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Madhya Pradesh: कोरोना की वजह से समय पर नहीं हो पाएंगे विधानसभा उपचुनाव

कोरोना संक्रमण के कारण मध्य प्रदेश में विधानसभा उपचुनाव निर्धारित समय पर नहीं हो पाएंगे? प्रदेश में तख्तापलट मंत्रिमंडल विस्तार और विभाग वितरण के बाद यह सवाल दोहराया जा रहा है।

By Vinay TiwariEdited By: Published: Sun, 02 Aug 2020 12:23 PM (IST)Updated: Sun, 02 Aug 2020 12:23 PM (IST)
Madhya Pradesh: कोरोना की वजह से समय पर नहीं हो पाएंगे विधानसभा उपचुनाव
Madhya Pradesh: कोरोना की वजह से समय पर नहीं हो पाएंगे विधानसभा उपचुनाव

मध्य प्रदेश [आशीष व्यास]। कोरोना संक्रमण के कारण मध्य प्रदेश में, विधानसभा उपचुनाव निर्धारित समय पर नहीं हो पाएंगे? प्रदेश में तख्तापलट, मंत्रिमंडल विस्तार और फिर विभाग वितरण के बाद यह सवाल बार-बार दोहराया जा रहा है।

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बीती 10 मार्च को कांग्रेस के 22 विधायक इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल हो गए थे। 19 मार्च तक सभी के इस्तीफे मंजूर किए गए। 19 अगस्त तक छह महीने पूरे हो रहे हैं। इस्तीफा देने से रिक्त हुई विधानसभा सीट पर चुनाव छह महीने के अंदर कराना जरूरी होता है।

कोरोना काल के नए-नए आंकड़े अब नए-नए राजनीतिक समीकरण और बहस को भी सामने ला रहे हैं, क्योंकि मध्य प्रदेश के राजनीतिक इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है, जब 14 मंत्री, विधायक नहीं हैं! शिवराज की टीम में उन्हें मिलाकर 34 मंत्री हैं। इनमें 14 मंत्री पूर्व कांग्रेसी हैं। यही वे हैं जो अभी विधायक नहीं हैं। सत्ता परिवर्तन के पश्चात प्रदेश में मंत्रिमंडल विस्तार की देरी को, विपक्ष द्वारा राजनीतिक अस्थिरता की उपमा भी दी गई। तर्क यह भी दिया गया कि भाजपा में निर्णय का केंद्राधिकार अब समाप्त हो चुका है।

कभी कमल नाथ, दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया खेमों में विभाजित रही कांग्रेस का यह आरोप भी चौंका गया कि भाजपा में शिवराज के साथ सिंधिया गुट का प्रभाव-प्रसार, खेमे-बंदी को बढ़ावा दे रहा है। हालांकि इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि कमल नाथ सरकार गिरने के पूर्व सिंधिया की तरफ से अनेक अबोले- लिखित अनुबंध हो चुके थे। यही वजह है कि सिंधिया समर्थक विधायक अब मंत्री के रूप में मध्य प्रदेश की सेवा का संकल्प दोहरा रहे हैं।

दरअसल समर्थन और समर्थकों की ऐसी सियासत मध्य प्रदेश में पहली बार देखी जा रही है। इसीलिए बिना किसी संशय के एक सवाल बार-बार पूछा जा रहा है कि अपने-अपने राजनीतिक आकाओं की अनुकंपा से पद, कद और प्रभाव में वृद्धि करने वाले माननीय मंत्रीगण, प्रदेश की समस्याओं से कितना सरोकार रख पाएंगे?चुनावी दावों-वादों से दूर अब जन-मन की पीड़ा-परेशानियों से कैसे सीधा सामंजस्य बैठा पाएंगे? वैसे कहा यह भी जाता है कि राजनीति में हितबद्धता ज्यादा मायने नहीं रखती है।

