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मद्रास हाईकोर्ट ने कार्ति चिदंबरम के खिलाफ जारी आयकर विभाग के नोटिस को रद करने से किया इनकार

मद्रास हाईकोर्ट ने पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम के बेटे कार्ति चिदंबरम एवं अन्य के खिलाफ जारी आयकर विभाग के नोटिस को रद करने से इनकार कर दिया है। इस मामले में उनके खिलाफ आयकर अधिनियम की धारा-148 के तहत कार्यवाही शुरू हुई थी।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Mon, 05 Jul 2021 10:41 PM (IST)Updated: Mon, 05 Jul 2021 11:05 PM (IST)
मद्रास हाईकोर्ट ने कार्ति चिदंबरम के खिलाफ जारी आयकर विभाग के नोटिस को रद करने से किया इनकार
मद्रास हाईकोर्ट ने कार्ति चिदंबरम के खिलाफ जारी आयकर विभाग के नोटिस को रद करने से इनकार कर दिया है।

चेन्नई, पीटीआइ। मद्रास हाईकोर्ट ने पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम (P Chidambaram) के बेटे कार्ति चिदंबरम एवं अन्य के खिलाफ जारी आयकर विभाग के नोटिस को रद करने से इनकार कर दिया है। शिवगंगा से सांसद कार्ति (Karti Chidambaram) पर आरोप है कि उन्होंने 5.11 एकड़ जमीन अग्नि एस्टेट्स एंड फाउंडेशन्स प्राइवेट लिमिटेड को बेची थी और इस सौदे में 6.38 करोड़ की रकम को नहीं दिखाया था। इस मामले में उनके खिलाफ आयकर अधिनियम की धारा-148 के तहत कार्यवाही शुरू हुई थी।

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कार्ति चिदंबरम (Karti Chidambaram) और इस सौदे में शामिल अन्य लोगों ने उक्‍त कार्यवाही को अवैध, अधिकार क्षेत्र रहित और संविधान के अनुच्छेद-14 का उल्लंघन करार दिया था। साथ ही इसे रद करने की अपील की थी। न्यायमूर्ति एसएम सुब्रमण्यम ने याचिकाएं खारिज करते हुए कहा कि आयकर अधिनियम की धारा 153सी के तहत जारी किए गए कारण बताओ नोटिस को चुनौती देते हुए ये रिट याचिकाएं दायर की गई थीं।

अदालत (Madras High Court) ने कहा कि इस मामले में अभी मूल्यांकन/पुनर्मूल्यांकन की प्रक्रिया शुरू होनी है। याचिकाकर्ताओं से अपेक्षा की जाती है कि वे अवसर का लाभ उठाएं और कानून के अनुसार अपने मामले का बचाव करें। न्यायाधीश ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत न्यायिक समीक्षा के दायरे में वे सभी प्रक्रियाएं हैं जिनके माध्यम से सक्षम प्राधिकारी द्वारा क़ानून के प्रावधानों के अनुरूप निर्णय लिया जाता है। 

अदालत (Madras High Court) ने कहा कि इस मामले में सक्षम प्राधिकारी को जब्त की गई सामग्री की जांच करने का अवसर प्रदान करने की अनुमति दी जानी चाहिए। जहां तक मौजूदा रिट याचिकाओं का संबंध है न्यायालय 'कारण बताओ नोटिस' के चरण में हस्तक्षेप नहीं करेगा। सच्चाई का पता लगाने के लिए इस तरह का निर्णय कानून का सिद्धांत है। इस स्तर पर किसी भी तरह के हस्तक्षेप से कानून की उचित प्रक्रिया पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।


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