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लोकपाल को अपने आदेश पर पुनर्विचार का नहीं है अधिकार, लोकपाल अध्यक्ष ने किया था समिति का गठन

लोकपाल के अध्यक्ष पिनाकी चंद्र घोष द्वारा इसके तीन सदस्यों- न्यायमूर्ति अभिलाषा कुमारी डीके जैन और आइपी गौतम की समिति का गठन किया गया था। इसे पीठ द्वारा पारित आदेशों पर पुनर्विचार के अनुरोधों से संबंधित नीति के बारे में विचार करने की जिम्मेदारी दी गई थी।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Thu, 15 Oct 2020 07:02 PM (IST)Updated: Thu, 15 Oct 2020 07:02 PM (IST)
लोकपाल को अपने आदेश पर पुनर्विचार का नहीं है अधिकार, लोकपाल अध्यक्ष ने किया था समिति का गठन
इस मामले पर विचार के लिए लोकपाल अध्यक्ष ने किया था समिति का गठन।

नई दिल्ली, प्रेट्र। लोकपाल की ओर से कहा गया है कि उसकी पीठ द्वारा पारित किसी आदेश पर पुनर्विचार की याचिकाओं को स्वीकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि इससे संबंधित कानून में पुनर्विचार का प्रावधान नहीं है। दरअसल, लोकपाल के पास उसके आदेशों पर पुनर्विचार या समीक्षा की मांग करने वाली कई शिकायतें आ रही हैं। इन्हें देखते हुए लोकपाल ने यह कहा है।

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लोकपाल के अध्यक्ष पिनाकी चंद्र घोष द्वारा इसके तीन सदस्यों- न्यायमूर्ति अभिलाषा कुमारी, डीके जैन और आइपी गौतम की समिति का गठन किया गया था। इसे पीठ द्वारा पारित आदेशों पर पुनर्विचार के अनुरोधों से संबंधित नीति के बारे में विचार करने की जिम्मेदारी दी गई थी। इस समिति ने छह अक्टूबर को अपनी रिपोर्ट सौंपी।

समिति ने कहा कि केंद्र सरकार से किया जा सकता है अनुरोध

समिति की राय है कि लोकपाल एवं लोकायुक्त कानून, 2013 में पुनर्विचार का व्यापक अधिकार नहीं है। इस कारण लोकपाल की पीठ द्वारा पारित आदेश पर पुनर्विचार के अनुरोध को स्वीकार नहीं किया जा सकता। समिति ने कहा कि केंद्र सरकार से अनुरोध किया जा सकता है कि वह लोकपाल एवं लोकायुक्त कानून में पुनर्विचार के अधिकार को शामिल करने के बारे में विचार करे। किसी वैधानिक संस्था द्वारा समीक्षा के अधिकार का तब तक इस्तेमाल नहीं किया जा सकता, जब तक उसे यह शक्ति नहीं दी जाती। उल्लेखनीय है कि सरकारी अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए लोकपाल और लोकायुक्त का गठन किया गया था।

लोकपाल अध्यक्ष पीसी घोष का संक्षिप्त परिचय

1952 में जन्मे जस्टिस पीसी घोष (पिनाकी चंद्र घोष) जस्टिस शंभू चंद्र घोष के बेटे हैं। 1997 में वे कलकत्ता हाईकोर्ट में जज बने। दिसंबर 2012 में वह आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने। 8 मार्च 2013 में वह सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश प्रोन्नत हुए और 27 मई 2017 को वह सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश पद से सेवानिवृत हुए। फिलहाल वह एनएचआरसी के सदस्य हैं।


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