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जलवायु परिवर्तन की बुलंद आवाज बनीं मणिपुर की नौ वर्षीय लिसिप्रिया, स्कूल छोड़ कूदीं आंदोलन में

2015 में नेपाल में आए भूकंप के दौरान लिसिप्रिया अपने पिता के साथ पीड़ितों के लिए फंड रेज करने गई थीं। उसके बाद उन्होंने टेलीविजन पर आपदा के कारण बेघर हुए बच्चों को देखा तब शायद पहली बार उन्होंने क्लाइमेट चेंज एवं प्राकृतिक आपदा जैसे शब्द सुने थे।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 03 Oct 2020 01:41 PM (IST)Updated: Sat, 03 Oct 2020 04:17 PM (IST)
जलवायु परिवर्तन की बुलंद आवाज बनीं मणिपुर की नौ वर्षीय लिसिप्रिया, स्कूल छोड़ कूदीं आंदोलन में
अब तक 32 देशों की यात्रा कर चुकीं नौ वर्षीय लिसिप्रिया।

नई दिल्ली, अंशु सिंह। छह साल की उम्र में मणिपुर की लिसिप्रिया कंगुजैम को मंगोलिया में संयुक्त राष्ट्र के डिजाज्टर कॉन्फ्रेंस में भाग लेने का मौका मिला। उसने इनके जीवन को पूरी तरह बदल दिया। वहां से वापस आने के बाद इन्होंने ‘द चाइल्ड मूवमेंट’ नाम से एक संगठन शुरू किया। इस तरह, जुलाई 2018 से वे लगातार जलवायु परिवर्तन को लेकर अपनी आवाज उठा रही हैं। इन्होंने वैश्विक नेताओं से धरती को बचाने की अपील करने के साथ ही भारत के प्रधानमंत्री से अपील की है कि वे यथाशीघ्र जलवायु परिवर्तन कानून को संसद में पारित कराएं। 

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2015 में नेपाल में आए भूकंप के दौरान लिसिप्रिया अपने पिता के साथ पीड़ितों के लिए फंड रेज करने गई थीं। उसके बाद उन्होंने टेलीविजन पर आपदा के कारण बेघर हुए बच्चों को देखा, तो उन्हें रोना आ गया। तब शायद पहली बार उन्होंने क्लाइमेट चेंज एवं प्राकृतिक आपदा जैसे शब्द सुने थे। लेकिन छोटी उम्र के कारण उसका सही अर्थ नहीं समझ पाई थीं। लिसिप्रिया बताती हैं,‘मेरा जन्म मणिपुर में हुआ है,लेकिन पली-बढ़ी ओडिशा में हूं। वहां अक्सर प्राकृतिक आपदाएं आती रहती हैं। जब मैं छह वर्ष की थी, तो पहली बार 2018 में फेनी साइक्लोन आया था। इसके अगले वर्ष तितली तूफान ने दस्तक दिया था। इन तूफानों का मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन ही होता है। इसलिए वे जगह-जगह जाकर बच्चों एवं लोगों को इसके प्रति जागरूक करने की कोशिश करती हैं।’

 जलवायु परिवर्तन कानून को लेकर जारी संघर्ष

अब तक 32 देशों की यात्रा कर चुकीं नौ वर्षीय लिसिप्रिया ने कई वैश्विक सम्मेलनों में हिस्सा लिया है,जिसमें 2019 में स्पेन के मैड्रिड में हुआ यूनाइटेड नेशंस क्लाइमेट कॉन्फ्रेंस (सीओपी25) भी एक था। वह बताती हैं,‘जब मैंने मूवमेंट की शुरुआत की थी, तो अकेली थी। आज विश्व भर में लाखों सपोर्टर्स हैं मेरे। मैंने बीते दो सालों में दुनिया भर में 400 से अधिक संस्थानों में बतौर स्पीकर अपना वक्तव्य दिया है। हाल ही में मैंने आइओसी एवं जापान सरकार से आग्रह किया है कि वे 2021 के ओलंपिक गेम्स को ग्रीन ओलंपिक गेम घोषित करें।’ जलवायु परिवर्तन का भारत पर व्यापक असर पड़ रहा है, लेकिन उस पर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया जा रहा। इसके लिए, लिसिप्रिया 2019 से लगातार संसद भवन के आगे प्रदर्शन कर रही हैं। वह बताती हैं,‘2019 के फरवरी महीने में मैंने पहली बार दिल्ली में संसद भवन के बाहर प्रदर्शन किया। मैंने प्रधानमंत्री एवं सांसदों से अपील की कि वे कार्बन उत्सर्जन को रोकने के लिए बने ‘क्लाइमेट चेंज लॉ’ को संसद में पारित कराएं। इससे ग्रीन हाउस गैस के साथ ही कार्बन उत्सर्जन को नियंत्रित किया जा सकेगा।’

