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Madhya Pradesh: जेल की पढ़ाई, अंधेरे जीवन में लाई उजाला, छूटने के बाद मिल रही नौकरी

यह बात मध्य प्रदेश की जबलपुर केंद्रीय जेल के सिलसिले में सही साबित हो रही है। यहां शिक्षा के जरिये बंदियों के अंधेरे जीवन में उजाला लाने का प्रयास हुआ है। जेल में कैदियों ने उच्चशिक्षा प्राप्त की और अपने जीवन को बदला।

By Dhyanendra Singh ChauhanEdited By: Published: Sat, 27 Feb 2021 06:19 PM (IST)Updated: Sat, 27 Feb 2021 06:21 PM (IST)
Madhya Pradesh: जेल की पढ़ाई, अंधेरे जीवन में लाई उजाला, छूटने के बाद मिल रही नौकरी
केंद्रीय जेल जबलपुर में कैदी कर रहे पढ़ाई

अंजुल मिश्रा, जबलपुर। जेल सजायाफ्ता के लिए महज प्रताड़ना गृह नहीं बल्कि सुधार गृह भी होता है, अगर उसे अच्छी राह पर चलने की प्रेरणा मिल सके। यह बात मध्य प्रदेश की जबलपुर केंद्रीय जेल के सिलसिले में सही साबित हो रही है। यहां शिक्षा के जरिये बंदियों के अंधेरे जीवन में उजाला लाने का प्रयास हुआ है। जेल में कैदियों ने उच्चशिक्षा प्राप्त की और अपने जीवन को बदला। जेल से छूटने के बाद अब वे नौकरियां कर रहे हैं।

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जेल में इस तरह हुआ प्रयास

एक दशक पहले वर्तमान जेल अधीक्षक गोपाल ताम्रकार ने इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (IGNOU) का केंद्र जेल में शुरू करवाया। इस केंद्र से अब तक 1953 बंदियों ने डिग्रियां अर्जित कीं और 88 कैदियों ने इस साल परीक्षा दी है। इनमें कई कैदी जेल से छूटने के बाद समाज की मुख्यधारा में शामिल होने में सफल रहे।

डिग्री के लिए जेल में आई चिट्ठी

जबलपुर निवासी सुनील तिवारी को पत्नी की हत्या के जुर्म में सात साल की सजा हुई थी। 2010 में सुनील ने जेल में रहकर पुरोहित का प्रशिक्षण लेने के साथ एमबीए किया। रिजल्ट आता, उससे पहले ही सुनील की सजा पूरी हो गई और वे पुरोहित का काम करने हरिद्वार चले गए। वहां उनकी मुलाकात नोएडा के एक फैक्ट्री के मालिक से हुई। सुनील का व्यवहार उनको पसंद आया और वे उसे पुरोहिती के लिए अपने साथ ले गए। नोएडा में पुरोहिती के साथ सुनील उनकी फैक्ट्री का काम भी संभालने लगे। काम से प्रभावित होकर सुनील को फैक्ट्री में असिस्टेंट मैनेजर बनाने के लिए उन्होंने डिग्री देखना चाही। तब सुनील ने 2012 में जेल अधीक्षक ताम्रकार को पत्र लिखकर अपनी डिग्री मांगी। एमबीए की उसी डिग्री के आधार पर सुनील असिस्टेंट मैनेजर बने।

निजी कंपनी में आइटी हेड बने रामजी

बालाघाट निवासी रामजी ने हत्या के जुर्म में जबलपुर जेल में अपनी सजा पूरी की। जेल में रहते हुए रामजी कंप्यूटर साक्षरता कार्यक्रम में शामिल हुए और कंप्यूटर में निपुण हो गए। साफ्टवेयर, हार्डवेयर के बारे में भी समझने लगे। 2012 में उनकी सजा पूरी हो गई। इसके बाद वे नागपुर चले गए। बाद में उन्होंने जेल में फोन पर सूचना दी कि जेल में सीखे कंप्यूटर के आधार पर उनकी जिंदगी में एक बार फिर उजाला हो गया है। वे नागपुर के एक निजी कंपनी में आइटी हेड के पद पर कार्य कर रहे हैं।

सिंकदर ने किया स्नातक

नरसिंहपुर निवासी सिंकदर भूरा हत्या की सजा काट रहे हैं। वे पिछले आठ साल से जबलपुर जेल में बंद हैं। इस दौरान उनके मन भी पढ़ाई की इच्छा जागृत हुई। डिप्लोमा कोर्स करने के बाद हाल ही में स्नातक अंतिम वर्ष की परीक्षा दी है। सिंकदर का कहना है कि जब तक जेल में हैं, तब तक पढ़ाई जारी रखेंगे ताकि बाहर निकलकर जीवन की नई राह मिल सके।

कुछ इसी तरह बालाघाट के लाखन मरावी की कहानी है वे भी पिछले आठ साल से पढ़ रहे हैं। जेल में संचालित होते हैं ये कोर्स बीए, बीकाम, एमए, एमबीए के अलावा कई डिप्लोमा कोर्स भी यहां संचालित होते हैं।  

नेताजी सुभाषचंद्र बोस केंद्रीय कारागार के जेल अधीक्षक गोपाल तामक्रार ने कहा कि जेल में सजा काटने के बाद जब बंदी बाहर निकलता है तो वह समाज की मुख्यधारा से कट जाता है। उसके बाद रोजगार के साधन भी नहीं होते। फिर से जीवन स्थापित करने में शिक्षा महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसी सोच के साथ 2010 में इग्नू के सेंटर की शुरआत कराई थी जो अब फलीभूत हो रही है। कई पूर्व कैदी अब बेहतर जिंदगी जी रहे हैं।


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