लॉकडाउन ने खोले 40 साल पहले गुम हुए रिश्ते का द्वार, मुस्लिम परिवार ने दिया था आसरा
विदाई के दौरान बड़ी संख्या में लोग एकत्रित थे। किसी ने माला पहनाई तो किसी ने उन्हें गले लगाया किसी ने उनका हाथ चूमा तो किसी ने पैर छूकर विदाई दी।
ओपी सोनी, दमोह। कोविड-19 ने न जाने कितने घर उजाड़े और उन्हें अपने ठिकाने छोड़ने को मजबूर कर दिया, लेकिन इसी संकट में 40 साल पहले अपनों से बिछड़ीं 90 वर्षीय महिला को उसका खोया हुआ परिवार मिल गया। ये सब सोशल मीडिया के माध्यम से संभव हो सका। जो महिला 50 साल की उम्र में अपनों से बिछड़ गई थी, उसे एक मुस्लिम परिवार ने 40 साल तक अपने परिवार का हिस्सा मानकर देखभाल की। यह दास्तां है मध्य प्रदेश के दमोह जिले के कोटातला गांव में रहीं अच्छन मौसी की।
पंचूबाई से बनी अच्छन मौसी, मुस्लिम परिवार ने दिया था आसरा
वह धर्म से हिंदू हैं और उनका वास्तविक नाम पंचूबाई है। करीब 40 साल पहले दमोह के बस स्टैंड पर नूर खान (अब स्वर्गीय) को वह घायल अवस्था में मिलीं थीं। वे उन्हें अपने घर ले गए और इलाज कराया। हिंदी न बोल पाने के कारण वह अपना पता नहीं बता पाईं। मानसिक रूप से भी वह कमजोर थीं। नूर खान ने उन्हें आसरा दिया। उनके परिवार को तलाशने का प्रयास किया, लेकिन जब परिवार नहीं मिला तो उन्होंने पंचूबाई का नाम अच्छन रख दिया और उन्हें अपनी बहन मान लिया। इसके बाद नूर के परिवार के लोग उन्हें अच्छन मौसी कहने लगे।
लॉकडाउन में जुबां से निकले एक शब्द ने अपनों तक पहुंचाया
मौसी बोलीं- परसापुर, तो गूगल पर किया सर्च पांच मई 2020 की सुबह अच्छन मौसी ने परसापुर नाम लिया। उस समय नूर खान का बेटा इसरार उनके पास था। उसे लगा, जैसे मौसी ने किसी गांव का नाम लिया है। उन्होंने गूगल पर सर्च किया तो कनिष्का कियोस्क संचालक के अभिषेक का नाम सामने आया। इसरार ने अभिषेक से संपर्क किया और पूरी बात बताई।
सोशल मीडिया के माध्यम से पहिचानी गईं महाराष्ट्र की पंचूबाई
अभिषेक ने इसरार से मौसी का वीडियो भेजने को कहा। उस वीडियो को अभिषेक ने अपने क्षेत्र के ग्रुपों में शेयर किया और एक जून के पहले सप्ताह में इसरार को नागपुर के पृथ्वी शिंगणे नामक व्यक्ति का फोन आया। उसने बताया कि वीडियो में दिख रही बुजुर्ग उनकी दादी हैं और उनका नाम पंचूबाई है। पृथ्वी ने ये भी बताया कि वर्ष 1979 में उनके पिता भैयालाल शिंगणे अपनी मां पंचूबाई का इलाज कराने के लिए उन्हें नागपुर लेकर आए थे।
थाने में दर्ज हुई गुमशुदगी की रपट, वीडियो देखकर पंचूबाई की हुई पहचान
जिस मकान में रखकर वह उनका इलाज करा रहे थे, वह वहां से लापता हो गईं। उनके पिता ने लकड़गंज थाने में गुमशुदगी भी दर्ज कराई, लेकिन वह नहीं मिलीं। अमरावती जिले के परसापुर में उनके स्वजन रहते हैं। उन्होंने भी वीडियो देखकर पंचूबाई की पहचान कर ली है। इसरार ने पृथ्वी को दमोह बुलाया।
महाराष्ट्र की पंचूबाई को दमोह से ले गए उनके परिवार के लोग
पृथ्वी अपनी पत्नी व एक दोस्त के साथ दमोह पहुंचे और 17 जून को दादी को साथ ले गए।
मधुमक्खियों ने कर दिया था घायल
इसरार के मुताबिक, उनके पिता ने बताया था कि बस स्टैंड के पास पंचूबाई मधुमक्खियों के हमले में बुरी तरह घायल अवस्था में मिलीं थीं। वह उन्हें अपने घर ले आए। अच्छन मौसी को हिंदी नहीं आती थी, लेकिन वह उनके पिता नूर खान को भैया और उनकी मां को कमला भाभी कहतीं थीं। हिंदी न जानने वाली पंचूबाई कमला क्यों कहती थीं, इसका राज भी पृथ्वी ने खोला।
दमोह के लोगों ने पंचूबाई के पैर छूकर दी विदाई
पृथ्वी ने बताया कि उनके भाई की पत्नी का नाम कमला है, जो परसापुर में रहतीं हैं। संभवत: उन्हें वह नाम याद रहा होगा, इसलिए वह इसरार की मां को कमला भाभी कहतीं थी। उनकी विदाई के दौरान बड़ी संख्या में लोग एकत्रित थे। किसी ने माला पहनाई तो किसी ने उन्हें गले लगाया, किसी ने उनका हाथ चूमा तो किसी ने पैर छूकर विदाई दी।