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अप्रैल में अफ्रीकी देश माने, तो देश में आएंगे चीते, विशेषज्ञों का तीन सदस्यीय दल आ रहा मध्य प्रदेश

मध्य प्रदेश की धरती पर चीतों के रफ्तार भरने का सपना पूरा होने जा रहा है। चीतों के लिए देश में सबसे बेहतर मध्य प्रदेश के कूनो पालपुर के जंगल को माना गया है। इसलिए नामीबिया और अन्य दो अफ्रीकी देशों के चीता विशेषज्ञ अगले महीने यहां आ रहे हैं।

By Dhyanendra Singh ChauhanEdited By: Published: Sat, 27 Mar 2021 08:59 PM (IST)Updated: Sat, 27 Mar 2021 08:59 PM (IST)
अप्रैल में अफ्रीकी देश माने, तो देश में आएंगे चीते, विशेषज्ञों का तीन सदस्यीय दल आ रहा मध्य प्रदेश
अफ्रीकन टीम चारों संरक्षित क्षेत्रों का करेगी दौरा

मनोज तिवारी, भोपाल। चीता परियोजना के लिए श्योपुर जिले के कूनो पालपुर राष्ट्रीय उद्यान की नब्ज टटोलने अफ्रीकी देश नामीबिया से तीन विशेषज्ञ अप्रैल में मध्य प्रदेश आ रहे हैं। वे करीब एक हफ्ते रककर कूनो पालपुर, गांधी सागर, नौरादेही अभयारण्य और शिवपुरी स्थित माधव राष्ट्रीय उद्यान का भ्रमण करेंगे। इस दल की रिपोर्ट के आधार पर ही नामीबिया सहित अफ्रीका के अन्य देश, भारत को चीता देने के प्रस्ताव पर मुहर लगाएंगे। वहीं, भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून ने परियोजना को लेकर डीपीआर (डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट) की तैयारी शुरू कर दी है, जो राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के माध्यम से राज्य सरकार को भेजी जाएगी और फिर परियोजना को लेकर दोनों सरकारों के बीच अनुबंध होगा।

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मध्य प्रदेश की धरती पर चीतों के रफ्तार भरने का सपना पूरा होने जा रहा है। चीतों के लिए देश में सबसे बेहतर मध्य प्रदेश के कूनो पालपुर के जंगल को माना गया है। इसलिए नामीबिया और अन्य दो अफ्रीकी देशों के चीता विशेषज्ञ अगले महीने यहां आ रहे हैं। वे सबसे पहले कूनो पालपुर और फिर शेषष तीनों संरक्षित क्षेत्रों का दौरा करेंगे। विशेषज्ञ अपनी सरकार को रिपोर्ट देंगे, जिसमें बताएंगे कि जिन संरक्षित क्षेत्रों में चीता बसाए जाने हैं, वहां चीता खुद को जीवित रख पाएंगे या नहीं। वहां की जलवायु कैसी है और क्या इंतजाम हैं। इस रिपोर्ट में की गई अनुशंसा ही तय करेगी कि नामीबिया व अन्य देशों की सरकार भारत को चीता देगी या नहीं। इसके बाद आगे की कार्रवाई होगी।

परियोजना के लिए अनुबंध होगा

भारत सरकार की तमाम परियोजना की तरह चीता परियोजना के लिए भी द्वि-पक्षीय अनुबंध होगा। अनुबंध भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून की डीपीआर के आधार पर होगा। डीपीआर बनाने की प्रक्रिया भी जल्द शुरू होने जा रही है। इस परियोजना पर 20 से 40 फीसद राशि राज्य सरकार को खर्च करना पड़ेगी। जिसे देखते हुए भारत सरकार की ओर से राज्य को विधिवत रूप से परियोजना में शामिल करना होगा।

मध्य प्रदेश के अपर प्रधान मुख्य वनसंरक्षक जेएस चौहान ने बताया कि तीन दिन पहले भारतीय वन्यजीव संस्थान, सुप्रीम कोर्ट की साधिकार समिति और प्रदेश के वन अधिकारियों की वर्चुअल बैठक में इस पर लंबी चर्चा हुई है। संस्थान, परियोजना से राज्य सरकार को जो़ड़ने की औपचारिकताएं पूरी करने को तैयार हो गया है। वर्चुअल बैठक हुई है। उसमें कई मुद्दों पर चर्चा भी हुई है। प्रदेश के चारों संरक्षित क्षेत्रों का दौरा करने अफ्रीका से तीन विशेषषज्ञों के आने की जानकारी सही है।


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