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शहरों में कचरे के पहाड़ भी बिगाड़ रहे हवा की सेहत, बीमारी का भी बढ़ा रहे खतरा

लैंडफिल साइट से निकलने वाली मेथेन गैस के चलते आसपास रहने वाले लोगों को अक्सर सांस लेने में दिक्कत होती है। वहीं कुछ लोगों में मितली या उल्टी आने की शिकायत होती है। हवा में मेथेन बहुत अधिक होने पर मौत भी हो सकती है।

By TilakrajEdited By: Published: Fri, 10 Dec 2021 04:20 PM (IST)Updated: Fri, 10 Dec 2021 04:20 PM (IST)
शहरों में कचरे के पहाड़ भी बिगाड़ रहे हवा की सेहत, बीमारी का भी बढ़ा रहे खतरा
अमलीय गैसों की अधिकता से ही एसिड रेन देखी जाती है

नई दिल्ली, विवेक तिवारी। वायु प्रदूषण दिल्ली सहित दुनिया के कई बड़े शहरों में एक बड़ी समस्या बन चुकी है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि शहरों में बने बड़े – बड़े लैंडफिल साइट इस समस्या को और बढ़ा रहे हैं। लैंडफिल साइट के करीब रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य पर भी यहां से निकलने वाली जहरीली हवाएं काफी बुरा प्रभाव डालती हैं। इंटरनेशनल जनरल ऑफ इनवायरमेंटल रिसर्च एंड पब्लिक हेल्थ में छपी एक रिसर्च रिपोर्ट में ये तथ्य सामने आए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक लैंड फिल साइट से निलकने वाली गैसों का सबसे ज्यादा असर दो किलोमीटर के दायरे में रहने वाले लोगों की सेहत पर सबसे अधिक होता है।

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ये रिसर्च दक्षिण अफ्रिका के लिम्पोपो प्रांत में की की गई है। रिसर्च में पाया गया कि दुनिया भर में मानवजनित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में लैंडफिल साइटों की बड़ी हिस्सेदारी है। यहां फेके जाने वाले कचरे के सड़ने से बड़े पैमाने पर मीथेल और कार्बन डाइ ऑक्साइड गैसें निकलती हैं जो हवा में प्रदूषण को बढ़ाती हैं। वहीं लैंड फिल साइट को मैनेज करने के लिए इस्तेमाल होने वाली मशीनों और कचरे के ट्रकों से भी बड़े पैमाने पर धुआं निकलता है जो वायु प्रदूषण को बढ़ाता है। लैंडफिल के भीतर जटिल रासायनिक और सूक्ष्मजीव प्रतिक्रियाएं होने के चलते अक्सर कई गैसीय और कार्बनिक प्रदूषक जैसे डाइऑक्सिन, पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन, पार्टिकुलेट मैटर आदि लगातार निकलते रहते हैं।

सेहत पर पड़ रहा बुरा असर

शोध में शामिल लैंडफिल साइटों के करीब रहने वाले लोगों में से 78 फीसदी लोगों ने माना कि साइट से निकलने वाली प्रदूषक गैसों के चलते आसपास रहने वाले लोगों की सेहत पर बुरा असर पड़ता है। लोगों में फ्लू, आंखों में जलन, कमजोरी, सांस लेने में तकलीफ जैसी कई बीमारियां रिपोर्ट की गई हैं। लैंडफिल साइट से निकलने वाली मेथेन गैस के चलते आसपास रहने वाले लोगों को अक्सर सांस लेने में दिक्कत होती है। वहीं कुछ लोगों में मितली या उल्टी आने की शिकायत होती है। हवा में मेथेन बहुत अधिक होने पर मौत भी हो सकती है। वहीं लैंडफिल से निकलने वाली नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, और हैलाइड जैसी अम्लीय गैसों के चलते पर्यावरण के साथ के साथ ही लोगों की सेहत पर भी बुरा असर होता है। अमलीय गैसों की अधिकता से ही एसिड रेन देखी जाती है।

दिल्ली में लैंडफिल साइट से हर साल होता है इतना वायु प्रदूषण

प्रदूषक गैसें आंकड़े टन में हैं (प्रति वर्ष)

मेथेन (CH4) 3263

कार्बन डाई ऑक्साइड (CO2) 3263

नाइट्रस ऑक्साइड (NO2) 30

अन्य ग्रीन हाउस गैसें (tCO2e) 93664

(आंकड़े दिल्ली प्रदषण कंट्रोल और पर्यावरण विभाग की ओर से किए गए अध्ययन के मुताबिक हैं)

लैंडफिल साइट ग्राउंड वॉटर को भी पहुंचा रहा है नुकसान

एक रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली में भलसवा, गाजीपुर और ओखला लैंडफिल साइड पर फेके जाने वाले कचरे से निकलने वाले हैवी मैटल्स और कैमिकल्स के चलते ग्राउंड वाटर में प्रदूषण बड़े पैमाने पर बढ़ा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक गाजीपुर लैंडफिल साइट के गेट पर लिए गए पानी के सैंपल में टीडीएस की मात्रा 890 मिलिग्राम प्रति लीटर दर्ज की गई। मानकों के तहत हवा में इसकी मात्रा 500 से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। वहीं पानी में क्लोरीन की मात्रा 1690 दर्ज की गई। मानकों के तहत पानी में इसकी मात्रा 250 मिलीग्राम प्रति लीटर होनी चाहिए। इसी तरह भलसवा लैंडफिल साइट पर लिए गए पानी के सैंपल में टीडीएस की मात्रा 5280 मिलिग्राम प्रति लीटर दर्ज की गई। पानी में क्लोरीन की मात्रा 2390 दर्ज की गई। ओखला लैंडफिल साइट पर लिए गए पानी के सैंपल में टीडीएस की मात्रा 1990 मिलिग्राम प्रति लीटर दर्ज की गई। वहीं पानी में क्लोरीन की मात्रा 965 दर्ज की गई।


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