Move to Jagran APP

जानें क्‍या है लैंड मैनेजमेंट मॉड्यूल एप और क्‍या है इसका मकसद, कैसे करता है रेलवे की मदद

रेलवे कई बार रअपनी भूमि से अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई करता है। इसमें कभी सफलता ि‍मिल जाती है तो कभी नहीं भी मिलती है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Mon, 14 Sep 2020 10:00 AM (IST)Updated: Mon, 14 Sep 2020 12:23 PM (IST)
जानें क्‍या है लैंड मैनेजमेंट मॉड्यूल एप और क्‍या है इसका मकसद, कैसे करता है रेलवे की मदद
जानें क्‍या है लैंड मैनेजमेंट मॉड्यूल एप और क्‍या है इसका मकसद, कैसे करता है रेलवे की मदद

नई दिल्‍ली (जेएनएन)। रेलवे केंद्र के क्षेत्राधिकार में आता है, जबकि उसकी संपत्तियां राज्यों में स्थित हैं। रेलवे की संपत्तियों की सुरक्षा के लिए आरपीएफ के जवान स्टेशनों पर तैनात होते हैं, लेकिन आवश्यकता के मुकाबले उनकी संख्या नाकाफी होती है। राज्य पुलिस पर भी उदासीनता के आरोप लगते रहते हैं। अतिक्रमण हटाने के लिए रेलवे अक्सर अभियान चलाता है, लेकिन पुनर्वास की व्यवस्था आड़े आ जाती है। कई बार कब्जाधारी समूह के रूप में अतिक्रमण का जोरदार विरोध करते हैं और हटाने गई टीम को खाली हाथ लौटना पड़ता है। अगर कब्जे हटाने में रेलवे को सफलता भी मिलती है तो अक्सर अतिक्रमणकारी फिर से कब्जा कर लेते हैं।

loksabha election banner

देश का सबसे बड़ा भूपति

भारतीय रेलवे के पास देश में सबसे ज्यादा जमीन है। रेल मंत्रालय के पास गोवा या दिल्ली से ज्यादा भूमि है। मार्च 2019 तक के उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार रेलवे 4.78 लाख हेक्टेयर जमीन का मालिक है। उसके पास उपलब्ध जमीन कई राज्यों से ज्यादा है। गोवा के पास 3.7 लाख हेक्टेयर, जबकि दिल्ली के पास कुल 1.48 लाख हेक्टेयर उपलब्ध है। वर्ष 2017 के सरकारी आंकड़ों के अनुसार देशभर में 31,063 भूखंड रेलवे के कब्जे में हैं, जिनका विस्तार 2,929 वर्ग किलोमीटर में है।

ऐसे करता है भूमि का प्रबंधन

रेलवे ने अपनी भूमि के प्रबंधन के लिए एप विकसित किया है, जिसे लैंड मैनेजमेंट मॉड्यूल के नाम से जाना जाता है। इसके जरिये रेलवे अपनी भूमि पर नजर रखता है। एप के जरिये यह पता चलता रहता है कि रेलवे की भूमि पर कब्जा तो नहीं हुआ। अगर कब्जा हुआ है तो उसकी प्रकृति क्या है। लैंड मैनेजमेंट मॉड्यूल ट्रैक मैनेजमेंट सिस्टम (टीएमएस) के साथ जुड़ा हुआ है। इसमें जमीन के अधिग्रहण, क्षेत्रफल, इस्तेमाल व लैंड बैंक की योजना आदि से संबंधित जानकारियां दर्ज होती हैं। पूर्व में रेलवे की संपत्तियों की जियोग्राफिकल इन्फॉर्मेशन सिस्टम (जीआइसी) र्मैंपग की जिम्मेदारी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के भुवन सेटेलाइट इमेजरी को सौंपी गई थी। उत्तर रेलवे के दिल्ली डिवीजन में इसकी शुरुआत भी हुई थी। लोक लेखा समिति को मिली थीं गड़बड़ियां वर्ष 1918-19 के दौरान लोक लेखा समिति ने पाया था कि 14 रेलवे जोनों के चार फीसद लैंड प्लान गुम हो चुके हैं, जबकि 12 जोनों के लैंड प्लान में क्षेत्रफल का उल्लेख नहीं किया गया था। इस पर समिति ने रेलवे को उसकी जमीन के रिकॉर्ड को दुरुस्त रखने व उन्हें वेबसाइट पर अपलोड करने के सुझाव दिए थे। साथ ही अतिक्रमण को हटाने के लिए रेल मंत्रालय को एक रणनीति तैयार करने की भी बात कही थी। समिति ने कहा था कि विभिन्न जगहों पर रेलवे की 2,496 करोड़ रुपये की संपत्तियों की सुरक्षा के लिए ट्रैक के किनारे 3,455 किलोमीटर चहारदीवारी बनाने की जरूरत है।

आरपीएफ व स्थानीय प्रशासन का सहारा

रेलवे की जमीन से कब्जा हटाने की प्रक्रिया लगातार जारी रहती है। अतिक्रमण या कब्जा हटाने के लिए रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) व स्थानीय प्रशासन की मदद ली जाती है। अधिकारियों का कहना है कि अस्थायी अतिक्रमण हटाने में ज्यादा दिक्कत नहीं होती, लेकिन पुराने अतिक्रमण में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। पुराने अतिक्रमण के खिलाफ पब्लिक परमिसेस (इविक्शन ऑफ अनऑथराइज्ड अकुपेशन) एक्ट-1971 के तहत कार्रवाई की जाती है।

800 हेक्टेयर से ज्यादा जमीन पर अतिक्रमण

रेलवे अधिकारी बताते हैं कि रेलवे की जमीन पर अस्थायी अतिक्रमण के मामले ज्यादा होते हैं। ज्यादातर कब्जे झुग्गियों के शक्ल में होते हैं। आंकड़ों के अनुसार रेलवे की करीब 800 हेक्टेयर से ज्यादा जमीन पर अतिक्रमण है। हालांकि, रेलवे इन जमीन की कीमत का रिकॉर्ड नहीं रखता। अधिकारी बताते हैं कि रेलवे अतिक्रमण को चिह्नित करने के बाद समय-समय पर उनके खिलाफ अभियान भी चलाता है। वर्ष 2017-18 व वर्ष 2018-19 के दौरान रेलवे ने क्रमश: 16.68 व 24 हेक्टेयर जमीन अतिक्रमणमुक्त कराई थी।

पुनर्वास की कोई नहीं लेता जिम्मेदारी

देशभर में कई जगहों पर रेलवे की संपत्तियों पर लोग झुग्गियां बना लेते हैं। रेलवे प्रशासन शुरुआत में इन पर ध्यान नहीं देता और जब इनकी संख्या ज्यादा हो जाती है तो कब्जा हटवाना उसके लिए मुश्किल हो जाता है। कई बार तो अतिक्रमण का मामला न्यायालय में चला जाता है और फिर मामला मुकदमे की पेच में फंस जाता है। अतिक्रमण व कब्जे की एक वजह पुनर्वास के लिए प्रशासनिक इकाइयों की जिम्मेदारी नहीं लेना भी है। इन वजहों से भी रेलवे की जमीनों पर अतिक्रमण नहीं हट पाता है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.