यदि व्यक्ति परिणामदायक व्यवस्था नहीं बना पाता है तो राजनीतिक व्यवस्थाएं कब विवशताओं में बदल जाती हैं, पता नहीं चलता। मंत्रियों को जन अपेक्षाओं के ऐसे ही दबाव-समूह की उपस्थिति हमेशा अनुभव करना चाहिए। इस पवित्र उद्देश्य के साथ कि प्रदेश की परिधि काफी बड़ी है, यदि वे अपने विधानसभा क्षेत्र की समस्याओं को ही निर्णायक रूप से हल करवा देंगे और पांच साल बाद जब अपने ही क्षेत्र में लौटेंगे, तो एक स्वाभाविक विश्वास स्थाई रूप से बना रहेगा।

इसी बहाने इस बात का भी अनुभव हो जाएगा कि प्रदेश की जमीनी समस्याओं पर उनकी पकड़ कितनी मजबूत है? पूरे प्रदेश में कुछ ऐसी समस्याएं हैं, जो लोग लंबे समय से हल करवाना चाहते हैं। कुछ बहुत सामान्य हैं, कुछ को पूरा करने के लिए वित्तीय सहयोग की आवश्यकता है, हो सकता है कुछ ऐसी भी हों, जिसमें राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत हो। लेकिन व्यापक दृष्टिकोण में देखेंगे तो ऐसी छोटी-बड़ी समस्याएं प्रदेश के हर इलाके में मौजूद हैं। मंत्री चाहें तो अपने इलाके की समस्याओं के जरिये एक ऐसा पड़ताल-प्रबंधन विकसित कर सकते हैं जो प्रदेश स्तर पर उपयोगी और निर्णायक हो सकता है।

यदि इन परेशानियों को शेष प्रदेश की समस्याओं के साथ रखें, तो बहुत सी ऐसी समानताएं साफ-साफ दिखाई देंगी, जो एक-एक करके बहुत बड़ी हो जाती हैं। चुनाव मैदान में उतरने को आतुर मंत्रियों को परखने का एक  पैमाना यह भी हो सकता है कि यदि वे अपने इलाके की समस्याओं को हल करवा पाते हैं, तो वहां से मिले अनुभवों के आधार पर प्रदेश की बाकी परेशानियों का निराकरण कर सकते हैं। फिलहाल उम्मीद की जा सकती है कि राजनीतिक समायोजन की शह-मात में उभर कर आए माननीय ऐसा काम करेंगे कि अपने क्षेत्र व प्रदेश की नाक ऊंची रख सकें। 

मुख्यमंत्री पॉजिटिव, सरकार क्वारंटाइन : 

मध्य प्रदेश पहला प्रदेश है, जहां कोरोना ने मुख्यमंत्री को भी चपेट में लिया। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के पॉजिटिव आते ही पूरी सरकार यानी मंत्रिमंडल क्वारंटाइन हो गई। भाजपा के सभी मंत्रियों, विधायकों और कार्यकर्ताओं को दौरा करने या सार्वजनिक कार्यक्रमों से दूर रहने के लिए कह दिया गया है। लेकिन यह तब हो रहा है, जब कोरोना ने गली-मोहल्लों से लेकर मुख्यमंत्री के कमरे तक दस्तक दे दी।

इसमें कोई दो मत नहीं कि मुख्यमंत्री जब-जब सार्वजनिक कार्यक्रमों में दिखे, वे कोरोनाकाल में तय नियमों का पालन करते नजर आए। लेकिन उनके मंत्रियों, विधायकों और कार्यकर्ताओं ने ऐसी गंभीरता नहीं दिखाई। ये नौबत इसलिए बनी कि ऐसी ही लापरवाहियों के बीच मुख्यमंत्री ने मंत्रिमंडल की बैठक बुलाई। चुनाव को लेकर भी लगातार पार्टी बैठकें होती रहीं।

कोरोनाकाल में तीन महीने तक दूर रहे कई नेता ऐसे गले मिले कि मास्क पहनना तक भूल गए। प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्र पूरे कोरोनाकाल में सार्वजनिक कार्यक्रमों में मास्क से परहेज करते नजर आए। राहत की बात यह है कि कोरोनाकाल में भी सरकार का सामान्य कामकाज ऑनलाइन संपन्न हो रहा है! सवाल केवल यह है कि इस तरह की तैयारियां यदि पहले ही कर ली जातीं, तो कोई आश्चर्य नहीं कि भाजपा में सत्ता और संगठन की शीर्ष पंक्ति आज कोरोना से सुरक्षित होती। (संपादक, नई दुनिया) 


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