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कभी यूनुस साहब की मैगजीन 'शमा' में छपने के लिए लगती थी फिल्‍मी कलाकारों में होड़

नई दिल्ली के चाणक्यपुरी इलाके में उनके शमाघरमें उर्दू के साहित्यकारों, शायरों, पत्रकारों और सेलिब्रिटीज के साथ-साथ फिल्म के कलाकारों का भी जमावड़ा लगा रहता था।

By Kamal VermaEdited By: Published: Mon, 11 Feb 2019 05:09 PM (IST)Updated: Mon, 11 Feb 2019 05:09 PM (IST)
कभी यूनुस साहब की मैगजीन 'शमा' में छपने के लिए लगती थी फिल्‍मी कलाकारों में होड़
कभी यूनुस साहब की मैगजीन 'शमा' में छपने के लिए लगती थी फिल्‍मी कलाकारों में होड़

विवेक भटनागर। 'उर्दू मैंने अपनी मां के दूध के साथ पी है।' कभी किसी इंटरव्यू मैं यह बात कहने वाले यूनुस देहलवी साहब ने सचमुच अपनी पूरी उम्र उर्दू भाषा की खिदमत में गुजार दी। 7 फरवरी 2019 की सुबह गुडग़ांव में 89 वर्ष की उम्र में उनका हृदयगति रुकने से निधन हो गया। यह दिल्ली की पुरानी संस्कृति और उर्दू पत्रकारिता के एक युग के अंत हो जाने जैसा है। यूनुस देहलवी उर्दू की पत्रिका 'शमा' और उसी के हिंदी-देवनागरी वर्जन 'सुषमा' के प्रकाशक और संपादक थे। ये दोनों पत्रिकाएं एक समय बेहद मशहूर और खूब पढ़ी जाने वाली पत्रिकाएं थीं।

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यूनुस साहब के पिता यूसुफ देहलवी साहब ने देश की आजादी के बाद उर्दू के प्रचार-प्रसार के लिए शमा पब्लिकेशंस की नींव रखी थी, जिसमें उन्होंने शमा, बानो, खिलौना, शबिस्तान, दोस्ती और मुजरिम उर्दू की पत्रिकाएं शुरू कीं। 'शमा' की लोकप्रियता को देखते हुए बाद में यूनुस देहलवी साहब ने इस पत्रिका का देवनागरी वर्जन 'सुषमा' के नाम से शुरू किया, जिससे उर्दू की लिपि से अपरिचित हिंदी जानने वालों ने उर्दू की मिठास का खूब लुत्फ लिया। यूनुस साहब की पुत्री सादिया देहलवी उर्दू की साहित्यकार और शायरा हैं।

दिल्ली में यूनुस साहब ने उर्दू साहित्य की जोत जलाए रखी। नई दिल्ली के चाणक्यपुरी इलाके में उनके 'शमाघर'में उर्दू के साहित्यकारों, शायरों, पत्रकारों और सेलिब्रिटीज के साथ-साथ फिल्म के कलाकारों का भी जमावड़ा लगा रहता था। वहां शेरो शायरी की महफिलें आबाद रहा करती थीं। बाद में यह 'शमाघर' नाम का बंगला बसपा नेता मायावती ने खरीद लिया और उसका पूरा स्वरूप बदल दिया गया।

यूनुस साहब ने 'शमा' और 'खिलौना' (जो बच्चों की पत्रिका थी) को लोकप्रियता की ऊंचाई बख्शी। शमा वैसे तो फिल्म पत्रिका थी और उसमें नरगिस और मीना कुमारी जैसी महान अभिनेत्रियां यदा-कदा लिखती रहती थीं, फिर भी उन्होंने उर्दू के श्रेष्ठ साहित्य को पत्रिकाओं में स्थान दिया। न सिर्फ उन्होंने नामचीन लेखकों को छापा, बल्कि नई प्रतिभाओं को भी स्थान दिया। 'शमा' पत्रिका का तो यह आलम था कि यह माना जाने लगा था कि उर्दू का कोई साहित्यकार अगर उसमें नहीं छपा है, तो वह साहित्यकार है ही नहीं।

शमा के फिल्म पत्रकारिता को समर्पित पन्नों के कारण यूनुस साहब को फिल्म इंडस्ट्री में भी काफी सम्मान हासिल हुआ। उनकी पुत्री सादिया देहलवी बताती हैं कि अभिनेता राजकपूर साहब उनका बहुत सम्मान किया करते थे। आसफ अली रोड पर स्थित दफ्तर में मशहूर फिल्मी सितारे यूनुस साहब से मुलाकात के लिए आया करते थे, ताकि उनका इंटरव्यू शमा और सुषमा में छप जाए।


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