स्कूल छोड़ कूदीं आंदोलन में

लिसिप्रिया को लगातार देश-विदेश प्रदर्शन करने या कार्यक्रम में शामिल होने के लिए जाना होता है। ऐसे में पैरेंट्स इन यात्राओं का खर्च बार-बार नहीं उठा सकते थे। इसलिए इन्होंने रेगुलर स्कूल छोड़, होम स्कूलिंग करनी शुरू कर दी। लिसिप्रिया कहती हैं,‘मैंने अपना सुंदर बचपन,दोस्त, मौज-मस्ती सब छोड़ दी है,ताकि अपने अभियान को अंजाम तक पहुंचा सकूं। यात्रा के क्रम में मैं कभी एयरपोर्ट,कभी फ्लाइट में पढ़ लेती हूं। क्योंकि एक्टिविज्म के साथ पढ़ाई भी जरूरी है।’वृक्षारोपण के अलावा, ये समुद्र एवं सड़क से प्लास्टिक साफ करती हैं। हर छुट्टी पर सार्वजनिक स्थलों पर प्लास्टिक कचरे को इकट्ठा करती हैं। बताती हैं,'मैं सिंगल यूज प्लास्टिक वेस्ट से स्कूल फर्नीचर,बेंच,डेस्क,टेबल,टाइल्स आदि बनाने की योजना पर भी काम कर रही हूं। हमने कुछ सैंपल प्रोडक्ट तैयार किए हैं। शहर में भ्रमण करने के लिए मैं सिर्फ इलेक्ट्रिक एवं सीएनजी व्हीकल का इस्तेमाल करती हूं। घर के आसपास के लिए साइकिल इस्तेमाल करती हूं। लंबी दूरी के लिए ट्रेन या फ्लाइट लेती हूं।'

अब तक 52 हजार पेड़ लगाए

पेंटिंग,स्वीमिंग एवं दोस्तों के साथ खेलने की शौकीन लिसिप्रिया ने प्रधानमंत्री से मांग की है कि स्कूलों में क्लाइमेट एजुकेशन को अनिवार्य बनाया जाए। साथ ही यह सुनिश्चित किया जाए कि देश के प्रत्येक स्कूली बच्चे कम से कम 10 पेड़ जरूर लगाएं। वे बताती हैं,‘आज भारत में करीब 35 करोड़ स्कूली बच्चे हैं। अगर हर बच्चा 10 पेड़ लगाए, तो हर साल हमारे यहां करीब 3.5 बिलियन पेड़ लग जाएंगे। इससे वायु प्रदूषण, बाढ़, सूखा, लू एवं अन्य पर्यावरणीय संकट से निपटा जा सकेगा। मैं खुद खाली समय में पेड़ लगाना पसंद करती हूं। अब तक मैंने उत्तराखंड, ओडिशा, कर्नाटक एवं अफ्रीका में 52 हजार से अधिक पेड़ लगाए हैं। इस साल 2 अक्टूबर से वैश्विक स्तर पर मेरे समर्थक मेरे जन्मदिन (2 अक्टूबर को था) पर पेड़ लगाया करेंगे। कुल 100 देशों में पेड़ लगाए जाएंगे।


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