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आगर जिले में पांचवीं बार टिड्डियों का धावा, किसानों की उड़ी नींद; सब्जी और फसलों को पहुंचाया नुकसान

जिले में पांचवीं बार टिड्डियों ने धावा बोला। नलखेड़ा क्षेत्र के गांव धरोला व देहरी के बीच टिड्डियां खेतों व पेड़ों पर जा बैठीं।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Wed, 27 May 2020 07:36 PM (IST)Updated: Wed, 27 May 2020 07:43 PM (IST)
आगर जिले में पांचवीं बार टिड्डियों का धावा, किसानों की उड़ी नींद; सब्जी और फसलों को पहुंचाया नुकसान
आगर जिले में पांचवीं बार टिड्डियों का धावा, किसानों की उड़ी नींद; सब्जी और फसलों को पहुंचाया नुकसान

आगर-मालवा, जेएनएन। राजस्थान से आए टिड्डी दल ने जिले के किसानों की नींद उड़ा दी है। सब्जी और उद्यानिकी फसलों को नुकसान पहुंचाया है। किसान भी अपने स्तर पर इस खतरे से निपट रहे हैं। मंगलवार रात जिले में पांचवीं बार टिड्डियों ने धावा बोला। नलखेड़ा क्षेत्र के गांव धरोला व देहरी के बीच टिड्डियां खेतों व पेड़ों पर जा बैठीं।

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जिले में बनाए गए टिड्डी नियंत्रण दल के अधिकारियों को सूचना मिली तो देर रात में ही संसाधन जुटाए। बुधवार अलसुबह करीब 5 बजे दमकल वाहन और अन्य संसाधनों से कीटनाशक का छिड़काव किया गया। इसे बड़ी संख्या में टिड्डियां मारी गई।

मध्य प्रदेश और राजस्थान के रिहायशी इलाकों में भी टिड्डी दल कोहराम मचा चुका है। इससे बचाव के लिए प्रशासन ने कई निर्देश जारी किए हैं। नगर पालिक व नगर पंचायत में पानी के टैंकर भर कर रखे जाएं। दमकल वाहनों को पानी से भरकर तय स्थानों पर रखें ताकि जरूरत पड़ने पर इनका प्रयोग किया जा सके।

किसानों के लिए मुसीबत बनी टिड्डी

पाकिस्तान से बेमौसम आ रहे टिड्डी दल के लिए बेमौसम बारिश ने हालात मुफीद किए हैं। रेतीली मिट्टी और नम बालू में अंडे देने वाले टिड्डी दल यूं तो जून से नवंबर तक सक्रिय होते थे लेकिन इस बार बेमौसम बारिश से पनपे मुफीद हालात में उन्होंने फरवरी, मार्च और अप्रैल में भी कुनबा बढ़ाया है। इसीलिए राजस्थान, पंजाब क्षेत्र और मध्य प्रदेश में इन्हें रोकना मुश्किल हो गया और वह आगे बढ़ गए।

रेत और नदी किनारे देती हैं ये अपने अंडे

चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (सीएसए) के कीट विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. डीआर सिंह ने बताया कि टिंड्डी जमीन से दो से तीन इंच नीचे अंडे देती है। इसके लिए रेतीली मिट्टी, रेत और नदी किनारे का क्षेत्र मुफीद है। यूं तो वह बारिश में रेगिस्तान में अंडे देती है लेकिन इस बार फरवरी से अप्रैल तक अनियमित बारिश हुई। टिडिडियों को मुफीद हालात मिले और उन्होंने अपना कुनबा बढ़ा लिया है। अंडे देने के इन्हीं मुफीद हालातों के कारण गंगा कटरी का इलाका काफी संवेदनशील हो गया है।


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