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लोगों को न्याय देने में महाराष्ट्र निकला सबसे आगे, तो UP सबसे फिसड्डी, जानिए- अन्य राज्यों के बारे में

दी इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2019 सार्वजनिक रूप से न्याय प्रदान करने के चार स्तंभों पुलिस न्यायपालिका जेल और कानूनी सहायता पर उपलब्ध सरकारी संस्थाओं के आंकड़ों पर आधारित है।

By Nitin AroraEdited By: Published: Fri, 08 Nov 2019 09:19 AM (IST)Updated: Fri, 08 Nov 2019 09:21 AM (IST)
लोगों को न्याय देने में महाराष्ट्र निकला सबसे आगे, तो UP सबसे फिसड्डी, जानिए- अन्य राज्यों के बारे में
लोगों को न्याय देने में महाराष्ट्र निकला सबसे आगे, तो UP सबसे फिसड्डी, जानिए- अन्य राज्यों के बारे में

नई दिल्ली, प्रेट्र। लोगों को न्याय मुहैया कराने वाले राज्यों की सूची में महाराष्ट्र शीर्ष पर है। इसके बाद केरल, तमिलनाडु, पंजाब और हरियाणा का स्थान है। टाटा ट्रस्ट की एक रिपोर्ट में इस आशय की जानकारी दी गई है। छोटे राज्यों (जहां की आबादी एक करोड़ से कम है) में गोवा शीर्ष पर है। इसके बाद सिक्किम और हिमाचल प्रदेश का स्थान है। रिपोर्ट में कहा गया है कि तेलंगाना की निचली अदालतों में 44 फीसद महिला न्यायाधीश हैं जबकि बिहार में सबसे कम 11.5 फीसद हैं। इसी तरह पंजाब में 39 फीसद और छोटे राज्य मेघालय में 74 और गोवा में 66 फीसद महिला न्यायाधीश हैं।

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दी इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2019 सार्वजनिक रूप से न्याय प्रदान करने के चार स्तंभों पुलिस, न्यायपालिका, जेल और कानूनी सहायता पर उपलब्ध सरकारी संस्थाओं के आंकड़ों पर आधारित है। रिपोर्ट जारी करते हुए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस एमबी लोकुर ने कहा कि न्याय मुहैया कराने वाली प्रणाली में गंभीर कमी उजागर हुई है। पूर्व न्यायाधीश ने कहा, 'यह मार्गदर्शक अध्ययन है जिसके नतीजों से साबित होता है कि निश्चित तौर पर हमारी न्याय प्रणाली में बहुत गंभीर कमी है। हमारी न्याय प्रणाली की चिंताओं को मुख्यधारा में लाने का यह बेहतरीन प्रयास है जो समाज के हर हिस्से, शासन और अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता है।'

उन्होंने कहा, 'मुझे उम्मीद है कि न्यायपालिका और सरकार इन प्रासंगिक नतीजों पर संज्ञान लेंगी और राज्य भी पुलिस प्रबंधन, कारागार, फोरेंसिक, न्याय प्रदान करने की प्रणाली और कानूनी सहायता के अंतर को पाटने के लिए तुरंत कदम उठाएंगे और रिक्तियों को भरेंगे।' यह टाटा न्याय की पहल है जिसे 'सेंटर फॉर सोशल जस्टिस, कॉमन कॉज, राष्ट्रमंडल मानवाधिकार पहल, दक्ष, टीआइएसएस, कानूनी नीति के लिए प्रयास एवं विधि केंद्र के सहयोग से तैयार किया गया है।

रिपोर्ट के मुताबिक, देश में न्यायाधीशों के कुल 18,200 पद स्वीकृत हैं जिनमें से 23 फीसद रिक्त हैं। रिपोर्ट में कहा गया, 'न्याय के इन स्तंभों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बहुत कम है। पुलिस में केवल सात फीसद महिलाएं कार्यरत हैं। जेलों में क्षमता के मुकाबले 114 फीसद कैदी हैं। इनमें से 68 फीसद विचाराधीन हैं जिनके मामलों की जांच की जा रही है या सुनवाई चल रही है।

बजट के मामले में अधिकतर राज्य केंद्र की ओर से आवंटित बजट का इस्तेमाल नहीं कर पाते। पुलिस, कारावास और न्यायपालिका का खर्च बढ़ने के बावजूद उस गति से राज्य का खर्च नहीं बढ़ा है।' इसमें कहा गया, 'कुछ स्तंभ कम बजट की वजह से प्रभावित है। भारत में मुफ्त कानूनी सहायता पर प्रति व्यक्ति खर्च मात्र 75 पैसे प्रति वर्ष है जबकि 80 फीसद आबादी मुफ्त कानूनी सहायता पाने की अर्हता रखती है। रिपोर्ट में राज्य की ओर से न्याय देने की क्षमता का आकलन करने के लिए चार स्तभों के संकेतकों का इस्तेमाल किया गया है। ये हैं अवसंरचना, मानव संसाधन, विविधता (जेंडर, एससी, एसटी, ओबीसी), बजट, काम का दबाव और गत पांच साल की प्रवृत्ति।

भारतीय न्याय रिपोर्ट, 2019 के आंकड़ों के मुताबिक, महाराष्ट्र सबसे आगे और सबसे खराब स्थिति उत्तर प्रदेश की है, यहां लोगों को इंसाफ दिलाना एक बहुत बड़ा चैलेंज है। बता दें कि रिपोर्ट में देश के 18 बडे़ राज्यों पर आकलन किया गया। इसमें दूसरे पर केरल, तीसरे पर तमिलनाडु, चौथे पर पंजाब और पांचवें पर हरियाणा है। जबकि, नीचे से देखा जाए तो 18वें स्थान पर यूपी है के बाद 17वें पर बिहार, 16वें पर झारखंड, 15वें पर उत्तराखंड और 14वें पर राजस्थान है।


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