हरियाली का ऐसा जुनून कि पत्नी छोड़ गई फिर भी पौधे लगाना नहीं छोड़ा, 25 साल में लगाए 11 लाख पौधे
जयराम कहते हैं कि पौधे लगाने के जुनून से स्वजन नाराज रहते थे लेकिन अब सभी साथ देते हैं। हरिद्वार और महाराष्ट्र तक पहुंचा सफर जयराम बताते हैं कि जब वे गुना में बहन जानकी देवी के यहां गए तो स्टेशन और पटरी किनारे 130 पौधे लगाए।
ग्वालियर [मनोज श्रीवास्तव]। जल संरक्षण के लिए तालाब बनाना या भूजल स्तर बढ़ाने का प्रयास करना ही सबकुछ नहीं है बल्कि मध्य प्रदेश के श्योपुर के जयराम मीणा की तरह पौधे लगाकर भी इस दिशा में अनुकरणीय कार्य किया जा सकता है। जयराम ने राजस्थान से सटे होने के कारण अपने गांव में सूखा देखा तो जल संरक्षण के लिए पर्यावरण को हरा-भरा करने का बीड़ा उठा लिया। पौधे लगाने की ऐसी लगन लगी कि पत्नी भी छोड़कर मायके चली गई।
प्रदेश सरकार ने उनके काम के लिए 2006 में जब उन्हें अमृता देवी विश्नोई सम्मान से नवाजा तो पत्नी और स्वजन को महत्व समझ आया। पत्नी न सिर्फ लौट आई बल्कि उनके काम में सहयोग भी करने लगी। जयराम 25 साल में 11 लाख से अधिक पौधे लगा चुके हैं। हर रोज साइकिल पर पानी की केन बांधकर निकलते हैं और सड़क किनारे लगे पौधों को पानी देते हैं। राजस्थान से सटे श्योपुर के बासौंद गांव के रहने वाले जयराम मीणा को लोग वृक्षमित्र के नाम से जानते हैं।
जयराम बताते हैं कि गांव के कई इलाकों में सूखे का संकट रहता था। जब वह 12 साल के थे, तब दादाजी मथुरालाल मीणा गांव के आसपास पौधे लगाते थे। उन्होंने भी घर के पास पांच पौधे लगाए। इसके बाद जल संरक्षण के लिए हरियाली करने की धुन ऐसी सवार हुई कि गांव के आसपास के अलावा बड़ौदा से ललितपुरा तक सड़क के दोनों किनारे दर्जनों पौधे लगाए। फिर 11 लाख पौधे लगाने का संकल्प लिया, जो वर्ष 2016 में पूरा हुआ। इसके बाद गिनती करना ही बंद कर दिया है।
जयराम कहते हैं कि पौधे लगाने के जुनून से स्वजन नाराज रहते थे, लेकिन अब सभी साथ देते हैं। हरिद्वार और महाराष्ट्र तक पहुंचा सफर जयराम बताते हैं कि जब वे गुना में बहन जानकी देवी के यहां गए तो स्टेशन और पटरी किनारे 130 पौधे लगाए। महाराष्ट्र के त्रियंबकेश्वर में बिल्वपत्र के 430 पौधे और हरिद्वार के कनखल में गंगा नदी किनारे 1500 से अधिक पौधे लगाए हैं। इन दिनों वे राजस्थान के हांडी में पालेश्वर महादेव पर 25 बीघा बीहड़ को समतल कर पौधे लगा रहे हैं। पांच बीघा जमीन पर्यावरण संरक्षण के नाम जयराम के परिवार में पत्नी के अलावा एक बेटा और तीन बेटियां हैं। 15 बीघा जमीन है। वे पांच बीघा में बोई फसल से मिलने वाली राशि पौधे, ट्री-गार्ड, खाद-बीज और पानी की व्यवस्था में खर्च करते हैं।
यही नहीं, वे घर पर ही नर्सरी में पौधे तैयार करते हैं। मुख्य वन संरक्षक ने भेंट की थी बाइक जयराम बताते हैं कि पुरस्कार मिलने के बाद भोपाल से मुख्य वन संरक्षक आरपी सिंह उनके गांव बासौंद आए थे। उन्होंने गांव में उनका काम देखा तो बेहद खुश हुए। जब उन्हें पता चला कि पौधे लगाने साइकिल या पैदल जाते हैं तो उन्हें बाइक भेंट की। दो सामाजिक संस्थाओं ने साइकिल भेंट की। जयराम महज पांचवीं पास हैं, लेकिन पर्यावरण संरक्षण के संबंध में अच्छी जानकारी की वजह से वन विभाग व अन्य संस्थाएं व्याख्यान देने के लिए उन्हें बुलाते हैं।
श्योपुर सामान्य वन मंडल के जिला वन अधिकारी सुधांशु यादव ने बताया, 'वृक्ष मित्र जयराम मीणा का पर्यावरण और जल संरक्षण के क्षेत्र में सराहनीय योगदान है। उन्होंने जिले में काफी पौधे लगाए हैं। अगर इसी तरह अन्य लोग भी प्रयास करें तो निश्चित ही जिले की तस्वीर बदल जाएगी।'