव करने का आदेश शासन से अप्राप्त है। जिले में वर्ष 2010 से मलेरिया तकनीकी सुपरवाइजर और लैब सुपरवाइजर की नियुक्ति नहीं की गई है।

सर्वेक्षण के लिए कोई वाहन उपलब्ध नहीं है।  सर्वेक्षण आदि कार्यों के लिए विभाग में नियुक्त 24 कुशल और 121 अद्र्धकुशल कर्मचारियों की सेवा 31 मार्च 2015 से समाप्त कर दी गई। विभाग द्वारा लोगों को स्वत: बचाव करने के लिए जागरूक किया जा रहा है। संजय ने बताया कि संस्था ने इस मामले में हाईकोर्ट में जनहित याचिका लगाई थी, जो अब भी पेंडिंग है।

धरा का धरा रह गया फंड

सचाई यह भी है कि राष्ट्रीय वाहक जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम के तहत राज्य को 2014-15-16 में मिले करोड़ों रुपये के फंड का उपयोग तक नहीं किया गया। केंद्र ने छत्तीसगढ़ के खाते में जमा ‘उच्चतम अव्ययित शेष’ यानी इस्तेमाल नहीं की गई बड़ी राशि का हवाला देकर अगली किस्त जारी नहीं की।

रोकथाम और निदान दोनों में फेल

यही हाल देश के अन्य हिस्सों का है। छत्तीसगढ़ एक उदाहरण है, जहां पूरे राज्य में केवल रायपुर मेडिकल कॉलेज में एलाइजा टेस्ट की सुविधा है। दुर्ग में मृत 41 लोगों के इलाज के दौरान इनमें से महज 13 के नमूने एलाइजा टेस्ट के लिए भेजे जा सके थे।

ऐसे में मलेरिया मुक्त कैसे बनेगा अपना देश

जुलाई, 2017 में मोदी सरकार ने राष्ट्रीय रणनीतिक योजना लॉन्च कर 2027 तक भारत को मलेरिया मुक्त बनाने की घोषणा की है, जबकि लॉंन्ग टर्म एक्शन प्लान 2007 से चल रहा है और 2012-2017 तक पांच वर्षीय राष्ट्रीय रणनीतिक एक्शन प्लान पर भी काम चला। इन सबसे क्या हासिल हुआ, ये दुर्ग में दिखाई दे रहा है। वाहक (मच्छर व जल) जनित रोगों के उन्मूलन के लिए संयुक्त राष्ट्र और विश्व बैंक आदि से भारीभरकम फंड मिलता आया है। फिलहाल, संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य 2030 के तहत भी मलेरिया उन्मूलन सभी देशों की प्राथमिकता में शामिल है।

1387 डेंगू संभावित मरीजों का एलाइजा टेस्ट कराया गया है, जिसमें 1122 की रिपोर्ट आई है। 724 की रिपोर्ट पॉजीटिव रही। फिलहाल 305 मरीजों की रिपोर्ट का इंतजार है।

- डॉ. गंभीर सिंह

ठाकुर, स्वास्थ्य निदेशक व प्रभारी

सीएमएचओ, दुर्ग

प्रदेश में अब तक 3600 डेंगू पीड़ित पाए जा चुके हैं। इनमें से अधिकतर स्वस्थ होकर लौटे। हम मौत के आंकड़ों पर नहीं जाना चाहते। हमने सभी का मुफ्त में समुचित इलाज कराया है।

- अजय चंद्राकर,

स्वास्थ्य मंत्री,

छत्तीसगढ़  


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