जमीन में बीज, खाद, पानी.. अब अंकुरित होना बाकी
खेत को बीज के साथ वक्त पर पानी मिले और खाद और किसान को सिर के ऊपर छत, यह सुनिश्चित करने का दावा किया गया है।
नई दिल्ली, [आशुतोष झा]। हमारे 'अन्नदाता' सबसे ज्यादा सुर्खियों में तब होते हैैं जब वे आत्महत्या को मजबूर होते हैैं। ऐसा तो नहीं कहा जा सकता है कि पिछले दो वर्षों में किसानों की आत्महत्या की घटना ही नहीं हुईं लेकिन मोदी सरकार यह दावा जरूर कर सकती है कि उसने खेती और किसानी को एक ऐसे व्यवसाय में बदलने की कवायद शुरू दी है जो लाभ सुनिश्चित करे।
आंकड़े बताते हैैं कि खेती करने वालों की संख्या लगातार कम होती जा रही है। शायद अब उसमें सुधार दिखे। सरकार का दावा है उसकी वैज्ञानिक सोच, तार्किक पहल और मानवीय आधार पर किसानों के साथ न्याय उनकी आय दोगुनी कर देगा। यह दावा वक्त की कसौटी पर कसा जाएगा। सॉयल हेल्थ, फसल बीमा योजना, वन ड्रॉप- मोर क्रॉप जैसे सभी नारे अभी क्रियान्वयन के दौर से गुजर रहे हैैं।
मूल्य स्थिरीकरण फंड भी एक इससे जुड़ा एक ऐसा कदम है जो न सिर्फ महंगाई पर नियंत्रण में असर दिखाता है बल्कि क्राइसिस सेल में किसानों को भी राहत देता है। यह पहला साल गुजरा है जब यूरिया की कमी को लेकर संसद में आक्रोश न जताया गया हो। नीम कोटेड यूरिया के लिए तो केंद्र सरकार को बधाई देनी ही होगी। खेत को बीज के साथ वक्त पर पानी मिले और खाद और किसान को सिर के ऊपर छत, यह सुनिश्चित करने का दावा किया गया है।
पिछले हफ्ते दस राज्यों के साथ सूखे को लेकर जिस तरह खुद प्रधानमंत्री ने बैठकें कीं, वह भी यही भरोसा दिलाने के लिए था कि केंद्र हर समस्या में साथ मिलकर लड़ेगा। वक्त बताएगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सोच और कृषि मंत्री राधामोहन सिंह का प्रयास जमीन पर कितना दम दिखाता है।
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